Friday, 25 August 2017

तलाक

जो जंग जीती औरतों ने आज भी आधी-अधूरी ।
नाराज हो जाये मियाँ तो आज भी है छूट पूरी।
शादी करेगा दूसरी फिर तीसरी चौथी करेगा।
पत्नी उपेक्षा से मरेगी वह नही होगी जरूरी।

पड़ी जब आँख पर पट्टी, निभाती न्याय की देवी।
तराजू ले सदी चौदह, बिताती न्याय की देवी।
मगर जब देवियाँ जागीं, मिला अधिकार तब वाजिब
विषम् पासंग पलड़े का, मिटाती न्याय की देवी।


3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल jbfवार (27-08-2017) को "सच्चा सौदा कि झूठा सौदा" (चर्चा अंक 2709) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सटीक और सामयिक रचना

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