Thursday, 28 February 2013

जीता औरंगजेब, जनेऊ काटे करकश-

आनुवंशिक तौर पर सुधरी फसलों की हकीकत ,कितना खतरनाक है यह खेल जो खेला जा रहा है .(दूसरी क़िस्त ) .


Virendra Kumar Sharma 

धरती बंजर कर रहा, पौरुष पर आघात |
सत्यानाशी बीज का, छल कपटी आयात |

छल कपटी आयात, जड़ों हिजड़ों की पीड़ा |
करते दावा झूठ, फसल को खाता कीड़ा |


बढे कर्ज का बोझ, बड़ी आबादी मरती |
उत्पादन घट जाय, होय बंजर यह धरती ||


करकश करकच करकरा, कर करतब करग्राह  । 
तरकश से पुरकश चले, डूब गया मल्लाह ।  

डूब गया मल्लाह, मरे सल्तनत मुगलिया ।  
जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया ।

धर्म जातिगत भेद, याद आ जाते बरबस । 
जीता औरंगजेब, जनेऊ काटे करकश ।  
करकश=कड़ा      करकच=समुद्री नमक 
करकरा=गड़ने वाला
कर = टैक्स
करग्राह = कर वसूलने वाला राजा


Madan Mohan Saxena 

  उच्चस्तर पर सम्पदा, रहे भद्रजन लूट ।
संचित जस-तस धन करें, खुली मिली है छूट ।  

खुली मिली है छूट, बटे डीरेक्ट कैश अब ।
मनरेगा से वोट, झपटता पंजा सरबस । 

लेकिन मध्यम वर्ग, गिरे गश खा कर रविकर ।
मंहगाई-कर जोड़,  छुवें दोनों  उच्चस्तर ॥ 



सौदायिक बिन व्याहता, करने चली सिंगार |
गहने पहने मांग कर, लेती कई उधार |

(भाजपा की ओर इशारा)

 लेती कई उधार, खफा पटना पटनायक | 

 खानम खाए खार, करे खारिज खलनायक |
(जदयू, बीजद , मुस्लिम) 

हौदा हाथी रहित, साइकिल बिना घरौंदा |
 नहीं हिन्दु में ताब, पटे ना मोदी सौदा ||

(माया-मुलायम)

सौदायिक= स्त्री-धन नइखे= नहीं


ठगे गए हैं आम, स्वाद जीवन का खोया



Madan Mohan Saxena 
  उच्चस्तर पर सम्पदा, रहे भद्रजन लूट ।
संचित जस-तस धन करें, खुली मिली है छूट । 
खुली मिली है छूट, बटे डीरेक्ट कैश अब ।
मनरेगा से वोट, झपटता पंजा सरबस ।
लेकिन मध्यम वर्ग, गिरे गश खा कर रविकर ।
मंहगाई-कर जोड़,  छुवें दोनों  उच्चस्तर ॥ 


Aziz Jaunpuri 
 खेली खाई खासगी, खाला खालू खान । 
 गालू-ग्वाला तोपची, चॉपर गगन निशान । 
चॉपर गगन निशान, कोयला तेल खदाने । 
घुटा घुटा ले शीश, किन्तु ना घपला माने । 
मारे बम विस्फोट, व्यवस्था पब्लिक डेली । 
अपनी चाची मस्त, खून की होली खेली  ॥ 
 खासगी=निजी, अपना 
गालू=गाल बजाने वाला 
 कहते अपने पक्ष की, पंडित मुल्ला शेख |
लोटपोट होते रहे, शगुन अपशगुन देख |
शगुन अपशगुन देख, बुराई करते खंडित |
अच्छाई इक पाय, करे हैं महिमा मंडित |
अपना अपना धर्म, मर्म में लेकर रहते |
करते किन्तु कुकर्म, पक्ष एकल ही कहते ||

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -10 
सर्ग-2
भाग-4
जन्म-कथा 
सृंगी जन्मकथा
 रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।
विषय परा-विज्ञान मन, औषधि प्रजनन अन्न ।
विकट तपस्या त्याग तप, इन्द्रासन हिल जाय ।
तभी उर्वशी अप्सरा, ऋषि सम्मुख मुस्काय ।


खंड्पूरी खंडरा ख़तम, खखरा खेले फाग-
खोया खील खमीर खस, खंडसारी खटराग |
खंड्पूरी खंडरा ख़तम, खखरा खेले फाग |

