बापू को कंधा दिया, बस्ता धरा उतार।
तेरह दिन में हो गया, रविकर जिम्मेदार।।
कर्तव्यों का निर्वहन, किया बहन का ब्याह।
भाई पैरों पर खड़ा, बदले किन्तु निगाह ।।
मैया ले आती बहू, पोती रही खिलाय।
खींचतान सहता रहा, सूझे नही उपाय।।
आँगन में दीवाल कर, बँधी खेत में मेड़।
पट्टीदारों से हुई, शुरू रोज मुठभेड़।।
खेत बेंच के कर लिया, रविकर जमा दहेज।
कल बिटिया का ब्याह है, आँसू रखे सहेज।।
शीघ्र गिरे दीवार वह, जिसमें पड़े दरार।
पड़ती रिश्तो में जहाँ, खड़ी करे दीवार।।
कर ग्रहण रविकर सतत्, रख हौसले बुलन्द।।
करे शशक शक जीत पर, कछुवा छुवा लकीर।
छली गयी मछली जहाँ, मेढक ढकता नीर ।
छली गयी मछली जहाँ, मेढक ढकता नीर ।
बढ़िया दोहे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
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ReplyDeleteनमस्ते,
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