कैसे वह आईने में देख पायेंगे खुद को ?
प्रवीण शाह
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गोड़े उर्वर खेत को, काटे सज्जन वृन्द ।
इसके क्रिया-कलाप है, जमींदार मानिन्द ।
जमींदार मानिन्द , सताता रहे रियाया ।
मुजरिम देख दबंग, सामने जा रिरियाया ।
देख काल आपात, कमांडर तनहा छोड़े ।
लेकर भागे जान, पुलिस में भरे भगोड़े ॥ |
सदा
अंग विकल लंगड़ाय, काम ना करता माथा | पद मद में मगरूर, नकारे स्नेहिल गाथा | नीति नियम शुभ रीति, देखकर आँखें मूंदे | इष्ट मित्र परिवार, बहा लें दो दो बूंदे- |
चली तिरंगे पर लटक, दल बल सहित विचित्र ।
दल बल सहित विचित्र, हरा से भगवा हारे ।
मिटता लाल निशान, करे तृण-मूल किनारे ।
रंग रूप हैं भिन्न, खिन्न है सभी कबीले ।
धानी पीला-श्वेत, बैगनी काले नीले ॥ |
हैप्पी बर्थड़े ... अम्मा !!
शिवम् मिश्रा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGurffs6S517fK2XNnCJeDThYZWSuvK1jk9V9YaL19eQxP3b_ZxeIYpMKeNCgz5EygT99KxQ_JY0il9Jx0EgnC8-U-TUwn8ZLlD_-i9vv0xdQZ3Se75pgtbp-vdEq3B0e_GV2sEb6v4vU/s320/IMG00666-20130304-1222.jpg)
दादी को शुभकामना, कार्तिक का अंदाज |
प्यारा प्यारा पौत्र दे, गोदी रहा विराज |
गोदी रहा विराज, नाज करता दादी पर |
मिला पिता विद्वान, शुक्रिया का यह अवसर |
हों बुजुर्ग खुशहाल, सही सेहत आजादी |
रविकर करे प्रणाम, खिलाये कार्तिक दादी ||
शापित सुनारप्रतुल वशिष्ठ
॥ दर्शन-प्राशन ॥
विषयी वतसादन वेश धरे विषठा भख भीषण रूप धरे । हतवीर्य हरे हथियाय हठात हताहत हेय कुकर्म करे । सुकुमारि सकारण युद्ध लड़े विषपुच्छन को बहुतै अखरे । मनसा कर निष्फल दुष्टन की मन सज्जन में शुभ जोश भरे । |
....बोझ
Saras
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBlKCTT6k6GSbuW4voI42fZZXtgRcRTodhIiKzdgBakwzX0DgNGv5kAx4GIJs4Jeobo6ubKFxhINAp5jN6u_vY0LV0vJTaYolyJXwVBNqqufSHu31TM5AXVJ58RwrMFVrSCxC1H6oLPlR1/s320/depression.jpg)
पोसा जाता इत अहम्, उत एक्स्ट्रा की चाह |
अपने अपने कर्म पर, रखते युगल निगाह |
रखते युगल निगाह, घरेलू जिम्मेदारी |
मिलकर लेते बाँट, नहीं कोई आभारी |
बढती जाए आयु, बढे कुछ अधिक भरोसा |
ह्यूमर होता शून्य, अहम् दोनों ने पोसा ||
नफरत की सौदागरी![]() नफ़रत की सौदागरी, कर *सौनिक व्यापार | ना हर्रे ना फिटकरी, आये रक्त बहार | आये रक्त बहार, लोथड़े भी बिक जाएँ | मस्जिद मठ बाजार, जहाँ मर्जी मरवायें | कर लो बम विस्फोट, शान्ति दुनिया को अखरत | हथियारों की होड़, भरे यारों में नफरत || *मांस बेंचने वाला / बहेलिया |
रविकर साहब इसके लिए दोष भी मैं जनता को ही दूंगा, अगर इतने सारे कायर लोग सिर्फ एक राजा भैया से खौफ खाते है तो यह शर्म की बात है इस लोकतंत्र के लिए।
ReplyDeleteआये रक्त बहार, लोथड़े भी बिक जाएँ |
ReplyDeleteमस्जिद मठ बाजार, जहाँ मर्जी मरवायें |
बहुत ही सार्थक पंक्तियाँ,आभार.
अच्छे लिंक ओर उनका परिचय ...
ReplyDeleteरचना के भाव का विस्तार है यह काव्यात्मक टिपण्णी .शानदार जानदार .
ReplyDeleteजाने कैसे अपाहिज़ हो गया ?????
सदा
SADA
दो बूंदे जिंदगी की, पल पल रही पिलाय |
लेकिन लकवा ग्रस्त मन, अंग विकल लंगड़ाय |
अंग विकल लंगड़ाय, काम ना करता माथा |
पद मद में मगरूर, नकारे स्नेहिल गाथा |
नीति नियम शुभ रीति, देखकर आँखें मूंदे |
इष्ट मित्र परिवार, बहा लें दो दो बूंदे-
nice.
ReplyDeletezalim vahi paida hote hai jaha dabbu raha karte hai, behatareen sanyojan
ReplyDeleteबेहतरीन संयोजन ,"ज़ालिम वहीँ पैदा होते हैं जहाँ दब्बू रहा करते हैं "
ReplyDeleteबहुत सुन्दर काव्यमयी टिप्पणियाँ!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (06-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
बढ़िया लिंक्स
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिंक्स
ReplyDeleteKAVYA SUDHA (काव्य सुधा)
बहुत सुंदर !
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