बातों में लफ्फाजी देखो।
छल छंदों की बाजी देखो।।
मत दाता की सूरत ताको।
नेता से नाराजी देखो।।
लम्बी चैटों से क्या होगा।
पंडित देखो काजी देखो।।
अंधा राजा अंधी नगरी।
खाजा खा जा भाजी देखो।।
लंगड़ी मारे अपना बेटा
बप्पा चाचा पाजी देखो।।
पैसा तो हरदम जीता है
रविकर घटना ताजी देखो।।
देखना ही है । बढ़िया ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-01-2017) को "कुछ तो करें हम भी" (चर्चा अंक-2580) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'