Monday 22 August 2011

अन्ना बड़े महान


कद - काठी  से शास्त्री, धोती - कुरता श्वेत |
बापू  जैसी  सादगी,  दृढ़ता  सत्य  समेत ||

निश्छल  और  विनम्र  है, मंद-मंद मुस्कान |
मितभाषी मृदु-छंद है, उनका हर व्याख्यान ||

अभिव्यक्ति रोचक लगे, जागे मन विश्वास |  
बाल-वृद्ध-युवजन जुड़े, आस छुवे आकाश ||

दूरदर्शिता  की  करें,  कड़ी   परीक्षा  पास |
जोखिम से डरते नहीं, नहीं अन्धविश्वास ||

सद-उद्देश्यों  के  लिए, लड़ा  रहे  वे जान |
सिद्ध-पुरुष की खूबियाँ, अन्ना बड़े महान ||

17 comments:

  1. अच्छी प्रस्तुति ...शब्दों में अन्ना का व्यक्तित्व दर्शा दिया

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  2. एकदम सटीक और सार्थक लिखा है आपने ...

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  3. बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं आपने।
    इन्कलाब जिन्दाबाद।

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  4. सच कहा आपने -अन्ना बड़े महान.सार्थक प्रस्तुति .आभार
    BHARTIY NARI

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  5. दूरदर्शिता की करें, कड़ी परीक्षा पास |
    जोखिम से डरते नहीं, नहीं अन्धविश्वास ||
    अन्ना का परिचय सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है आपने और सही भी.बधाई

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  6. समझ नहीं पा रहा किसकी तारीफ़ करूँ आपके दोहों की या अन्ना की...चलो दोनों की मान लो भाई...दोनों महान

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  8. ,इस दौर में आपका संग साथ ही अन्ना जी की ताकत है .ऊर्जा और आंच दीजिए इस मूक क्रान्ति को .बेहतरीन जानकारी दी है आपने बहुत अच्छी पोस्ट . जय ,जय अन्ना जी ,जय भारत .
    सद-उद्देश्यों के लिए, लड़ा रहे वे जान |
    कद - काठी से शास्त्री, धोती - कुरता श्वेत |
    बापू जैसी सादगी, दृढ़ता सत्य समेत ||
    बेहद खूबसूरत व्यक्ति चित्र हमारे अन्ना जी का ,आभार ....
    ram ram bhai

    सोमवार, २२ अगस्त २०११
    अन्ना जी की सेहत खतरनाक रुख ले रही है . /
    http://veerubhai1947.blogspot.com/
    .
    .आभार .....इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार ./ http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com
    Tuesday, August 23, 2011

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  9. सच कहा आपने अन्ना बड़े महान...सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति...

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  10. इन्कलाब जिन्दाबाद।

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  11. योग्य उत्तराधिकारी की तलाश .
    "एकदा "(नभाटा ,२४ अगस्त )में एक बोध कथा प्रकाशित हुई है "योग्य उत्तराधिकारी "ज़िक्र है राजा प्रसेनजित ने एक मर्तबा अपने पुत्रों की आज़माइश करने के लिए उन्हें खजाने से अपनी कोई भी एक मनपसंद चीज़ चुनने के लिए कहा .सभी पुत्रों ने अपनी पसंद की एक एक चीज़ चुन ली .लेकिन इनमे से एक राजकुमार ने महल के चबूतरे पर रखी "तुरही "अपने तैं चुनी .राजा प्रसेनजित ने आश्चर्य मिश्रित भाव से पूछा इस "रणभेरी "को तुमने वरीयता क्यों दी जबकी राजमहल में एक से बढ़के एक साज़ थे ."महाराज यह तुरही मुझे प्रजा से जोड़े रहेगी .हमारे बीच एक संवाद ,एक कनेक्टिविटी का सशक्त ज़रिया बनेगी .मेरे लिए सभी प्रजाजन यकसां प्रिय हैं .मैं चाहता हूँ मैं भी उनका चहेता बन रहूँ .परस्पर हम सुख दुःख बाँटें .मैं प्रजा के और प्रजा मेरे सुख दुःख में शरीक हो .राजा ने इसी राजकुमार को अपना उत्तराधिकारी बना दिया ।
    स्वतंत्र भारत ऐसे ही सुयोग्य उत्तराधिकारी की तलाश में भटक रहा है ।
    यहाँ कथित उत्तराधिकारी के ऊपर एक अमूर्त सत्ता है ,सुपर -पावर है जिसे "हाईकमान "कहतें हैं ।
    तुरही जिसके पास है वह राम लीला मैदान में आमरण अनशन पर बैठा हुआ है ।
    प्रधानमन्त्री नाम का निरीह प्राणि सात सालों से बराबर छला जा रहा है .बात भी करता है तो ऐसा लगता है माफ़ी मांग रहा है .सारी सत्ता लोक तंत्र की इस अलोकतांत्रिक हाई कमान के पास है .प्रधान मंत्री दिखावे की तीहल से ज्यादा नहीं हैं .न बेचारे के कोई अनुगामी हैं न महत्वकांक्षा ,न राजनीतिक वजन .
    यहाँ बारहा ऐसा ही हुआ है ,जिसने भी सुयोग्य राजकुमार बनने की कोशिश की उसके पैर के नीचे की लाल जाज़म खींच ली गई .बेचारे लाल बहादुर शाश्त्री तो इसी गम में चल भी बसे. ये ही वो शक्श थे जिन्होनें पाकिस्तान के दांत १९६५ में तोड़ दिए थे ।
    ब्लडी हाई -कमान ने शाश्त्री जी को ही उस मुल्क का मेक्सिलोफेशियल सर्जन बनने के लिए विवश किया .कभी सिंडिकेट कभी इन्दिकेट .इंदिरा जी ने खुला खेल फरुख्खाबादी खेला . जाज़म विश्वनाथ प्रताप सिंह जी के नीछे से भी खींचा गया .महज़ हाईकमान रूपा पात्र -पात्राएं,पार्टियां बदलतीं रहीं .अटल जी अपने हुनर से सबको साथ लेने की प्रवृत्ति से पक्ष -विपक्ष को यकसां ,बचे रहे .चन्द्र शेखर जी का भी यही हश्र हुआ .आज खेला इटली से चल रहा है .बड़ा भारी रिमोट है .सात समुन्दर पार से भी असर बनाए हुए है .सुयोग्य उत्तराधिकार को नचाये हुए है .

