Thursday 21 February 2013

*भा बहार नहिं रंग, बाग़ में कवि तन्हा हैं-



सूखे फूल





 फूलों से नफ़रत करे, करते शूल पसंद । 
लेखक हैं नवगीत के, कवि रचते ना छंद । 

कवि रचते ना छंद, मग्न मतिमंद रहा हैं । 
*भा बहार नहिं रंग, बाग़ में कवि तन्हा हैं । 
प्रभा  
सूख सरोवर नीर, मनुज कटता मूलों से । 
नीति-नियम कुल भूल, करे नफ़रत फूलों से ॥  

 क्वचिदन्यतोSपि... 

हड्डी की इस हूक का, कितना सरल इलाज |
स्नेहिल-जन छू ले अगर, छूमंतर हो आज |


छूमंतर हो आज, राज की बात बताते |
बुड्ढा तेरा बाप, इशारा कर ही जाते |


नुस्खा लें अजमाय, खेलते गुरू कबड्डी |
उलटा पैदा पूत, लात से छू ले हड्डी ||

My Imageसंतोष त्रिवेदी



 अजमाते हैं हर विधा, मन में ना संतोष |
प्रस्तुतियां लगभग मिली, सच सटीक निर्दोष |
सच सटीक निर्दोष, शेर सब जबरदस्त हैं |
चीर फाड़ में व्यस्त, भाव खा रहे मस्त हैं |
रविकर को है गर्व, मित्र सच्चा जो पाते |
समय काल आपात, मित्र को हैं अजमाते ||

रविकर 

आज पूरे प्यार से साजन सजा दो ।

उस सुनहरे ख़्वाब का पूरा पता दो ।।



रात-दिन छलती रही कोरी किताबें -

चिट्ठियां उनपर सटा के तो मजा दो ।।



 तंत्र रक्षा का गया अब तेल लेने -

हर घुटाले में विपक्षी को फँसा दो ।।  



लालटेनों की ख़तम बाती हुई तो 

काट नारे को फटाफट लो जला दो ।।



रोज उम्मीदे लगा कर लेट जाते
मिल रहा मौका जरा बाजा बजा दो । ।

गढ़े शुभाशुभ जीव, महारथि क्लीब बनाए-

चक्र-चलैया चाकचक, चैली-चाक-कुम्हार |
मातृ मातृका मातृवत, नभ जल गगन बयार |

नभ जल गगन बयार, सार संसार बसाये  । 
गढ़े शुभाशुभ जीव, महारथि क्लीब बनाए । 

सिर काटे शिशु पाल, सु-भद्रे सुत मरवैया । 
व्यर्थ बजावत गाल, नियामक चक्र-चलैया ॥ 
चाकचक=दृढ़   चैली=लकड़ी  क्लीब = नपुंसक 


 रेत के महल
शक्ति केंद्र पंडित बना, संतानों हित ज्ञान |
क्षत्रिय रक्षा तंत्र से, दुष्टों प्रति अभियान |



दुष्टों प्रति अभियान, वस्तु जीवन-उपयोगी |
करे वनिक व्यापार, चाहते योगी भोगी |



पर चौथे के पास, शक्ति के केंद्र नदारद |
बदल परिस्थिति किन्तु, बने विद्वान विशारद ||



काटे कागद कोर ने, कवि के कितने अंग । 
कविता कर कर कवि भरे, कोरे कागज़ रंग । 

कोरे कागज़ रंग, रोज ही लगे खरोंचे । 
दिल दिमाग बदहाल, याद बामांगी नोचे । 

रविकर दायाँ हाथ, एक दिन गम जब बांटे । 
जीवन रेखा छोट, कोर कागज़ की काटे ।। 

3 comments:

  1. हड्डी की इस हूक का, कितना सरल इलाज |
    स्नेहिल-जन छू ले अगर, छूमंतर हो आज |

    छूमंतर हो आज, राज की बात बताते |
    बुड्ढा तेरा बाप, इशारा कर ही जाते |

    नुस्खा लें अजमाय, खेलते गुरू कबड्डी |
    उलटा पैदा पूत, लात से छू ले हड्डी ||

    बहुत सटीक रविकर जी .

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  2. श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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