Thursday 12 September 2013

फूटी किस्मत हाय, तभी दिल रविकर टूटा -


क्या तुम्हें चाहिए ?

Amrita Tanmay 

 मरती आरुषि महल में, काटी थी तलवार |
जिनसे मिलता प्यार था, करते वे ही वार |

करते वे ही वार, किसे तलवार चाहिए -
कितना चुके लताड़, इन्हें तो मार चाहिए | 

करे धनुष टंकार, मुफ्त हो जाए धरती |
मरे नहीं कुविचार, दिखे नहिं आरुषि मरती ||



साथ सुता के सो ले बाबा-


अंध-भक्ति श्रद्धा जब बाढ़ी ।
झोंके लोग कमाई गाढ़ी । 
पर डूबे सागर में *पाढ़ी ।
काली दाढ़ी उजली दाढ़ी -
विष जीवन में घोले बाबा ।  भोले बाबा भोले बाबा ॥

पढ़े लिखे लोगों की मर्जी ।
शायद हों बाबा के करजी ।
संत कृपा की खातिर अर्जी ।
ना जाने कैसी खुदगर्जी ।
साथ सुता के सो ले बाबा । भोले बाबा भोले बाबा ॥


किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी -

झूठी कहते ना थको, व्यर्थ बको अविराम ।
याद करो उस शाम को, जब थे लोग तमाम । 

जब थे लोग तमाम, वहाँ बक्कुर नहिं फूटा ।
फूटी किस्मत हाय,  तभी दिल रविकर टूटा ।

रही मुहब्बत पाक, किन्तु मैं तुझ से रूठी ।
किया कलेजा चाक,  आज कहते हो झूठी ॥


गई शक्ति-मिल दुष्ट क्लीव को -

  •  नहा खून से हर हर गंगे |
  • बहा खून ले, दर दर दंगे |
  • भंग व्यवस्था लंगु प्रशासन 
  • सड़कों पर दुर्दांत लफंगे । 

  • जब मारक आघात करें | बोलो किसकी बात करें ॥ 

  • जहाँ प्रवंचक प्रवचन करते । 
  • श्रोता मकु तरते ना तरते । 
  • लम्बी चौड़ी हांक हांक के 
  • दारुण दुःख हरते ना हरते -

  • हरते सिया बलात धरें । बोलो किसकी बात करें ॥ 



मृगया करने नृप जाय कहाँ मृगया खुद षोडश ने कर डाला-


जब रूपसि-रंगत नैन लखे तब रंग जमे मितवा मतवाला |
चढ़ जाय नशा उतरे न कभी अब भूल गया मनुवा मधुशाला 
मृगया करने नृप जाय कहाँ मृगया खुद षोडश ने कर डाला |
नवनीत चखी चुपचाप सखी  फिर छोड़ गई वह सुन्दर बाला ||

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-09-2013) महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाः चर्चा मंच 1368 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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