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दिलबाग विर्क    
बना तिलंगाना मधुर, गाओ प्यारे गीत | आन्दोलन होता सफल, जाते दुर्दिन बीत | जाते दुर्दिन बीत, जगा जाए आन्दोलन | विदर्भ गोरखालैंड, पचासों का अनुमोदन | करो बाँट के राज, पड़े पर भारी पंगा | उड़ा रही सरकार, देश को बना *तिलंगा | *बड़ी पतंग सरदार पटेल की बिखरती भारतमाला
 Kulwant Happy    | 
| सत्यार्थमित्रवर्धा में फिर होगा महामंथन
औगढ़ के औकात की, सुगढ़ होयगी जाँच | ब्लॉगिंग के ये वर्ष दस, परखे पावन आँच | परखे पावन आँच , बड़े व्याख्यान कराये | वर्धा को आभार, विश्वविद्यालय आये | बीता शैशव काल, रही दुनिया खुब लिख पढ़ | हित साधे साहित्य, सुधरते रविकर औगढ़ || | 
| छंद कुण्डलिया : मिलें गहरे में मोतीअरुण कुमार निगम
चंचल मन का साधना, सचमुच गुरुतर कार्य | गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य | करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊं गहरे | वहाँ प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे | बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल | दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल || | 
सृजन मंच ऑनलाइन
नाना विधि आगम निगम, करें व्याख्या श्याम |
अगर सफलता चाहिए, देख स्वप्न अविराम |
देख स्वप्न अविराम, तदनु उद्योग जरुरी |
भली करेंगे राम, कामना करते पूरी |
सपनों का संसार, मधुर है ताना बाना |
इसीलिए अधिकार, सभी का है सपनाना ||
नाना विधि आगम निगम, करें व्याख्या श्याम |
अगर सफलता चाहिए, देख स्वप्न अविराम |
देख स्वप्न अविराम, तदनु उद्योग जरुरी |
भली करेंगे राम, कामना करते पूरी |
सपनों का संसार, मधुर है ताना बाना |
इसीलिए अधिकार, सभी का है सपनाना ||
| खिलें इसी में कमल, विपक्षी पानी-कीचड़-
कीचड़ कितना चिपचिपा, चिपके चिपके चक्षु |  
चर्म-चक्षु से गाय भी, दीखे उन्हें तरक्षु | 
दीखे जिन्हें तरक्षु, व्यर्थ का भय फैलाता  | 
बने धर्म निरपेक्ष, धर्म की खाता-गाता | 
कर ले कीचड़ साफ़,  अन्यथा पापी-लीचड़ |  
खिलें इसी में कमल, विपक्षी पानी-कीचड़ | 
चर्म-चक्षु=स्थूल दृष्टि   
तरक्षु=लकडबग्घा  | 
| कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ??
कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु | चौदह के चौपाल की, है उम्मीद त्रिशंकु | है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा | करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा | ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे | कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ?? 
*Minority  
*Muthuvel-Karunanidhi  
*Mulaayam 
*Maayaa 
*Mamta   | 
| काजल कुमार के कार्टून
 कार्टून:- लो, और बना लो तेलंगाना
 
गाना ढपली पर फ़िदा, सुने नहीं फ़रियाद | पड़े मूल्य करना अदा, धिक् धिक् मत-उन्माद | धिक् धिक् मत-उन्माद, रवैया तानाशाही | चमचे देते दाद, करें दिन रात उगाही | राज्य नए मुख्तार, और भी कई बनाना | और उठे आवाज, बना जो तेलंगाना || | 
 
 

 
करो बाँट के राज, पड़े पर भारी पंगा |
ReplyDeleteउड़ा रही सरकार, देश को बना *तिलंगा |
*बड़ी पतंग
वाह रविकर जी वाह !व्यंग्य की परा -काष्ठा है यह प्रस्तुति .
हमारे आज के राजनीतिक विग्रह को रूपायित करता है यह चित्र व्यंग्य जो स्थितियों से सहज स्फूर्त है अनुप्राणित है।
ReplyDeleteकाजल कुमार के कार्टून
कार्टून:- लो, और बना लो तेलंगाना
करो बाँट के राज, पड़े पर भारी पंगा |
ReplyDeleteउड़ा रही सरकार, देश को बना *तिलंगा |आज के राजनीतिक विद्रूप पर सटीक .एक टिपण्णी स्पेम में जा चुकी है बंधुवर .
behtareen ..sadar badhayee ke sath
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार्थक लिंक्स प्रस्तुति ...आभार!
ReplyDeleteवाह: बहुत बढिया..
ReplyDeleteकई लिंक्स देखने को मिले। बढिया लगा।
ReplyDeleteमैने आज ही ब्लाग बनाया है।
सुन्दर ...
ReplyDeleteसपनों का संसार, मधुर है ताना बाना |
ReplyDeleteइसीलिए अधिकार, सभी का है सपनाना ||
अभिनव शब्द प्रयोग कोई रविकर सीखे ,....
Many thanks Dinesh ji. Thanks for providing great links.
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