Thursday, 22 December 2016
समय बीतने पर बिके, वे रद्दी के भाव-
छपने का अखबार में, जिन्हें रहा था चाव।
समय बीतने पर बिके, वे रद्दी के भाव।।
रोला
वे रद्दी के भाव, बनाये ठोंगा कोई।
जो रचि राखा राम, वही रविकर गति होई।
मिर्ची नमक लपेट, पेट पूजा कर फेका।
कोई दिया जलाय, नाम मत ले छपने का।।
1 comment:
सुशील कुमार जोशी
23 December 2016 at 02:41
:) बहुत खूब ।
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:) बहुत खूब ।
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