Thursday, 28 July 2016
विद्वानों से डाँट, सुने रविकर की मंशा
सुने प्रशंसा मूर्ख से, यह दुनिया खुश होय |
डाँट खाय विद्वान की, रोष करे दे रोय |
रोष करे दे रोय, सहे ना समालोचना |
शुभचिंतक दे खोय, करे फिर बंद सोचना |
विद्वानों से डाँट, सुने रविकर की मंशा |
करता रहे सुधार, और फिर सुने प्रशंसा ||
Monday, 18 July 2016
गले हमेशा दाल, टांग चापे मुर्गे की-
मुर्गे की इक टांग पे, कंठी-माला टांग |
उटपटांग हरकत करो, कूदो दो फर्लांग |
कूदो दो फर्लांग, बाँग मुर्गा जब देता |
चमचे धूर्त दलाल, विषय के पंडित नेता |
रहे चापते माल, सोचते हैं आगे की |
गले हमेशा दाल, टांग चापे मुर्गे की ||
पड़ा तरुण तब बोल, अलग रहिये अब पापा-
पापा सब कुछ जानते, वे तो हैं विद्वान।
बच्चा बच्चों से कहे, मेरे पिता महान ।
मेरे पिता महान, शान में पढ़े कसीदे।
कहता किन्तु किशोर, ध्वस्त जब हो उम्मीदें।
कम व्यवहारिक ज्ञान, किया चिड़चिड़ा बुढ़ापा।
पड़ा तरुण तब बोल, अलग रहिये अब पापा।।
Tuesday, 12 July 2016
रविकर जैसे शेर को, कुत्ते भी लें घेर-
पानी ढोने का करे, जो बन्दा व्यापार |
मुई प्यास कैसे भला, उसे सकेगी मार ||
प्रगति-पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी-बाज |
लेना-देना कर रहा, फिर भी सभ्य-समाज ||
मोटी-चमड़ी में करें, खटमल जब भी छेद |
तड़प तड़प के झट मरे, पी के खून-सफ़ेद ||
गुण-अवगुण की खान तन, मन संवेदनशील ।
इसीलिए इंसान हूँ, रविकर मस्त दलील ||
समय समय की बात है, समय समय का फेर |
रविकर जैसे शेर को, कुत्ते भी लें घेर ||
शादी की तीसवीं वर्षगाँठ
दिनेश चन्द्र गुप्ता रविकर
1 घंटा
·
बत्ती सी कौंधी सुबह, जब देखी यह टैग।
गई खुमारी सब उतर, आधा दर्जन पैग।
आधा दर्जन पैग, मुबारक वर्षगाँठ हो।
तीस साल व्यतीत, हमारे और ठाठ हों।
रहो स्वस्थ सानन्द, लगे कुछ यहाँ कमी सी।
...
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Manu Gupta
,
Swasti Medha
और
2 अन्य लोग
के साथ.
1 घंटा
·
We wish you a very Happy Anniversary Papa (दिनेश चन्द्र गुप्ता) n Mummy (
Seema Gupta
)
:-)
Wednesday, 6 July 2016
करो गलत नित सिद्ध, लगी लत कैसे जाती
झुकते झुकते झुक गयी, कमर सहित यह रीढ़ |
मुश्किल से रिश्ता बचा, बची तुम्हारी ईढ़ |
बची तुम्हारी ईढ़, तभी भरदिन गुर्राती |
करो गलत नित सिद्ध, लगी लत कैसे जाती |
रविकर सही तथापि, सही हर झिड़की रुक रुक।
मलती फिर तुम हाथ, जिया जब सम्मुख झुक झुक।।
Sunday, 3 July 2016
सत्ता री मत बैठ तू, सत्तारी हर वक्त
सत्ता री मत बैठ तू, सत्तारी हर वक्त |
जन-गण-मन मरता दिखा, रोक बहाना रक्त |
रोक बहाना रक्त, खोज मत नया-बहाना |
दुष्ट सजा ना पाय, शुरू कर फौज सजाना |
सत्तावन सी क्रान्ति, करे जन-मन तैयारी |
शेष बची ना भ्रान्ति, बैठ मत अब सत्तारी ||
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