सब घबराहट नाहक है, धरती बड़ी नियामक है
इस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है
पावन पुस्तक का आधार, लेकर उल्टा-पुल्टा सार ऐसे खोजी को धिक्कार, करते भय का कटु-व्यापार,
गर इसपर विश्वास अपार, नहीं पंथ का दुष्प्रचार करके पक्का सोच-विचार, खुद को ले जल्दी से मार
जो आनी सचमुच शामत है, इस इक्कीस क़यामत है
भ्रामक है अति भ्रामक है, धरती बड़ी नियामक है
सर्दी इधर उधर बरसात, घटते दिन तो बढती रातलावा से हो सत्यानाश, बढती फिर जीने की आस
तेल उगलती तपती रेत, बन जाते उपजाऊ खेत
करे संतुलित सारी चीज, अन्तर्निहित रखे हर बीज
पाप हमारे करती माफ़, बाधाओं को करती साफ़ सब घबराहट नाहक है, धरती बड़ी नियामक है
इस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार (06-08-2013) के "हकीकत से सामना" (मंगवारीय चर्चा-अंकः1329) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सब घबराहट नाहक है, धरती बड़ी नियामक है
ReplyDeleteइस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है
पोल खोलती ढोल की सार्तःक प्रस्तुति
बढिया, बहुत सुंदर
ReplyDeleteइस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है
ReplyDelete..भ्रम फ़ैलाने वालों की कोई कमी नहीं ...
बहुत बढ़िया ....देखते हैं कैसे निकलता है इक्कीस का दिन ..