Monday, 8 January 2018

फ़ायलुन × 4


मैंने* तुझसे कहा, तूने* मुझसे कहा।
तू तो* समझी नहीं, मैं भी* उलझा रहा।।

देती* चेतावनी, ठोकरें भी लगीं
तू तो* पत्थर उठा किन्तु देती बहा।

तंग करती रही, हिचकियां भी मे*री 
पानी* पी पी मगर तू तो* लेती नहा।

दाँत के बीच मे जीभ मेरी फँसी
पर लगाती रही तू सदा कहकहा।।

देख रविकर रहा, गम के आंसू पिये
दर्द बढ़ता गया अब न जाए सहा।

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-01-2018) को "आओ कुत्ता हो जायें और घर में रहें" चर्चामंच 2844 पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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