(चन्द्र-विन्दु हैं)
खखरा खेले फाग, खाय खाँटी मंहगाई  |

घर घर *रागविवाद, टैक्स-दानव मुस्काई |
*झगडा 
खुद का सारोकार, पर्व त्यौहार विलोया  ||
ठगे गए हैं आम, स्वाद जीवन का खोया ||

खोया = दूध से तैयार मावा
खील = भुना हुआ धान / लावा
खमीर = मिठाई बनाने में प्रयुक्त होता है-खट्टा पदार्थ खस= सुगंधिंत जड़
खंडसारी = देशी चीनी
खटराग =व्यर्थ की वस्तुवें / सामग्री
खंड्पूरी = मेवा और शक्कर भरी पूरी
खंडरा = बेसन से बना तेल में छाना हुआ पकवान
खखरा = चावल बनाने का बड़ा पात्र / छिद्रमय

नोट: "खट राग" दो बार आया है-


Wednesday, 27 February 2013

घुटा घुटा ले शीश, किन्तु ना घपला माने-

कहते अपने पक्ष की, पंडित मुल्ला शेख |
लोटपोट होते रहे, शगुन अपशगुन देख |
शगुन अपशगुन देख, बुराई करते खंडित |
अच्छाई इक पाय, करे हैं महिमा मंडित |
अपना अपना धर्म, मर्म में लेकर रहते |
करते किन्तु कुकर्म, पक्ष एकल ही कहते ||



अजीज़ जौनपुरी : वीज़ा संग बोफोर्स भी लाई हूँ

Aziz Jaunpuri 

 खेली खाई खासगी, खाला खालू खान । 
 गालू-ग्वाला तोपची, चॉपर गगन निशान । 
चॉपर गगन निशान, कोयला तेल खदाने । 
घुटा घुटा ले शीश, किन्तु ना घपला माने । 
मारे बम विस्फोट, व्यवस्था पब्लिक डेली । 
अपनी चाची मस्त, खून की होली खेली  ॥ 
 खासगी=निजी, अपना 
गालू=गाल बजाने वाला 

प्लेसमेंट तो फिक्स, क्लास को गोली मारो-

 (दोपहर में एक स्टूडेंट की आवाज पड़ी कान में -चलो यार ढाल पर पप्पियाँ झप्पियाँ मारते हैं-)
 मारो झप्पी ढाल पर, लूटो पप्पी एक । 
लाइफ़ सेट हो जायगी, हो जाए बी टेक । 
हो जाए बी टेक, कहीं री-टेक एक दो । 
बन्दे कैसी फ़िक्र, बड़े ब्रिलिएंट आप हो । 
खुद को ऐसा ढाल, ढाल पर साल गुजारो । 
प्लेसमेंट तो फिक्स,  क्लास को गोली मारो ॥

खंड्पूरी खंडरा ख़तम, खखरा खेले फाग-

खोया खील खमीर खस, खंडसारी खटराग |
खंड्पूरी खंडरा ख़तम, खखरा खेले फाग |
(चन्द्र-विन्दु हैं)

खखरा खेले फाग,  खटा-खट राग रागनी  |
घर घर *रागविवाद, रंग में भंग चाशनी |
*झगडा 
खुद का सारोकार,  पर्व त्यौहार विलोया  ||
ठगे गए हम लोग, देख अपनापन खोया..||
खोया = दूध से तैयार मावा
खील = भुना हुआ धान / लावा
खमीर = मिठाई बनाने में प्रयुक्त होता है-खट्टा पदार्थ खस= सुगंधिंत जड़
खंडसारी = देशी चीनी
खटराग =व्यर्थ की वस्तुवें / सामग्री
खंड्पूरी = मेवा और शक्कर भरी पूरी
खंडरा = बेसन से बना तेल में छाना हुआ पकवान
खखरा = चावल बनाने का बड़ा पात्र / छिद्रमय

नोट: "खट राग" दो बार आया है-

Swasti Medha को Rupal Srivastava की फ़ोटो में अंकित किया गया.Kanpur, Uttar Pradesh में
जुडवा बहने दिख गईं, जुड़े जुड़े से गाल |
घूमें दोनों साथ ही, करती फ़िरे बवाल |
करती फ़िरे बवाल, सदा ही गाल बजाती |
रही बिगड़ती चाल, नहीं पर कभी लजाती |
करिए सर्जन अलग, ढूँढ़ता तब तक बुढवा |
हो जाए शुभ व्याह, जाँय घर दोनों जुडवा ||

