रचते पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की
छंदों की महिमा विषद, चर्चित शुभ-सन्देश | 
शिल्पबद्ध कविता करो, करो ध्यान अनिमेष करे ध्यान अनिमेष, आत्म-उत्थान जरुरी | सच्चा व्यक्ति विशेष, होय अभिलाषा पूरी | रचते-पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की | सच्चा हो ईमान, सुनों महिमा छंदों की ||  | अक्स विहीन आईनासंगीता स्वरुप ( गीत )
 गीत.......मेरी अनुभूतियाँ 
मन को मनमति पोट ली, ली पोटली उतार । चुप्प चुकाने चल पड़ी, दादी सभी उधार । दादी सभी उधार, दर्प-दर्पण दल कोरा । नाती पोते आदि, किसी को नहीं अगोरा । शंख सीप जल रत्न, बरसता रिमझिम सावन । रविकर सफल प्रयत्न, पिरोये मनके मन-मन ।  | 
 
 
 
 
 
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कुछ खाने की चीज़ों से एलर्जी के पीछे हो सकता है कीटनाशक रसायनों का हाथ
Virendra Kumar Sharma  
 कीट-पतंगे मारते, कई रसायन खूब | 
घुल जाते पर खाद्य में, हो खाने से ऊब | हो खाने से ऊब, एलर्जी का है कारण | पानी में भी अंश, जरुरी मित्र निवारण | भंडारण का डंश, देह पर करता दंगे | रहिये सदा सचेत, मिटा के कीट पतंगे |  | 
 
कार्टून कुछ बोलता है- पैरेंट्स व्यथा !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"  
आयर-लैंडी भ्रूण हो, हो असमय नहिं मौत । बचपन बीते नार्वे, मातु-पिता गर सौत । मातु-पिता गर सौत, हेकड़ी वहां भुला दे । यू के में पढ़ युवा, सेक्स ब्राजील खुला दे । शादी भारत आय, सके नहिं लेकिन कायर । बिता बुढापा जाय, सही सबसे है आयर ।।  | 
 
दुष्ट-मनों की ग्रन्थियां, लेती सखी टटोल-
रविकर *परुषा पथ प्रखर, सत्य-सत्य सब बोल । 
दुष्ट-मनों की ग्रन्थियां, लेती सखी टटोल । 
*काव्य में कठोर शब्दों / कठोर वर्णों  / लम्बे समासों का प्रयोग  
लेती सखी टटोल, भूलते जो मर्यादा ।
 
ऐसे मानव ढेर, कटुक-भाषण विष-ज्यादा । 
छलनी करें करेज, मगर जब पड़ती खुद पर ।
 
मांग दया की भीख, समर्पण करते रविकर ।। 
 | रचते पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की
छंदों की महिमा विषद, चर्चित शुभ-सन्देश | 
कविता रच ले पाठ कर, करे ध्यान अनिमेष | करे ध्यान अनिमेष, आत्म उत्थान जरुरी | सच्चा व्यक्ति विशेष, होय अभिलाषा पूरी | रचते पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की | सच्चा हो ईमान, सुनों महिमा छंदों की ||  | 
 
हरि अनंत हरी कथा अनंता !!!
Sonal Rastogi  
  करने को तो बहुत है, पर बढ़िया यह काम । आस-पास जो भी रहे, जीना करो हराम । जीना करो हराम, सामने मधु की गोली । पीछे हों षड्यंत्र, जहर जीवन में घोली । धारावाहिक सार, चलो सब सजे संवरने । कोई भी त्यौहार, बहू को सारे करने ।।  | 
 
 
बेहतरीन लिंक्स संयोजित किये हैं आपने ... आभार
ReplyDeleteफिल्म 'मुक़द्दर का सिकंदर' में भी ऐसा ही माना गया है.
ReplyDelete"बेवफा है जिंदगी"
बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -
ReplyDeleteकाम से तो रोज घूमे काम बिन भी घूम बन्दे |
नाम में कुछ ना धरा गुमनाम होकर झूम बन्दे |
बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -
कुछ करो या ना करो हर ठाँव को ले चूम बन्दे ।
बेवफा है जिंदगी इसको नहीं ज्यादा पढो अब -
दर्शनों में आजकल मचती रही यह धूम बन्दे ।
दे उड़ा धन-दौलतें सब, कौन तू लाया जहाँ में-
मस्तियाँ देखो निकलकर पस्त हो मत सूम बन्दे ।
ले पहन रविकर लँगोटी, एक खोटी सी चवन्नी -
राह पर चौकस उछालो, जब नहीं मालूम बन्दे ।।
कुछ भी बोलो सामने रविकर के बन जाता है छंद .
बेहतरीन, आभार रविकर जी !
ReplyDeleteखूबशूरत सुंदर टिप्पणियों के साथ लिंकों का संयोजन,,,
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
जिंदगी तो है बेवफा, एक दिन ठुकराना है |
ReplyDeleteरविकर बांधे कुंडलियाँ, टिप्पणियाँ लगाना है ||
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
बढ़िया प्रस्तुति सभी सेतु सराहनी काव्यात्मक टिपण्णी से लैस हैं पढ़ें हैं .
ReplyDeleteफिर भी प्यार तो उसी से है जी ...कहा जाईयेगा उसे छोड़ कर साधुवाद जी |बेहतरीन, आभार रविकर जी |
ReplyDeleteबेवफा है जिंदगी इसको , नहीं ज्यादा पढ़ो अब
ReplyDeleteप्रेम - मिट्टी गूँथ कर , छोटी सही-मूरत गढ़ो अब |
कुछ तो होगा बोझ हल्का , मान लो अपनी खताएँ
मत किसी मासूम के सर,गलतियाँ सारी मढ़ो अब |
क्या पता कि पायदानें , खत्म होंगी किस ठिकाने
उम्र की सीढ़ी जरा-सी,सम्हल कर इस पर चढ़ो अब |