आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बहुत खूब...सही कहा...
ReplyDeleteक्या बात है...वाह!
ReplyDeletebehtarin kya baat hai..badhayee aaur sadar pranam ke sath
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
नेता का जाने...ई तो मरते नहीं महंगाई से। जानते हैं कि आतंक वाद से मर भी सकते हैं। ये नहीं जानते कि महंगाई ही से ही नक्सलवाद और आतंकवाद पनपता है।
ReplyDeleteरविकर जी ,हमारे आज के सन्दर्भ का अनुपम व्यंग्य .
ReplyDeleteअच्छा कटाक्ष है।
ReplyDeleteआभार इस प्रस्तुति और आपकी महत्वपूर्ण ब्लॉग दस्तक की .
ReplyDelete“....”!
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteप्रिय रविकर जी बहुत खूब ...गूढ़ पहेली ...एक से बढ़ कर यहाँ ..क्या किसे बोले किसकी राह रोकें... जागो जनता जागो
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर ५