Sunday, 21 April 2013

घायल करता मर्म को, प्रतिदिन का दुष्कर्म -


 भड़की भारी भीड़ फिर, कब तक सहे अधर्म । 
घायल करता मर्म को, प्रतिदिन का दुष्कर्म ।
प्रतिदिन का दुष्कर्म, पेट गुडिया का फाड़े । 
दहले दिल्ली देश, दरिंदा दुष्ट दहाड़े । 
नहीं सुरक्षित दीख, देश की दिल्ली लड़की । 
माँ बेटी असहाय, पुन: चिंगारी भड़की ॥ 

छद्म वेश धर दुष्टता, पाए क्योंकर ठौर । 
 बोझिल है वातावरण , जहर बुझा नव-दौर । 
जहर बुझा नव-दौर, गौर से दुष्ट परखिये । 
भरे पड़े हैवान, सुरक्षित बच्चे रखिये । 
दादा दादी चेत, पुन: ले जिम्मा रविकर ।  
 विश्वासी आश्वस्त, लूटते छद्म वेश धर ॥ 
धाता कामी कापुरुष, रौंदे बेबस नार । 
बरबस बस पर चढ़ हवस, करे जुल्म-संहार । 

करे जुल्म-संहार, नहीं मिल रही सुरक्षा । 
गली हाट घर द्वार, सुरक्षित कितनी कक्षा ।  
 
करो हिफाजत स्वयं,  कुअवसर असमय आता । 
हुआ विधाता बाम, पुरुष जो बना बिधाता ॥ 

दारुण-लीला होय, नारि की अस्मत लीला-

दाग लगाए दुष्टता,  पर दिल्ली दिलदार ।
 शील-भंग दुष्कर्म पर,  चुप शीला-सरकार
। 

चुप शीला-सरकार, मिनिस्टर सन्न सुशीला । 
दारुण-लीला होय, नारि की अस्मत लीला । 

नीति-नियम कानून, व्यवस्था से भर पाए । 
पुलिस दाग के तोप, दाग पर दाग लगाए ॥ 

टैग लगी लाइन मिली, लिख दिल्ली दिलदार -

दिल्ली में पर्यटन का, करना है विस्तार । 

टैग लगी लाइन मिली, लिख दिल्ली दिलदार । 


लिख दिल्ली दिलदार, छुपा इतिहास अनोखा । 

किन्तु रहो हुशियार, यहाँ पग पग पर धोखा । 


लूट क़त्ल दुष्कर्म, ठोकते मुजरिम किल्ली । 

रख ताबूत तयार, रिझाए दुनिया दिल्ली ॥ 

7 comments:

  1. सचमुच बडी शर्मनाक स्थितियां हैं।

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  2. और कब तक होगा ये सब..?

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  3. आखिर कब तक यही लाचार व्यवस्था वाली स्थतियाँ बनी रहेगी !!
    सुन्दर पंक्तियाँ !!
    आभार माननीय !!

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  4. इस काली रात की उजली सुबह ज़रूर होगी....
    धन्यवाद....

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  5. बेहद शर्मनाक और दर्दनाक स्तिथिति ,पृथ्वी दिवस की बधाई

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