बैसवारी baiswari
गोला झोला में रखे , रहे याद ले घूम |
जब तब हौले से अधर, लेते गोले चूम |
लेते गोले चूम, तभी पड़ जाये डंडा|
साथी भाड़े खेल, पडूं ना लेकिन ठंडा |
रुसवाई का खौफ, किन्तु मेरा दिल भोला |
करे नहीं संतोष, गुलाबी होता गोला ||
एक चिड़िया ही तो थी,घायल हुई -सतीश सक्सेना

Satish Saxena 
चिड़ीमार करता रहा, चौचक चुटुक शिकार |
दर्शक ताली पीटते,  है सटीक हर वार |
है सटीक हर वार, आज क्यूँ पीटे माथा |
चिड़ीमार लिख रहे, यहाँ अब दानव गाथा |
अब मारे इंसान, भूलिए बातें पिछड़ी |
अब आगे की सोच, पकाते अपनी खिचड़ी ||

मेरी मोहतरमा !


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

मो को होता मोह है, मोहित अंतर मोम । 
हत री मेरी रमा हत, करे खड़े कुल रोम ।

करे खड़े कुल रोम, भयानक होती छोरी । 

हरे माल असबाब, कराके नंगा झोरी ।

लेकिन फिर भी प्यार, सदा आशीशूँ तो को  । 

अंधड़ से इंसान, बनाती जो है मो को ॥

सदा 

 SADA

दीवारी सरगोशियाँ, सिसक उठी दहलीज । 
बदले रूह लिबास तो, रहे लोग क्यूँ खीज । 

रहे लोग क्यूँ खीज, छीजती जाय जिंदगी । 
हिचकी लेता दर्द, हुई जाए बेअदबी । 
 
रिश्तों को पहचान, नहीं हों रिश्ते भारी । 
मिलें आत्म परमात्म, मनाते चल दीवारी 

Surendra shukla" Bhramar"5 

भारत माता पालती, सच्चे धर्म सपूत |
दुष्टों की खातिर रखे, फंदे भी मजबूत |
फंदे भी मजबूत, मगर वह चच्चा चाची |
चांय-चांय छुछुवाय, घूमती नाची नाची |
प्रावधान का लाभ, यहाँ आतंकी पाता |
सत्ता यह कमजोर, करे क्या भारत माता ||

Asha Saxena 

 Akanksha  

ना ही नीचे धरा पर, ना ऊपर भगवान् |
इनको मिलनी है जगह, ना ही निकले जान |
ना ही निकले जान, जिंदगी भर तडपेंगे |
निश्चय ही हैवान, धरा पर पड़े सड़ेंगे |
पीते रहते खून,  मारकर सज्जन राही |
कौन करेगा माफ़, हुई हर जगह मनाही ||
 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -10

सर्ग-2 
भाग-4
जन्म-कथा  
सृंगी जन्मकथा

 रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।

विषय परा-विज्ञान मन, औषधि प्रजनन अन्न ।



विकट तपस्या त्याग तप, इन्द्रासन हिल जाय ।

तभी उर्वशी अप्सरा, ऋषि सम्मुख मुस्काय ।

Tuesday, 26 February 2013

दीवारी सरगोशियाँ, सिसक उठी दहलीज-


Swasti Medha को Rupal Srivastava की फ़ोटो में अंकित किया गया.Kanpur, Uttar Pradesh में
जुडवा बहने दिख गईं, जुड़े जुड़े से गाल |
घूमें दोनों साथ ही, करती फ़िरे बवाल |
करती फ़िरे बवाल, सदा ही गाल बजाती |
रही बिगड़ती चाल, नहीं पर कभी लजाती |
करिए सर्जन अलग, ढूँढ़ता तब तक बुढवा |
हो जाए शुभ व्याह, जाँय घर दोनों जुडवा ||



बैसवारी baiswari
गोला झोला में रखे , रहे याद ले घूम |
जब तब हौले से अधर, लेते गोले चूम |
लेते गोले चूम, तभी पड़ जाये डंडा|
साथी भाड़े खेल, पडूं ना लेकिन ठंडा |
रुसवाई का खौफ, किन्तु मेरा दिल भोला |
करे नहीं संतोष, गुलाबी होता गोला ||


एक चिड़िया ही तो थी,घायल हुई -सतीश सक्सेना
Satish Saxena 
चिड़ीमार करता रहा, चौचक चुटुक शिकार |
दर्शक ताली पीटते,  है सटीक हर वार |
है सटीक हर वार, आज क्यूँ पीटे माथा |
चिड़ीमार लिख रहे, यहाँ अब दानव गाथा |
अब मारे इंसान, भूलिए बातें पिछड़ी |
अब आगे की सोच, पकाते अपनी खिचड़ी ||



मेरी मोहतरमा !


