पदा रहा मोदी बहुत, पाले में घुस हूल |
इधर मीडिया दे रहा, इस मसले को तूल |
इस मसले को तूल , मूल में कुर्सी आई |
आई है नाराज, राज आई या जाई |
देख उत्तराखंड, हाय रे दैया दद्दा । |
निपटे हम इस ओर, निपट तू उधर आपदा ||
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जय जय जय हे वीर, भगाते आई शामत |
(1)
कीमत मत मानव लगा, महा-मतलबी दृष्टि |
हिम्मत से टकरा रहे, भरी चुनौती सृष्टि |
भरी चुनौती सृष्टि, वृष्टि कुहराम मचाये |
अहंकार हो नष्ट, तिगनिया नाच नचाये |
जय जय जय हे वीर, भगाते आई शामत |
सादर तुम्हें प्रणाम, चुकाई भारी कीमत ||
उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड --नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम-
(1)
नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम |
क्रूर कुदरती हादसे, दे राहत निष्काम |
दे राहत निष्काम, बचाते आहत जनता |
दिए बगैर बयान, हमारा रक्षक बनता |
अमन चमन हित जान, निछावर हँसते हँसते |
भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते -
(2)
उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड |
कुदरत का कुत्सित कहर, देह भुगत ले दंड | देह भुगत ले दंड, हुवे रिश्ते बेमानी | पानी का बुलबुला, हुआ है पानी पानी | क्या गंगा आचमन, चमन सम्पूर्ण प्रस्तरी | चालू राहतकार्य, उत्तराभास उत्तरी || उत्तराभास=अंड-बंड उत्तर / दुष्ट उत्तर
(३)
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -
खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।
बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।
भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥
(४)
सन्नाटा पसड़ा पड़ा, सड़ता हाड़ पहाड़ |
कलरव कल की बात है, गायब सिंह दहाड़ | गायब सिंह दहाड़, ताड़ अब कारस्तानी | कुदरत से खिलवाड़, करे फिर पानी-पानी | सुधरो नहीं सिधार, खाय झापड़ झन्नाटा | मद में माता मनुज, सन्न ताके सन्नाटा ||
(५)
फेंकू का धत फोबिया, व्याधि व्यथा विकराल |
राल घोंटते गान्धिभक्त, है चुनाव का साल | है चुनाव का साल, विदेशी दौरे छोड़े | चले अढाई कोस, नहीं नौ दिन हैं थोड़े | बेतरतीब विकास, गधह'रा हुल'के रेंकू | किसका वह व्यक्तव्य, मीडिया असली फेंकू || श्लेष अलंकार पहचाने गधह'रा हुल'के = बच्चे रेंकने के लिए हुलकते हैं
(६)
नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल ।
भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल ।
महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते ।
राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते ।
आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी ।
हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥
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जहर बुझाए तीर, कलेजा ज्यों ज्यों हूके-
चूके ना वाणी कभी, भेदे अपना लक्ष्य |
दुर्जन सज्जन चर अचर, चाहे भक्ष्याभक्ष्य |
चाहे भक्ष्याभक्ष्य, ढाल-वाणी बारूदी |
छोड़े जिभ्या बाण, ढाल क्यों नाहक कूदी |
जहर बुझाए तीर, कलेजा ज्यों ज्यों हूके |
जाएँ रिश्ते टूट, किन्तु ना जिभ्या चूके || ,
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सुन्दर !!
ReplyDeleteबहुत खूब ,लाजवाब
ReplyDeleteआदरणीय रविकर भाई मेरी रचना को यहाँ शामिल करने के लिए हार्दिक आभार बहुत सुन्दर शब्दों से नवाजा है मेरी रचना को आपने
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