Friday 22 November 2013

कह इमाद रहमान, होय या लीडर रमुआ -

यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं?

DR. ANWER JAMAL 




(1)
आगे मुश्किल समय है, भाग सके तो भाग |
नहीं कोठरी में रखें, साथ फूस के आग |

साथ फूस के आग, जागते रहना बन्दे |
हुई अगर जो चूक, झेल क़ानूनी फंदे |

जिनका किया शिकार, आज वे सारे जागे |
मिला जिन्हें था लाभ, नहीं वे आयें आगे ||

नीति-नियम में लोच, कोर्ट इनको फटकारे-


मुआवजा नहि वेवजह, पीछे घातक सोच |
खैरख्वाह इक वर्ग के, नीति-नियम में लोच |

नीति-नियम में लोच, कोर्ट इनको फटकारे |
इन्हें नहीं संकोच, दूसरा वर्ग नकारे |

जो जो खाया चोट, इन्हें दे रहा बद्दुआ |
कह इमाद रहमान, होय या लीडर रमुआ ||
  

बंगारू कि आत्मा, होती आज प्रसन्न |
सन्न तहलका दीखता, झटका करे विपन्न |

झटका करे विपन्न, सताया है कितनों को |
लगी उन्हीं कि हाय, हाय अब माथा ठोको |

गोया गोवा तेज, चढ़ी थी जालिम दारू |
रंग दे डर्टी पेज, देखते हैं बंगारू ||
यौनोत्पीड़न के लिए, कुर्सी छोड़े आप |

कुर्सी छोड़े आप, मात्र छह महिना काहे |
सहकर्मी चुपचाप, बॉस जो उसका चाहे |

लेता आज संभाल, देख लेता कल कल का |
तरुण तेज ले पाल, सेक्स से मचे तहलका ||


मोदी के प्रति वह सिर्फ नफरत दिखा रहीं हैं। मोदी की वजह से अपने मन में कूड़ा भर रहीं हैं। बेहतर होता सोनिया जी की कोई खूबी बतलातीं अपने आराध्य राहुल बाबा की कोई खूबी बतलातीं। पता चलता आप उनके भी बारे में क्या जानतीं हैं।

Virendra Kumar Sharma 







अच्छी ना लागे शकल, रहे व्यर्थ मुँहफाड़ |
न जाने क्यूँ मंच पर, जब तब रहे दहाड़ |

जब तब रहे दहाड़, हाड़ दुश्मन का कांपे |
होय अगर जो हिन्दु, इन्हे भरपेट सरापे |

पग धरते गर शीश, नाक पर बैठे मच्छी |
फिर भी रहते मौन, शकल तब लगती अच्छी ||

लाज लुटी, बस्ती बटी, दंगाई तदवीर-

दागी बंदूकें गईं, चमकाई शमशीर |
लाज लुटी, बस्ती बटी, दंगाई तदवीर |

दंगाई तदवीर, महत्वाकांक्षा खाई |
दिया-सलाई पाक, अगर-बत्ती सुलगाई |

सूत्रधार महफूज, जली तो धरा अभागी |
बने पाक इक पक्ष, बनाये दूजा दागी ||
 


रखे ताजिया *जिया का, भैया अपने आप |
अविश्वास रविकर नहीं, पर करता है बाप |

पर करता है बाप, रही छवि अब ना उजली |
कीचड़ पाया कमल, हाथ में चालू खुजली |

चूर चूर विश्वास, किया क्या हाय शाजिया |
अंतर दिया मिटाय, कहाँ हम रखें ताजिया ||

दो मंत्रालय दो बना, रेप और आतंक |
निबट सके जो ठीक से, राजा हो या रंक |
राजा हो या रंक, बढ़ी कितनी घटनाएं-
जब तब मारे डंक, इन्हें जल्दी निबटाएं |
तंतु तंतु में *तोड़, बड़े संकट में तन्त्रा |
कैसे रक्षण होय, देव कुछ दे दो मन्त्रा -



5 comments:

  1. बंगारू कि आत्मा, होती आज प्रसन्न |
    सन्न तहलका दीखता, झटका करे विपन्न |

    झटका करे विपन्न, सताया है कितनों को |
    लगी उन्हीं कि हाय, हाय अब माथा ठोको |

    गोया गोवा तेज, चढ़ी थी जालिम दारू |
    रंग दे डर्टी पेज, देखते हैं बंगारू ||

    सुन्दर प्रासंगिक सटीक .

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  2. पग धरते गर शीश, नाक पर बैठे मच्छी |
    फिर भी रहते मौन, शकल तब लगती अच्छी ||

    नाक पर बैठे मख्खी .बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब .

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  3. सुंदर टिप्पणी सुंदर चर्चा !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" : चर्चामंच : चर्चा अंक :1438 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. अच्छी ना लागे शकल, रहे व्यर्थ मुँहफाड़ |
    न जाने क्यूँ मंच पर, जब तब रहे दहाड़ |

    मच्छी को मख्खी कर लो भाई साहब ,आभार आपकी टिपण्णी का।

    जब तब रहे दहाड़, हाड़ दुश्मन का कांपे |
    होय अगर जो हिन्दु, इन्हे भरपेट सरापे |

    पग धरते गर शीश, नाक पर बैठे मच्छी |
    फिर भी रहते मौन, शकल तब लगती अच्छी ||

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