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

मो को होता मोह है, मोहित अंतर मोम । 
हत री मेरी रमा हत, करे खड़े कुल रोम ।

करे खड़े कुल रोम, भयानक होती छोरी । 

हरे माल असबाब, कराके नंगा झोरी ।

लेकिन फिर भी प्यार, सदा आशीशूँ तो को  । 

अंधड़ से इंसान, बनाती जो है मो को ॥

सदा 
 SADA

दीवारी सरगोशियाँ, सिसक उठी दहलीज । 
बदले रूह लिबास तो, रहे लोग क्यूँ खीज । 

रहे लोग क्यूँ खीज, छीजती जाय जिंदगी । 
हिचकी लेता दर्द, हुई जाए बेअदबी । 
रिश्तों को पहचान, नहीं हों रिश्ते भारी । 
मिलें आत्म परमात्म, मनाते चल दीवारी 

Surendra shukla" Bhramar"5 
भारत माता पालती, सच्चे धर्म सपूत |
दुष्टों की खातिर रखे, फंदे भी मजबूत |
फंदे भी मजबूत, मगर वह चच्चा चाची |
चांय-चांय छुछुवाय, घूमती नाची नाची |
प्रावधान का लाभ, यहाँ आतंकी पाता |
सत्ता यह कमजोर, करे क्या भारत माता ||


Asha Saxena 
 Akanksha  

ना ही नीचे धरा पर, ना ऊपर भगवान् |
इनको मिलनी है जगह, ना ही निकले जान |
ना ही निकले जान, जिंदगी भर तडपेंगे |
निश्चय ही हैवान, धरा पर पड़े सड़ेंगे |
पीते रहते खून,  मारकर सज्जन राही |
कौन करेगा माफ़, हुई हर जगह मनाही ||



गैरों का मुहताज, हुवे जब अपने हिजड़े -


Asha Saxena 
 Akanksha  

ना ही नीचे धरा पर, ना ऊपर भगवान् |
इनको मिलनी है जगह, ना ही निकले जान |
ना ही निकले जान, जिंदगी भर तडपेंगे |
निश्चय ही हैवान, धरा पर पड़े सड़ेंगे |
पीते रहते खून,  मारकर सज्जन राही |
कौन करेगा माफ़, हुई हर जगह मनाही ||
बैसवारी baiswari
गोला झोला में रखे , रहे याद ले घूम |
जब तब हौले से अधर, लेते गोले चूम |
लेते गोले चूम, तभी पड़ जाये डंडा|
साथी भाड़े खेल, पडूं ना लेकिन ठंडा |
रुसवाई का खौफ, किन्तु मेरा दिल भोला |
करे नहीं संतोष, गुलाबी होता गोला ||

Surendra shukla" Bhramar"5 

भारत माता पालती, सच्चे धर्म सपूत |
दुष्टों की खातिर रखे, फंदे भी मजबूत |
फंदे भी मजबूत, मगर वह चच्चा चाची |
चांय-चांय छुछुवाय, घूमती नाची नाची |
प्रावधान का लाभ, यहाँ आतंकी पाता |
सत्ता यह कमजोर, करे क्या भारत माता ||
Swasti Medha को Rupal Srivastava की फ़ोटो में अंकित किया गया.Kanpur, Uttar Pradesh में
जुडवा बहने दिख गईं, जुड़े जुड़े से गाल |
घूमें दोनों साथ ही, करती फ़िरे बवाल |
करती फ़िरे बवाल, सदा ही गाल बजाती |
रही बिगड़ती चाल, नहीं पर कभी लजाती |
करिए सर्जन अलग, ढूँढ़ता तब तक बुढवा |
हो जाए शुभ व्याह, जाँय घर दोनों जुडवा ||

अरुण यह मधुमय देश बेचारा !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
जड़ें हुईं कमजोर अति, कमल फूल यह लाल । 
भंग मिले जल में सड़े, बंजर होता ताल ।  
बंजर होता ताल, ताल ठोके है हाथी । 
कमलनाल दे तोड़, भिड़ाते पंजा साथी । 
जब आपस में द्वंद्व, ताल उजड़े ही उजड़े। 
गैरों का मुहताज, हुवे जब अपने हिजड़े ॥ 

मेरी मोहतरमा !


