सुलझे तभी सवाल
श्यामल सुमन
कुल दोहे झकझोरते, ठौर-ठौर पर ईति |
भीति लगे अब प्रीति से, लागे भली अनीति ||
भीति लगे अब प्रीति से, लागे भली अनीति ||
घटे रेप के आंकड़े, किन्तु बढे छल-छंद-
सहमति से सम्भोग तक, फिर फक्कड़ फरिफंद ।
घटे रेप के आंकड़े, किन्तु बढे छल-छंद ।
किन्तु बढे छल-छंद, मिशन पटना बहकाए।
बने सख्त-कानून, बालिका माँ बन जाए ।
जब बेटे बिगलैड़, कांड कांडा सर-कंडा ।
ख़ुशी करे ख़ुदकुशी, कहाँ कुछ करता डंडा ॥
लम्बी चादर तान के, सोया था लिक्खाड़-
लम्बी चादर तान के, सोया था लिक्खाड़ ।
गुजरे झंझावात सौ, खेल खेत खिलवाड़ ।
खेल खेत खिलवाड़, गाँव की गर्मी झेली ।
रेप झेंप अपहरण, सताई गई सहेली ।
कैसे सह चुपचाप, पड़ा रह सकता रविकर ।
हुआ बड़ा यह पाप, छोड़ता लम्बी चादर ॥
सुन्दर !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (05-06-2013) के "योगदान" चर्चा मंचःअंक-1266 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढिया चयन
ReplyDeleteकाफि दिनों बाद
बहुत सुंदर
वाह बेहतरीन संग्रह
ReplyDeleteशानदार संयोजन का आभार
आग्रह है
गुलमोहर------
SUNDAR
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