भड़की भारी भीड़ फिर, कब तक सहे अधर्म ।
घायल करता मर्म को, प्रतिदिन का दुष्कर्म ।
प्रतिदिन का दुष्कर्म, पेट गुडिया का फाड़े ।
दहले दिल्ली देश, दरिंदा दुष्ट दहाड़े ।
नहीं सुरक्षित दीख, देश की दिल्ली लड़की ।
माँ बेटी असहाय, पुन: चिंगारी भड़की ॥
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छद्म वेश धर दुष्टता, पाए क्योंकर ठौर ।
बोझिल है वातावरण , जहर बुझा नव-दौर ।
जहर बुझा नव-दौर, गौर से दुष्ट परखिये ।
भरे पड़े हैवान, सुरक्षित बच्चे रखिये ।
दादा दादी चेत, पुन: ले जिम्मा रविकर ।
विश्वासी आश्वस्त, लूटते छद्म वेश धर ॥
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धाता कामी कापुरुष, रौंदे बेबस नार ।
बरबस बस पर चढ़ हवस, करे जुल्म-संहार । करे जुल्म-संहार, नहीं मिल रही सुरक्षा । गली हाट घर द्वार, सुरक्षित कितनी कक्षा । करो हिफाजत स्वयं, कुअवसर असमय आता । हुआ विधाता बाम, पुरुष जो बना बिधाता ॥ |
दारुण-लीला होय, नारि की अस्मत लीला-
टैग लगी लाइन मिली, लिख दिल्ली दिलदार -
दिल्ली में पर्यटन का, करना है विस्तार ।
टैग लगी लाइन मिली, लिख दिल्ली दिलदार ।
लिख दिल्ली दिलदार, छुपा इतिहास अनोखा ।
किन्तु रहो हुशियार, यहाँ पग पग पर धोखा ।
लूट क़त्ल दुष्कर्म, ठोकते मुजरिम किल्ली ।
रख ताबूत तयार, रिझाए दुनिया दिल्ली ॥
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nice lines.
ReplyDeleteसचमुच बडी शर्मनाक स्थितियां हैं।
ReplyDeleteऔर कब तक होगा ये सब..?
ReplyDeleteआखिर कब तक यही लाचार व्यवस्था वाली स्थतियाँ बनी रहेगी !!
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ !!
आभार माननीय !!
इस काली रात की उजली सुबह ज़रूर होगी....
ReplyDeleteधन्यवाद....
बेहद शर्मनाक और दर्दनाक स्तिथिति ,पृथ्वी दिवस की बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,,बढ़िया रचनाऐ ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,