Saturday 2 March 2013

रविकर चित्त अशांत, तोड़ नहिं पाये बन्धन-


राम वाण सा है असर, कसर अगर रह जाय |
डबल डोज करते चलें, रोगी दौड़ लगाय |


रोगी दौड़ लगाय, मिला ले अगर कराटे |
होवे काम तमाम, थूक कर रोगी चाटे |


बड़ी मानसिक व्याधि, नपुंसक परेशान सा |
चखे कसैला स्वाद, असर हो राम वाण सा ||

अज़ीज़ जौनपुरी : अज़ीज़ यूँ हीं नहीं दीवाना हुआ

Aziz Jaunpuri 

गरदन झुकती इस तरह, चेहरा ही छुप जाय |
शर्माना कैसा तिरा, ऐसे तो अकुलाय |




ऐसे तो अकुलाय, कहीं कुछ गलत किया है |
प्रेम भरा दिल कहीं, पटक कर तोड़ दिया है |



रविकर चित्त अशांत, तोड़ नहिं पाये बन्धन |
हामी ना भर पाय, झुके कैसे ना गरदन ||
 
जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |

यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |  
 खुल जाती झट पोल, पडा इटली से पाला |

बनवाया उस रोज, आय व्यय का तख्मीना |
जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना ||

बजट = आय व्यय का तख्मीना

करकश करकच करकरा, कर करतब करग्राह  । 

तरकश से पुरकश चले, डूब गया मल्लाह ।  



डूब गया मल्लाह, मरे सल्तनत मुगलिया ।  

जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया ।



धर्म जातिगत भेद, याद आ जाते बरबस । 

जीता औरंगजेब, जनेऊ काटे करकश ।  
करकश=कड़ा      करकच=समुद्री नमक 
करकरा=गड़ने वाला
कर = टैक्स
करग्राह = कर वसूलने वाला राजा

तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय

तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय । 
धनहर-ईंधन धन हरे, धनहारी मुसकाय । 
धनहारी मुसकाय, आय व्यय का तखमीना । 
आग लगे धनधाम, चैन जनता का छीना । 
इ'स्कैम और इ' स्कीम, भाव इसमें हैं गहरे । 
धन्य धन्य सरकार, तीन, तीन तेरह करे ॥ 

धनहर=धन चुराने वाला 
धनहारी = दूसरे के धन का उत्तराधिकारी 
धनधाम=रूपया पैसा और घरबार 


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

राना जी छत पर पड़े, गढ़ में बड़े वजीर |
नई नई तरकीब से, दे जन जन को पीर |

दे जन जन को पीर, नीर गंगा जहरीला |
मँहगाई *अजदहा, समूचा कुनबा लीला |

रविकर लीला गजब, मरे कुल नानी नाना |
बजट बिराना पेश, देखता रहा बिराना ||
**अजदहा=बड़ा अजगर
बिराना=पराया / मुँह चिढाना 




दंड बिना उद्दंड मनु, मकु मनु-मन एहसास |
रची गई मनुस्मृति फिर, फिरे धर्म का दास |
फिरे धर्म का दास, चले सीधा अंकुश से |
किन्तु श्रेष्ठ  विद्वान, धर्म से होते गुस्से |
टोका-टाकी नीति, नहीं उनके है भाये |
भोगवाद की  प्रीत, धर्म को व्यर्थ बताये -

तमांचे की गूंज

Saleem akhter Siddiqui  
हक बात
 माचा मचिया मंच है, बोरा धरती धूल |
महाजनों के लिए ही, बच्चे बगिया फूल |


बच्चे बगिया फूल, मूल में स्वार्थ छुपाये  |
रहा सकल हित साध, किन्तु परमार्थ कहाए |  


नन्हें मुन्हें बाल, प्यार से कहते चाचा |
इक छोटी सी भूल, लगाता चचा तमाचा ||

8 comments:

  1. राम वाण सा है असर, कसर अगर रह जाय |
    डबल डोज करते चलें, रोगी दौड़ लगाय |

    रोगी दौड़ लगाय, मिला ले अगर कराटे |
    होवे काम तमाम, थूक कर रोगी चाटे |

    बड़ी मानसिक व्याधि, नपुंसक परेशान सा |
    चखे कसैला स्वाद, असर हो राम वाण सा ||

    बढ़िया काव्यात्मक टिपण्णी लघु कथा पर .

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  2. बहुत बढ़िया लिंक्स | पढ़कर आनंद आया |


    यहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  3. वाह...!
    बहुत सटीक टिप्पणियाँ की हैं आपने!

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  4. बेहतरीन लिंक्स, आनंद दायक प्रस्तुति

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  5. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1173 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  6. सटीक टिप्पड़ीयों से अलंकृत प्रस्तुति

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  7. बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।

    मेरी नई रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

    ये कैसी मोहब्बत है

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