टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।
उत्साह बढ़ता जा रहा, आकाश नीचे आ रहा ।
खाया कमाया जिंदगी भर पितृ-ऋण उतरे सभी ।
संतान को इन्सां बनाया अब नहीं भटके कभी ।
ख्वाहिश तमन्ना शौक सारे आज हम पूरी करें।
चाहे रहे जिन्दा युगों तक आज ही या हम मरें ।
कविमन हुआ मदमस्त रविकर गीत रच रच गा रहा ।
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।।
कविता करूँगा अब पढूंगा मंच पर जाकर वहां ।
माँ शारदे की वंदना खुशियां बिखेरूँगा जहाँ ।
आवाज देगी मौत भी तो कह सकूँगा रुक जरा ।
यह काफिया तो लूँ मिला, पूरा करूँ यह अंतरा ।
दुनिया करेगी फिर सिफारिश रूप रविकर भा रहा ।
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।।
यह लोन लकड़ी तेल ही काया जलाये-भून दे ।
परिवार की खातिर जवानी अस्थि-मज्जा खून दे।
निकला कहाँ कब वक्त रविकर आजतक अपने लिए ।
संसार की खातिर नहीं परिवार की खातिर जिए ।
अब देश की खातिर जियूँगा लोकहित अब भा रहा ॥
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।।
वाह क्या बात है।
ReplyDeleteकुछ पल खुद के लिये भी सोचने का वक्त आ रहा । बधाई ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'