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

मो को होता मोह है, मोहित अंतर मोम । 
हत री मेरी रमा हत, करे खड़े कुल रोम ।

करे खड़े कुल रोम, भयानक होती छोरी । 

हरे माल असबाब, कराके नंगा झोरी ।

लेकिन फिर भी प्यार, सदा आशीशूँ तो को  । 

अंधड़ से इंसान, बनाती जो है मो को ॥

दिलसुख नगरवासी दुखी हैं : दैनिक जनसंदेश टाइम्‍स 26 फरवरी 2013 स्‍तंभ 'उलटबांसी' में प्रकाशित


अविनाश वाचस्पति   
खा ली मूली काल ने, सुधरा पाचन-तंत्र ।
जगह जगह यमदूत कुल, मारें मारक मन्त्र ।  
मारें मारक मन्त्र, महामारी मंहगाई ।
नित-प्रति एक्सीडेंट, मार मौसम की खाई । 

इत नक्सल के वार, उधर आतंक वसूली ।
जगह जगह विस्फोट, मारता खाली-मूली ॥

नहीं हिन्दु में ताब, पटे ना मोदी सौदा-

सौदायिक बिन व्याहता, करने चली सिंगार |
गहने पहने मांग कर, लेती कई उधार |

(भाजपा की ओर इशारा)


 लेती कई उधार, खफा पटना पटनायक | 
 खानम खाए खार, करे खारिज खलनायक |
(जदयू, बीजद , मुस्लिम) 
हौदा हाथी रहित, साइकिल बिना घरौंदा |
 नहीं हिन्दु में ताब, पटे ना मोदी सौदा ||

(माया-मुलायम)
सौदायिक= स्त्री-धन नइखे= नहीं 



पिस्सू-मच्छर-खटमल Vs जूँ-चीलर
पिस्सू मच्छर तेज हैं, देते खटमल भेज । 
जगह जगह कब्जा करें, खटिया कुर्सी मेज ।  
खटिया कुर्सी मेज, कान पर जूँ  ना रेंगे । 
देते कड़े बयान, किन्तु विस्फोट सहेंगे । 
चीलर रक्त सफ़ेद, लाल तो बहे सड़क पर। 
करके धूम-धड़ाक, चूसते पिस्सू मच्छर।। 
 


Police and pedestrians look on at the site of the bomb blast at Dilsukh Nagar in Hyderabad on Saturday. Photo: AFP
 मसले सुलझाने चला, आतंकी घुसपैठ । 
खटमल स्लीपर सेल सम, रेकी रेका ऐंठ । 

रेकी रेका ऐंठ, मुहैया असल असलहा । 
विकट सीरियल ब्लास्ट, लाश पर लगे कहकहा । 

सत्ता है असहाय, बढ़ें नित बर्बर नस्लें । 
मसले होते हिंस्र, जाय ना खटमल मसले । 
The Prime Minister, Manmohan Singh, being briefed by the Andhra Pradesh Chief Minister, N. Kiran Kumar Reddy, at the site of the bomb blast at Dilsukhnagar in Hyderabad on Sunday. (From left) DGP V. Dinesh Reddy, AP Governor E.S.L. Narasimhan, Union Minister of State for Surface Transport, Sarve Satyanarayana, and the state's Home Minister, Sabitha Indra Reddy, are alos seen. Photo: P.V. Sivakumar
 

दर्द ने हि‍चकियां लीं जब !!!

सदा 
 SADA

दीवारी सरगोशियाँ, सिसक उठी दहलीज । 
बदले रूह लिबास तो, रहे लोग क्यूँ खीज । 

रहे लोग क्यूँ खीज, छीजती जाय जिंदगी । 
हिचकी लेता दर्द, हुई जाए बेअदबी । 

रिश्तों को पहचान, नहीं हों रिश्ते भारी । 
मिलें आत्म परमात्म, मनाते चल दीवारी