मैं माँ का अनमोल खिलौना ।
नन्हा मुन्हा प्यारा छौना ।
थपकी दे माथा सहलाती
लोरी गाती दूध पिलाती
हरदिन अपने पास सुलाती |
सूखे में सरकाती जाती -
भीगा माँ का रहे बिछौना ।
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।
असमय जागा असमय रोया |
असमय माँ का बदन भिगोया |
मालिस करके वह नहलाती |
इक पुकार पे दौड़ी आती |
माँ की राह ताकता रहता
जब तक था मैं आधा-पौना |
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।
बिना बताये बाहर जाता |
बड़े बहाने रहा बनाता |
जब पापा को गुस्सा आता |
तुरत बचाने आती माता |
करवा देती शादी-गौना |
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।
पोते पोती पाती माता |
उनसे मन बहलाती माता |
बार बार जब खाँसी माता |
हुई बहू से बाती-बाता |
रविकर तब हो जाता बौना ||
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-06-2016) को "पात्र बना परिहास का" (चर्चा अंक-2369) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'