Wednesday 10 April 2013

मर्द-जात बदजात, व्यर्थ ही बदन संवारी-




NAND KISHOR GUPTA 

वारी जाऊं क्यूँ कहूँ, फेरे पुरुष निगाह । 
बन-ठन कर फेरे लगा, रहा कलेजा दाह । 

रहा कलेजा दाह, राह पर धूल फांकता । 
गुजरा पूरा साल, नया कानून सालता। 

चुकता जाए धैर्यकरे क्या कन्या क्वाँरी  । 
मर्द-जात बदजात, व्यर्थ ही बदन संवारी


मुदित-मुदिर मुद्रा मटक, मुद्रा मुफ्त कमाय -

मुदित-मुदिर मुद्रा मटक, मुद्रा मुफ्त कमाय । 
जिला रही नश्वर बदन, जिला-जवाँर घुमाय । 
यमक अलंकार मुद्रा / जिला 
जिला-जवाँर घुमाय, जवानी के जलवे हैं । 
रूपाजीवा हाय, हुवे दंगे बलवे हैं । 

मरे हजारों लोग, लांछना लेकिन अनुचित । 
रविकर मरता जाय, मगन मन झांके प्रमुदित । । 
मुदिर=कामुक 
रूपाजीवा = वेश्या


रहा खुदा को भूल, बोलता खुद की जै जै-

कासी काबा कोसती, काया कोसों दूर । 
सुरसाई सुमिरै नहीं, सोहै सुरा सुरूर ।  

सोहै सुरा सुरूर, इसी में जीवन खोजै । 
रहा खुदा को भूल, बोलता खुद की जै जै । 

खाना पीना मौज, स्वार्थी अति कटु-भाषी । 
भोगे कष्ट-अपार,  प्राण की कठिन निकासी । 

7 comments:

  1. बहुत प्रभावी उम्दा प्रस्तुति !!!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    नवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!

    ReplyDelete
  3. कासी काबा कोसती, काया कोसों दूर ।
    सुरसाई सुमिरै नहीं, सोहै सुरा सुरूर ।

    काशी काबा ...

    सुन्दर प्रस्तुति .

    ReplyDelete
  4. बेहद सटीक और सुन्दर प्रभु....लाजवाब!

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
  5. बेशक एक बेहतरीन संयोजन

    ReplyDelete