Monday, 24 June 2013

राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते-



 

केदारनाथ धाम के दर पर

  (rohitash kumar)

हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी-

नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल । 
भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल । 
महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते । 
राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते । 
आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी । 
हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥


तप्त-तलैया तल तरल, तक सुर ताल मलाल ।
ताल-मेल बिन तमतमा, ताल ठोकता ताल ।

ताल ठोकता ताल, तनिक पड़-ताल कराया ।
अश्रु तली तक सूख, जेठ को दोषी पाया ।

कर घन-घोर गुहार, पार करवाती नैया ।
तनमन जाय अघाय, काम रत तप्त-तलैया ।
तक=देखकर

4 comments:

  1. सही लिखा है आदरणीय !!

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  2. .सार्थक व् सराहनीय लिंक्स संयोजन . आभार मोदी व् मीडिया -उत्तराखंड त्रासदी से भी बड़ी आपदा
    आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  3. आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी ।
    हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥ Bahut sahi kataksh kiya aapne.swamajh nahi aata ye trasdiyan aam aadmi ke saath hi kyon hoti haen, ye neta kyon bach jate haen.ye galti se kabhi fans bhi jaye to nikal aate haen aam aadmi mar jata hae.

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