| समय ...(दिगम्बर नासवा)
सिखा वक्त की मार दे, रविकर बात तमाम | 
जब तक जीवनसार दे, लेत लकुटिया थाम-  | 
| रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की
गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर | 
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर | 
व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी | 
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की | 
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जस तस ढलती | 
करता अब फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती || | 
जेल अपवित्र न हो जाये भोंपू जी ?-राजनैतिक लघु कथा
shikha kaushik 
मैला मुँह में मजलिसी, मठाधीश मक्कार |
मढ़िया में मजबूरियाँ, जाय बचपना हार ||
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लोकतंत्र की शक्ल में, दिखने लगी चुड़ैल | 
परियों सा लेकर फिरे, पर मिजाज यह बैल | 
पर मिजाज यह बैल, भेद हैं कितने सारे | 
वंश भतीजा वाद, प्रान्त भाषा संहारे | 
जाति धर्म को वोट, जीत षड्यंत्र मन्त्र की | 
 अक्षम विषम निहार, परिस्थिति लोकतंत्र की | | 
अर्जुन के बन सारथी दिया उसे उपदेश , दूर किये संशय सभी दे उसको उपदेश।
Virendra Kumar Sharma 
सत रज रमते कर्म में, तम तो लापरवाह |
लिप्त भोग में काल कुछ, तम देता फिर दाह |
| आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने
माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज | 
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज | 
आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए | 
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये | 
रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने | 
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने || 
*ईश्वर ना करे -  | 
 

 
वाह ... शुक्रिया मेरी रचना पे काव्यमय चर्चा का ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : फूल बिछा न सको
सुंदर प्रस्तुति सुंदर कूंडलियाँ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिंक लिखाड़ी का
ReplyDeleteबना शीर्षक गीता की अगली पोस्ट का .
शुक्रिया आपकी बेहतरीन टिपण्णी और लिंक लिखाड़ वैभव का .