Rajesh Kumari
आल्हा में दुर्लभ चित्रण है, दीदी कहों कहाँ तक जाय |
नदियाँ बादल मलबा पत्थर, भवन पुलों को रहे बहाय | शंकर नंदी मगन भंग में, रचना सारी भंग कराय | चेताते मूरख मानव को, कुदरत को अब चले बराय || |
आपदाओं के प्रबंधक
Virendra Kumar Sharma
बटते दल बादल फटे, दलदल लेते लील |
दलते ग्राम दलान घर, देत दलाल दलील | देत दलाल दलील, आपदा है अब आई | राहुल लाखों मील, रसद कैसे पहुंचाई | बैठक ठक ठक रोज, बड़े मसले हैं घटते | ये जनसंख्या बोझ, चलो इस तरह निबटते || |
लोकसेवकों में लोकसेवक होनें का भाव भी तो होना चाहिए !!
पूरण खण्डेलवाल
मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।
आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥
आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |
अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥
घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥
नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥
सवैया -
(1)
बाँध बनावत हैं सरकार वहाँ पर मूर्ति हटावत त्यूँ |
गान्धि सरोवर हिंसक हो मलबा-जल ढेर बहावत क्यूँ |
शंकर नेत्र खुला तिसरा करते धरती पर तांडव ज्यूँ |
धारिणि धारि महाकलिका कर धारण खप्पर मारत यूँ |
(2)
नष्ट हुवा घर-ग्राम कुटी जब क्रोध करे दल बादल देवा |
कष्ट बढ़ा गतिमान नदी करती कलिका किलकार कलेवा |
दूर रहे सरकार जहाँ बस खाय रही कुरसी-कर-मेवा |
हिम्मत से तब फौज डटी इस आफत में करती जन-सेवा ||
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बहुत बढ़िया रविकर जी
ReplyDeleterecent post
विंडो 7 , xp में ही उठायें विंडो 8 का लुफ्त
विंडो 7 को upgrade करने का तरीका
बहुत लाजबाब प्रस्तुति,,,रविकर जी,
ReplyDeleteRECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय !!
बहुत लाजबाब प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबैठक ठक ठक रोज, बड़े मसले हैं घटते |
ReplyDeleteये जनसंख्या बोझ, चलो इस तरह निबटते ||
बहुत खूब .
बहुत सुंदर संकलन. बड़े अच्छे लिंक का समावेश है इस प्रस्तुति में.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सराहनीय
ReplyDeleteलाज़वाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteअच्छा प्रयास.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, लाजवाब
ReplyDeletelatest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )