Friday 17 August 2012

मदन लाल जी धींगरा, सावरकर का संग-

करता बंदरबांट, कटे वासेपुर अन्दर-

अंगारों पर ही बसा, है झरिया अधिकाँश |
भू-धसान हरदिन घटे, जलता जिन्दा मांस |
जलता जिन्दा मांस, जलाने वालों सुन लो |
इक बढ़िया सी मौत, स्वयं से पहले चुन लो |
खड़ी हमारी खाट, करे चालाक मिनिस्टर |
करता बंदरबांट, कटे वासेपुर अन्दर ||
 मदन लाल धींगड़ा को श्रद्धांजलि
Madanlal Dhingra - A Great hero who killed an enemy of India in the London

मदन लाल जी धींगरा, सावरकर का संग |
मारें घुस के वायली, अंग्रेजी सत्ता दंग |
अंग्रेजी सत्ता दंग, देश में उनके घुसकर |
बदला लेता मार, उन्ही का आला अफसर |
बुरे यहाँ हालात, भरा अब कुल बवाल जी |
साधुवाद आभार, नमन हे मदन लाल जी ||


सुन्दर सत्यम शिवम् सा, स्वप्न सुशील सकाळ |
नंदी सींगें मारता, नाग दिखे विकराल |
नाग दिखे विकराल, चंद्रमा साधू ढोंगी |
समझ अहिल्या चाल, भगाया जोगी भोगी |
शंकर संग त्रिशूल, भूल से हाथ लगाया |
बाघम्बर सा ब्लॉग, हमारे मन को भाया ||

 केतकी


आह केतकी आह है, गजब समर्पण भाव |
दृष्टान्तों का दोष से, किया स्वयं अलगाव |
किया स्वयं अलगाव, जरा सोचा तो होता |
यही अंश का वंश, तुम्हारा वक्ष भिगोता |
अवसर देती एक, नेक यह होती घटना |
देता मैं भी साथ, खले चुपचाप निपटना || 

चिंतन ...

सदा
आत्‍म-चिंतन

होंठों पर सच यूँ जमा, ज्यों शिखरों पर बर्फ ।
पपड़ी परतों में जमीं, जमें सत्य के हर्फ़ ।
जमें सत्य के हर्फ़, दर्प की जली मशालें ।
रहा जलाता मर्म, फफोले जलते  छाले ।
रविकर अब निश्तेज, भेज कोई रखवाला ।
कैद करे ये झूठ, लगाए मरहम आला ।

यह कैसी आतंक पिपासा

 धूल धूसरित जीवन आशा,
हर कोने में होय तमाशा
मानव की यह काया कैसी
ब्रह्म-पुत्र में गले बताशा ||


कावेरी में रणभेरी सुन -
ढोल नगाड़े मारू तासा |
गंगा यमुना में भी बढती-
घोर निराशा परम हताशा ||
खुद ही अपने तन को काटें-

उल्टा चलता तेज गडासा ।
आग लगाकर लोग तापते-
ऐसी ही है रक्त पिपासा ||

ग़ज़लगंगा.dg: हुकूमत की चाबी.....

devendra gautam
Hindi Bloggers Forum International (HBFI)

 किया हकीकत को बयां, क्या बढ़िया अंदाज |
अंदाजा उनको नहीं, जिनके कंधे आज |
जिनके कंधे आज, रखे ढेरों बंदूकें |
दें तुमको ही दाग, अगर तुम किंचित चूके |
चुके हुवे वे लोग, चुकाते हैं क्या बदला |
बदला यह जग खूब, किन्तु बदला न अगला ||

साध्वी फिर पहुंची बलात्कारी स्वामी के पास ...

महेन्द्र श्रीवास्तव 

चिदर्पिता के अर्थ को, करे सार्थक जाय |
जब भी रहती मौज में, एक प्लेट में खाय |
एक प्लेट में खाय, मगर साहस है भाई |
पहले गई अघाय, मौत ही शायद लाई |
चिन्मय का आनंद, बंद तो नहीं हुआ था |
जबकि बीते वर्ष, साध्वी नहीं छुवा था ||
 

बेटे की अंतिम इच्छा के लिए पिता ने श्मशान में काटा केक

4 बेटों की मौत

चारो बच्चे गुजरते, दुर्घटना परिणाम |
किन्तु केक क्यूँ काटते, कटते अंग तमाम |
कटते अंग तमाम, ड्राइवर भी मर जाता |
ताम-झाम बेकाम, केक क्या कोई खाता |
टी वी फोटो शूट, नया करने की चाहत |
नहीं हजम हो बात, मौत पर रविकर आहत || 

अमन की अपील !

संतोष त्रिवेदी 
 बैसवारी baiswari
मरें प्रतिष्ठा के लिए, जिन्दा झूठी शान |
पूंछ पकड़कर कर रहे, मरती बछिया दान |
मरती बछिया दान, सुअर मस्जिद में घुसता |
राक्षस नहीं अघान, जला घर लेता सुस्ता |
होय घात प्रतिघात, रात दिन होता खेला |
सत्ता की शय-मात, लगा लाशों का मेला || 

प्रधानमंत्री का इस्तीफा ???.... सो बोरिंग !!!


नकारात्मक है विपक्ष, रटे एक ही बात |
पुन: रपट पैदा करे, कुछ मुश्किल हालात |
कुछ मुश्किल हालात, लात  सत्ता को मारूं |
है जी का जंजाल, समय तुझको धिक्कारूं |
सर पर रक्खा हाथ, झटक दूँ कैसे भैया |
है मैया जो साथ, डुबाऊँ कैसे नैया || 

5 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. बस 'वाह' ही निकलता है मुँह से !

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  4. बहुत सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति

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