Tuesday 9 October 2012

छोड़ मदरसा भाग, प्लेट धोवे इक होटल




शाम है धुँआ धुँआ 

 प्रवीण पाण्डेय


बिल्ली छींका चाटती, जब तब जाए टूट ।
लुकाछिपी चलती नहीं, हर दिन लेती लूट ।
हर दिन लेती लूट, रूठ भी जाये अक्सर ।
पर सम्बन्ध अटूट, बिलौटे रहना बचकर ।
हो श्रीमान प्रवीण, चाल चलती है दिल्ली ।
धुवाँ धुवां सा सीन, बजाती घंटी बिल्ली ।।




जीवन का सच ...

Suman  

 रिश्ते नाते सत्य यह, मिथ्या जगत विचार ।
वो ही शाश्वत सत्य है, वो ही विश्वाधार ।
वो ही विश्वाधार, उसी के हाथों डोरी ।
कठपुतली सा नाच, गर्व कर देह निगोरी ।
हो जाती है मगन, भूल कर अटल मृत्यु को ।
क्षिति जल पावक गगन, वायु के असल कृत्य को ।।

बाल श्रमिक

 कल रोटी पाया नहीं, केवल मिड-डे मील ।
बापू-दारुबाज को, दारु लेती लील ।
दारु लेती लील, नोचते माँ को बच्चे ।
समझदार यह एक, शेष तो बेहद कच्चे ।
छोड़ मदरसा भाग, प्लेट धोवे इक होटल ।
जान बचा ले आज, सँवारे तब ना वह कल । 

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मकड़ी मानुष में फरक, घातक खुद का जाल ।
गड्ढा खोदे गैर हित, बनता खुद का काल ।
बनता खुद का काल, नजर फिर भी न नीची ।
करता नए बवाल, पाप का पादप सींची ।
बैठा काटे डाल, जलावन वाली लकड़ी ।
पाया नहीं सँभाल, मौत की फाँसे मकड़ी ।।

नाना का नाम धो डाला खुर्शीद दंपत्ति ने ...

आधा सच  

दुर्मिल सवैया का अभ्यास -

सलमान मियाँ अब जान दिया, जब लाख करोड़ मिला विकलांगी ।

अब जाकिर सा शुभ नाम बिका, खुरशीद दगा दबता सरवांगी ।

वडरा कचरा कल झेल गया, अखरा अपना लफड़ा एकांगी ।

असहाय शरीर रहा अकुलाय चुरा सब खाय गया हतभागी ।।

बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों-

मरने से ज्यादा कठिन, जीना इस संसार ।
करे पलायन लोक से, होगा न उद्धार ।  
होगा न उद्धार, जरा पर-हित तो साधो ।
 बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों ।
फैले सत्य प्रकाश, स्वयं पर जय करने से । 
होय लोक-कल्याण, बुराई के मरने से ।  


भारत बनाना रिपब्लिक नहीं, कुप्रंबंधन का शिकार है. (India-banana-bad-mgmt)

अवधेश पाण्डेय 

नहीं बनाना वाडरा, नाना मम्मा दोष ।
मूरख जनता बन रही, लुटा लुटा के कोष ।
लुटा लुटा के कोष , होश सत्ता ने खोया ।
वैमनस्य के बीज, सभी गाँवों में बोया ।
लोकतंत्र की फसल, बिना पानी उगवाना ।
केला केलि करोड़ , अकेला देश बनाना ।।

11 comments:

  1. इसी शीर्षक की एक किताब आ जाये तो क्या बात है !

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  2. वाह ... बहुत बढिया।

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  3. रविकर जी की कविताएँ हमें
    ब्लॉग पर उर्जा बहुत है देती
    उर्जा है बहुत देती कविताये
    नहीं है ये तुकबंदी, ओसकण
    है ये आसमान से बरसती !

    बहुत बहुत आभार :)
    jaruar ye tukbandi hai ....

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  4. कुण्डिया छंद तो आपको सिद्ध हो गये हैं!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  5. रिश्ते नाते सत्य यह, मिथ्या जगत विचार ।
    वो ही शाश्वत सत्य है, वो ही विश्वाधार ।
    वो ही विश्वाधार, उसी के हाथों डोरी ।
    कठपुतली सा नाच, गर्व कर देह निगोरी ।
    हो जाती है मगन, भूल कर अटल मृत्यु को ।
    क्षिति जल पावक गगन, वायु के असल कृत्य को ।।

    जीवन का यथार्थ दर्शन और पञ्च भूत की शाश्वतता का दिग्दर्शन लिए हैं ये पंक्तियाँ .

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  6. बाल श्रमिक
    अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)

    कल रोटी पाया नहीं, केवल मिड-डे मील ।
    बापू-दारुबाज को, दारु लेती लील ।
    दारु लेती लील, नोचते माँ को बच्चे ।
    समझदार यह एक, शेष तो बेहद कच्चे ।
    छोड़ मदरसा भाग, प्लेट धोवे इक होटल ।
    जान बचा ले आज, सँवारे तब ना वह कल ।

    बाल श्रम का कारुणिक मानवीकरण .

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  7. बाल श्रम का कारुणिक मानवीकरण .


    बालश्रमिक को देखकर ,मन को लागे ठेस
    बचपन बँधुआ हो गया , देहरी भइ बिदेस
    देहरी भइ बिदेस , भूलता खेल –खिलौने
    छोटा - सा मजदूर , दाम भी औने – पौने
    भेजे शाला कौन ? दुलारे कर्म–पथिक को
    मन को लागे ठेस, देखकर बालश्रमिक को ||

    कहीं चूड़ियाँ लाख की, कहीं बगीचे जाय |
    कहीं कारपेट बन रहे, बीड़ी कहीं बनाय |
    बीड़ी कहीं बनाय, आय में करे इजाफा |
    सत्ता का सब स्वांग, देखकर भांप लिफाफा |
    होमवर्क को भूल, घरों में तले पूड़ियाँ |
    चौका बर्तन करे, टूटती नहीं चूड़ियाँ ||

    इन दोनों महारथियों ने (रविकर जी ,अरुण निगम जी ने )बाल श्रम के पूरे विस्तृत क्षेत्र की पूर्ण पड़ताल की है इस विमर्श में .

    छोटी सी गाड़ी लुढ़कती जाए ,

    यही बाल श्रमिक कहलाए .

    घरु रामू मल्टीटासकर है ,

    कहीं पर है रामू ,कहीं बहादुर .

    भाई साहब बाल श्रम पर एक सार्थक विमर्श चलाया है आप महानुभावों ने

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  8. बहुत सुंदर लिंक्स
    मुझे स्थान देने के लिए आभार

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  9. इन लिक्खाड़ में कुछ बेहतरीन लिंक्स मिले, कुछ सामयिक संदर्भों पर बेहतरीन रचनाएं भी।

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  10. लाजवाब !

    कौन नहीं चाहता पारस आये
    आ कर बस छू जाये
    और पत्थर किसी का
    कुछ ऎसे ही सोना हो जाये !

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  11. बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर प्रस्तुति ...

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