Saturday, 1 October 2016

डाल मट्ठा रोज जड़ मे मुफ्त लेजा।।

बोलियों से चोट खाया है कलेजा।
ऐ शराफत अब जरा तशरीफ लेजा।।
शब्द भेजा खा रहे थे अब तलक वो
क्यूं ललक से यूं पलट पैगाम भेजा।।
जो गले मिलते रहे थे प्यार से तब
खाट पर बैठे, पड़ो उनके गले जा।
जब चुगी चिड़िया हमारा खेत सारा
हाथ पर यूं हाथ रखकर मत मले जा।
दुष्ट करते खोखला खा कर यहीं का
गा रहे जो शत्रु की, फौरन चले जा।
याद रख रविकर सदी से चोट सहता
हो बरेली बांस वापस अब खले जा।।
रोज बावन हाथ बढ़ती बेल विष की
डाल मट्ठा रोज जड़ मे मुफ्त लेजा।।

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