Monday, 3 June 2013

भीति लगे अब प्रीति से, लागे भली अनीति

सुलझे तभी सवाल

श्यामल सुमन

कुल दोहे झकझोरते, ठौर-ठौर पर ईति |
भीति लगे अब प्रीति से, लागे भली अनीति ||

घटे रेप के आंकड़े, किन्तु बढे छल-छंद-

सहमति से सम्भोग तक, फिर फक्कड़ फरिफंद ।
घटे रेप के आंकड़े, किन्तु बढे छल-छंद ।
किन्तु बढे छल-छंद,  मिशन पटना बहकाए।
 बने सख्त-कानून, बालिका माँ बन जाए ।
जब बेटे बिगलैड़, कांड कांडा सर-कंडा । 
ख़ुशी करे ख़ुदकुशी, कहाँ कुछ करता डंडा ॥ 
 

लम्बी चादर तान के, सोया था लिक्खाड़-

लम्बी चादर तान के, सोया था लिक्खाड़ । 
गुजरे झंझावात सौ, खेल खेत खिलवाड़ । 
खेल खेत खिलवाड़, गाँव की गर्मी झेली । 
रेप झेंप अपहरण, सताई गई सहेली । 
कैसे सह चुपचाप, पड़ा रह सकता रविकर । 
हुआ बड़ा यह पाप, छोड़ता लम्बी चादर ॥
 

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (05-06-2013) के "योगदान" चर्चा मंचःअंक-1266 पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बढिया चयन
    काफि दिनों बाद
    बहुत सुंदर

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  3. वाह बेहतरीन संग्रह
    शानदार संयोजन का आभार

    आग्रह है
    गुलमोहर------

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