Saturday 9 February 2013

अफसर-गुरु जब भी बने, गाजी बाबा शिष्य-


रश्मि शर्मा 

चाक समय का चल रहा, किन्तु आलसी लेट |
लसा-लसी का वक्त है, मिस कर जाता डेट |
मिस कर जाता डेट, भेंट मिस से नहिं होती |
कंधे से आखेट, रखे सिर रोती - धोती |
बाकी हैं दिन पाँच, घूमती बेगम मयका |
मन मयूर ले नाच, घूमता चाक समय का ||

सॉफ्ट स्टेट हम नहीं सुप्रीम कोर्ट है ?


Virendra Kumar Sharma 

अफसर-गुरु जब भी बने, गाजी बाबा शिष्य |
फांसी पर लटके सही, निश्चित तभी भविष्य |


निश्चित तभी भविष्य, सताए बीबी बच्चे |
नहीं सिखाते कभी, धर्म दुनिया के सच्चे |


ब्रेन-वाश हो जाय, आय जब कभी कुअवसर |
देश-धर्म को भूल, घात कर जाते अफसर ||


जिन्दे की लागत बढ़ी, हिन्दू से घबराय |
खान पान के खर्च को, अब ये रहे घटाय |
अब ये रहे घटाय, सिद्ध अपराधी था जब |
लगा साल क्यूँ सात, हुआ क्यूँ अब तक अब-तब |
वाह वाह कर रहे, तिवारी दिग्गी शिंदे |
लेकिन यह तो कहे, रखे क्यूँ अब तक जिन्दे ||

" ढपोरशंख ......"


Amit Srivastava 


पोर पोर अवगुण भरा, बड़ी-कड़ी है खाल |
ढप ढप ढंग ढपोर सा, बोली मधुर निकाल |
बोली मधुर निकाल, मांग दुगुनी करवाते |
चलते रहते चाल, कभी भी दे नहिं पाते |
रविकर शंख ढपोर, फेंक जल में बस यूं ही  |
अमित आत्मिक चाह, पाय उद्यम से तू ही ||

आगे देखिए "मयंक का कोना"

हुआ खुदा के फजल से, अफजल काम तमाम |
सुर बदले हैं सुबह के, जैसे कर्कश शाम |
जैसे कर्कश शाम, हुआ बदला क्या पूरा |
बाकी कितने नाम, काम है अभी अधूरा |
व्यापारी मीडिया, आज कर बढ़िया सौदा |
इन्तजार में लीन, जले कब और घरौंदा ||
 भारत स्वाभिमान दिवस
बड़ी बड़ी बाड़ी खड़ी, छोटे छोटे लोग |
संसाधन सौ फीसदी, कर लेते उपभोग |


कर लेते उपभोग, बचाते कूड़ा-करकट |
लेते उन्हें बटोर, कबाड़ी कितने हलकट |


नई व्यवस्था देख, घूमते लेकर गाड़ी |
रहे जीविका छीन, पढ़े ये बड़े कबाड़ी ||
 क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होंगे ?

रणधीर सिंह सुमन


हिन्दु बोट पर चढ़ चले, सागर-सत्ता पार |
शिल्पी नहिं नल-नील से, बटी लटी सी धार |


बटी लटी सी धार, कौन पूरे मन्सूबे |
हिन्दु शब्दश: भार,
बीच सागर में डूबे  |




अपनी ढपली राग, नजर है बड़ी खोट पर |
 है धिक्कार हजार, हिन्दु पर हिन्दु बोट पर ||

"आलिंगन उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 


लिंगन आँगन लगन, मन लिंगार्चन जाग |
आलिंगी आली जले, आग लगाता  फाग ||


आलिंगी = आलिंगन करने वाला
आली = सखी
अरुन शर्मा "अनंत" 

पहली पहली मर्तबा, मर्तबान मकरंद |
छाये चर्चा मंच पर, ले बासंतिक छंद |
ले बासंतिक छंद, बड़ी श्रृंगारिक आकृति |
मदनोत्सव रति रूप, करे जड़-चेतन जागृति |
स्वागत स्वागत अरुण, छटा रविकरी रुपहली |
छाया रजत-प्रकाश, मुबारक चर्चा पहली ||  


शिव सा चर्चामंच यह, करता है विषपान ।
इसीलिए इस जगत में, अव्वल है श्रीमान ।
अव्वल है श्रीमान, कंठ नीला पड़  जाता ।
हास्य-व्यंग्य-श्रृंगार, जहर मद से गुस्साता ।
मस्तक शीतल रहे, शूल से हो ना हिंसा ।
सिर पर सजे मयंक,  तभी तो लगता शिव सा ।।

कुल्हड़ की चाय!


मनोज कुमार 


कूट कूट कर है भरे, आत्मीय श्रीमान |
प्यार धर्म विश्वास कुल, लेकिन कर्म प्रधान |
लेकिन कर्म प्रधान, खेल फ़ुटबाल सरीखे |
ब्रिज, बीड़ी, कप, चाय, मस्त पूजा में दीखे |
बढ़िया आबो-हवा, बही अन्दर जो बाहर |
छोटा कुल्हड़ भरे, जोश खुब कूट कूट कर || 

रानी(Q)नहला(9)जैक(J), देख छक्का(6) मन बहला-



 सत्तावन जो कर रहे,  जोड़ा बावन ताश ।
चौका (4) दे जन-पथ महल, *अट्ठा(8) पट्ठा पास । 

सत्तावन=ग्रुप ऑफ़ मिनिस--              अट्ठा= कूट-नैतिक सलाह---
पट्ठा =  जवान-लड़का              सिंह इज किंग 
अट्ठा(8) पट्ठा पास, किंग(K) पंजा(5) से दहला(10)
रानी(Q)नहला(9)जैक(J), देख 
छक्का(6) मन बहला । 

  


नहला=ताजपोशी के लिए नहलाना 
  दुक्की(2) तिग्गी(3)ट्रम्प, हिला ना *पाया-पत्ता ।

खड़ा ताश का महल, चढ़े इक्के(A) पे सत्ता (7)।।

*खम्भा 

तीन कुण्डलिया छंद –

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 

पोस्ट-मार्टम शब्द का, लब मतलब मत तलब |
बलम मलब तल तक खलब, दृष्टि निगम की अजब ||

8 comments:

  1. अरे वाह...!
    हमारी पोस्ट को भी टिपिया दिया...!
    आभार!

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  2. बढिया लिंक्स
    मुझे स्थान देने के लिए आभार

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  3. लिंक-लिक्‍खाड़ पर जब भी मेरी रचना शामि‍ल होती है....आनंद आ जाता है...शुक्रि‍या...
    सभी लिक अच्‍छे लगे..

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती खासकर आपके टिप्पड़ी देने का अंदाज निराला है,सादर आभार।

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  5. वाह, अच्‍छे लिंक्स

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  6. बहुत खूब कुण्डलियाँ रची हैं कुंडली गर ने .शुक्रिया राम राम भाई के लिए .ई मेल चेक करें अपनी .

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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