Monday 16 April 2012

मीन-मेख ही ढूँढ़ते, महा-कुतर्की विज्ञ-

मैं देखता रहा :

मालिक तड़पे दर्द से, बाम मलाये हाथ |
नौकर मलता जा रहा, पीठ दर्द के साथ |

पीठ दर्द के साथ, रखे होंठों को भींचे |
अश्रु बहे चुपचाप, आग भट्ठी की सींचे |

रविकर माँ का ख्याल, यहाँ आजादी हड़पे |
सहता जुल्म बवाल, नहीं तो मालिक तड़पे ||

 

सूरज को दिया दिखाने की जिद।


शिल्पा जी आभार है, साधुवाद श्री सुज्ञ |
मीन-मेख ही ढूँढ़ते, महा-कुतर्की विज्ञ |  

महा-कुतर्की विज्ञ, कृत्य सब अपने भायें |
करे अनैतिक काम, सही उसको ठहराएं |

जो है शाश्वत सत्य, टिप्पणी उस पर करते |
जाने पथ्यापथ्य, मगर नित मांस डकरते ||

11 comments:

  1. बहुत बढ़िया सर!

    सादर

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  2. दोनों कुंडलियां लाजवाब हैं।

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  3. बहुत बढ़िया...............

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  4. बहुत सुन्दर!

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  5. जो है शाश्वत सत्य, टिप्पणी उस पर करते |
    जाने पथ्यापथ्य, मगर नित मांस डकरते ||


    ha haa ha ha सत्य वचन

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  6. सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति.

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  7. जो है शाश्वत सत्य, टिप्पणी उस पर करते |
    जाने पथ्यापथ्य, मगर नित मांस डकरते ||
    दिन में माला जपत हैं ,

    रात हनत हैं गाय .
    बढ़िया prastuti

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  8. बहुत सुन्दर...

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