गाँव-राँव की बात यह, आकर्षक दमदार ।
हावी कृत्रिमता हुई, लोग होंय अनुदार ।।
लोग होंय अनुदार, गाँव की बात निराली ।
हावी कृत्रिमता हुई, लोग होंय अनुदार ।।
लोग होंय अनुदार, गाँव की बात निराली ।
भागदौड़ के शहर, अजूबे खाली-खाली ।।
झेलें कस्बे ग्राम, मुसीबत किन्तु दांव की ।
लगे बदलने लोग, हवा अब गाँव-राँव की ।।पारस्परिक यह लेना देना, परम्परा है प्यार की ।
प्रीत्यर्थी ये छुआ-छुआना, मर्यादित अभिसार की ।।
अनुशासित अनुपम उड़ान की, अनुभूती अंतर्मन कर ले ।
लहरें नाम मिटा देती हैं, अच्छा है पत्थर पर लिखता ।
कोने में करता स्थापित, हर पल साथी सम्मुख दिखता ।।
यादों को कितना खुबसूरत, कविवर आप बना देते हो ।
पत्थर पर लिखकर क्या करना, दिल में सही सजा लेते हो ।।
कोने में करता स्थापित, हर पल साथी सम्मुख दिखता ।।
यादों को कितना खुबसूरत, कविवर आप बना देते हो ।
पत्थर पर लिखकर क्या करना, दिल में सही सजा लेते हो ।।
सहज सरल उत्तर है प्रियवर, सतत-सात्विक नेह दिखा है ।
वास कर रही पुण्यात्मा, दृग्भक्ती दृढ़-देह दिखा है ।।
"कुछ ख्वाब- कुछ मंजिले"
यादें - अमरेन्द्र शुक्ल 'अमर'
ख्वाबगाह से बाहर निकले, ख़्वाब ख्वाह हो जाते हैं ।
ख्वाहमखाह ख्यालों को खरभर, खार खेद बो जाते हैं ।।
दिनेश जी,...
ReplyDeleteयह टिप्पणी नही भावनाओं के उदगार है
आप खुशरहे,यही ब्लागजगत का प्यार है
बहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,....
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बहुत सुंदर भावमयी टिप्पणियां ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा स्रजन!
ReplyDeletebahut sunder prastuti, sabhi link behtreen...........
ReplyDeletepadhker accha lga...........
Lajawab prastuti...Waah...Badhai Swiikaren...
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