Monday 25 February 2013

कुल का प्यार दुलार, सभी का अक्षय नटखट-




विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी
 गांव से (दो कुंडलिया)
गोरु गोरस गोरसी,  गौरैया गोराटि । 
गो गोबर *गोसा गणित, गोशाला परिपाटि । 
*गोइंठा / उपला
 गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी । 
पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी । 

गाँव गाँव में जंग,  जमीं जर जल्पक जोरू । 
 भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥
 एकोऽहम्
*सौदायिक बिन व्याहता, करने चली सिंगार |
लेकर आई मांग कर,  गहने कई उधार |


गहने कई उधार, इधर पटना पटनायक |
खानम खाए खार, समझ ना पावे लायक |


बिन हाथी के ख़्वाब, सजाया हाथी हौदा |
^नइखे खुद में ताब, बड़ा मँहगा यह सौदा ||

*स्त्री-धन
^ नहीं
 
ये है मेरा नन्हा अक्षय @[100001428676499:2048:Akshay Vashisht] आज पूरे सत्रह साल का हो गया है... बहुत ही खुशमिज़ाज़। घर में सब इसे नटखट कहते हैं। सचमुच बहुत नटखट है मगर नटखट सिर्फ़ बातों मे है, किसी अपने की जरा सी चोट उसे रुला देती है। इश्वर ऎसा बेटा हर जनम में हर माँ को दे... आज उसके जन्म-दिन पर आप सब की दुआओं की अपेक्षा करती हूँ...
झटपट चढ़ ले सीढियाँ, बाढ़े बुद्धि-विवेक |
शिक्षा विधिवत पूर्ण कर, बन जा इन्सां नेक |


बन जा इन्सां नेक, चतुर्दिक कीर्ति-पताका |
दिल में प्रभु की टेक, दुलारा अपनी माँ का |


कुल का प्यार दुलार, सभी का अक्षय नटखट |
रहे स्वस्थ सानन्द, चरण अब छू ले झटपट ||




मसले होते हिंस्र, जाय ना खटमल मसले-

Police and pedestrians look on at the site of the bomb blast at Dilsukh Nagar in Hyderabad on Saturday. Photo: AFP
 मसले सुलझाने चला, आतंकी घुसपैठ ।

खटमल स्लीपर-सेल बना, रेकी रेका ऐंठ ।

 (सेल = २ मात्रा उच्चारण की दृष्टि से )
रेकी रेका ऐंठ, मुहैया असल असलहा ।

विकट सीरियल ब्लास्ट, लाश पर लगे कहकहा । 


सत्ता है असहाय, बढ़ें नित बर्बर नस्लें । 

मसले होते हिंस्र, जाय ना खटमल मसले । 

मासूमों के खून से, लिखते नई किताब |
पड़े लोथड़े माँस के, खाते पका कबाब |
खाते पका कबाब, पाक की कारस्तानी |
जब तक हाफिज साब, कहेंगे हिन्दुस्तानी |
तब तक सहना जुल्म, मरेंगे यूं ही भोले |
सत्ता तो है मस्त, घुटाले कर कर डोले |||

जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल"-

लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।
 जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।।

फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल ।
धमाके की खबर तो थी, कहे दिल्ली बताया कल ॥

 हुआ है खून सादा जब, नहीं कोई दिखे खटमल ।
घुटाले रोज हो जाते, मिले कोई नहीं जिंदल ।।

कहीं दोषी बचें ना छल, अगर सत्ता करे बल-बल ।
नहीं आश्वस्त हो जाना, नहीं होनी कहीं हलचल ॥ 

जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" ।
मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल ॥ 








4 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार26/2/13 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

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  2. गोरु गोरस गोरसी, गौरैया गोराटि ।
    गो गोबर *गोसा गणित, गोशाला परिपाटि ।

    गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी ।
    पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी ।

    गाँव गाँव में जंग, जमीं जर जल्पक जोरू ।
    भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥ लाजबाब,,,,


    Recent Post: कुछ तरस खाइये

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  3. बहुत गजब बहुत अच्छी रचना आन्नद मय करती रचना
    आज की मेरी नई रचना

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

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