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  12. देश के कार्य में अति व्यस्त होने के कारण एक लम्बे अंतराल के बाद आप के ब्लाग पे आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
    आपकी विचार से पूर्णत: सहमत हूँ...आज देश मे बच्चे बच्चे की जुबान पर भ्रष्टाचार का जिकर है अब नियम क़ानून बनाने का समय गया, अब देश की जनता को अपनी रक्षा स्वयं करनी पड़ेगी हतियार उठाने पड़ेगा, अब लोगो को भगत सिंह, और चंद्रशेखर आज़ाद बनना पड़ेगा ......और एक एक करके इनको बम से उड़ाना पड़ेगा .....................बहुत बुरा समय आ गया है

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  13. बृहस्पतिवार, २५ अगस्त २०११
    संसद की प्रासंगिकता क्या है ?
    अन्ना जी का जीवन देश की नैतिक शक्ति का जीवन है जिसे हर हाल बचाना ज़रूरी है .सरकार का क्या है एक जायेगी दूसरी आ जायेगी लेकिन दूसरे "अन्ना जी कहाँ से लाइयेगा "?
    और फिर ऐसी संसद की प्रासंगिकता ही क्या है जिसने गत ६४ सालों में एक "प्रति -समाज" की स्थापना की है समाज को खंड खंड विखंडित करके ,टुकडा टुकडा तोड़कर ।जिसमें औरत की अस्मत के लूटेरे हैं ,समाज को बाँट कर लड़ाने वाले धूर्त हैं .
    मनमोहन जी गोल मोल भाषा न बोलें?कौन सी "स्टेंडिंग कमेटी "की बात कर रहें हैं ,जहां महोदय कथित सशक्त जन लोक पाल बिल के साथ ,एक प्रति -जन -पाल बिल भी भिजवाना चाहतें है ?संसद क्या" सिटिंग कमेटी" है जिसके ऊपर एक स्टेंडिंग कमेटी बैठी है .अ-संवैधानिक "नेशनल एडवाइज़री कमेटी"विराजमान है जहां जाकर जी हुजूरी करतें हैं .नहीं चाहिए हमें ऐसी संसद जहां पहले भी डाकू चुनके आते थे ,आज भी पैसा बंटवा कर सांसद खरीदार आतें हैं .डाकू विराजमान हैं .चारा -किंग हैं .अखाड़े बाज़ और अपहरण माफिया किंग्स हैं ।
    आप लोग चुनकर आयें हैं ?वोटोक्रेसी को आप लोग प्रजा तंत्र कहतें हैं ?
    क्या करेंगें हम ऐसे "मौसेरे भाइयों की नैतिक शक्ति विहीन संसद का"?

    समय सीमा तय करें मनमोहन ,सीधी बात करें ,गोल -गोल वृत्त में देश की मेधा और आम जन को न घुमाएं नचायें ।
    "अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल ".बारी अब तेरी है .
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  14. अन्ना को बहुत अच्छे से पेश किया है आपने ... उनके चरित्र को निखर दिया .. लाजवाब ...

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  15. प्रिय रविकर जी अन्ना की छवि का सुन्दर चित्रण कर बहुत ही सराहनीय कार्य ...जय हिंद जय भारत ...आइये आशावान रहें ....और कुछ करते रहें...
    भ्रमर ५

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