NAND KISHOR GUPTA
वारी जाऊं क्यूँ कहूँ, फेरे पुरुष निगाह ।
बन-ठन कर फेरे लगा, रहा कलेजा दाह ।
रहा कलेजा दाह, राह पर धूल फांकता ।
गुजरा पूरा साल, नया कानून सालता।
चुकता जाए धैर्य, करे क्या कन्या क्वाँरी ।
मर्द-जात बदजात, व्यर्थ ही बदन संवारी ।
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मुदित-मुदिर मुद्रा मटक, मुद्रा मुफ्त कमाय -
मुदित-मुदिर मुद्रा मटक, मुद्रा मुफ्त कमाय ।
जिला रही नश्वर बदन, जिला-जवाँर घुमाय ।
यमक अलंकार मुद्रा / जिला
जिला-जवाँर घुमाय, जवानी के जलवे हैं ।
रूपाजीवा हाय, हुवे दंगे बलवे हैं ।
मरे हजारों लोग, लांछना लेकिन अनुचित ।
रविकर मरता जाय, मगन मन झांके प्रमुदित । ।
मुदिर=कामुक
रूपाजीवा = वेश्या
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रहा खुदा को भूल, बोलता खुद की जै जै-
कासी काबा कोसती, काया कोसों दूर ।
सुरसाई सुमिरै नहीं, सोहै सुरा सुरूर ।
सोहै सुरा सुरूर, इसी में जीवन खोजै ।
रहा खुदा को भूल, बोलता खुद की जै जै ।
खाना पीना मौज, स्वार्थी अति कटु-भाषी ।
भोगे कष्ट-अपार, प्राण की कठिन निकासी ।
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बहुत प्रभावी उम्दा प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteनवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
कासी काबा कोसती, काया कोसों दूर ।
ReplyDeleteसुरसाई सुमिरै नहीं, सोहै सुरा सुरूर ।
काशी काबा ...
सुन्दर प्रस्तुति .
बेहद सटीक और सुन्दर प्रभु....लाजवाब!
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
लाजबाब
ReplyDeleteबेशक एक बेहतरीन संयोजन
ReplyDeletebehatareen
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