Sunday, 30 September 2012

होता दही दिमाग, युधिष्ठिर कथा अनकही -





"जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई"

दीदी जी स्वीकारिये, मेरा यह उपहार ।
जन्म दिवस की दे रहा, शुभकामना अपार ।
शुभकामना अपार, आपके श्री चरणन में ।
 दिवस बिठाये चार, अमोलक मम जीवन में ।
रविकर करे प्रणाम, स्वस्थ तन मन से रहिये ।
मिले सभी का स्नेह,  सदा जय माता कहिये ।।
 शब्‍दों का मौन !!!

  SADA  

कोई भी सुनता नहीं, इन शब्दों का मौन |
कान रहे बजते सदा, बोलो दोषी कौन ??


चर्खी हुई चाकरी

मनोज कुमार 
नारकीय यह नौकरी, खाय जान अध्यक्ष ।
नए नए हर दिन पड़े, यक्ष-प्रश्न मम कक्ष ।
यक्ष-प्रश्न मम कक्ष, सुबह से शाम हो रही ।
होता दही दिमाग, युधिष्ठिर कथा अनकही ।
करे पलायन नित्य, छोड़कर जान चार की ।
नित चिक चिक फटकार, वहां भी सुनूँ नार की ।

आचार्य परशुराम राय
 मन्त्र मारती मन्थरा, मारे मर्म महीप ।
स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप । 
समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी ।
कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी ।
कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा ।
रावण-बध परिणाम, मारती मन्त्र मन्थरा ।।
*व्यग्र 
*आपातकाल

कथा-सारांश : भगवती शांता परम-19

  चौपाई 
रावण की दारुण अय्यारी | कौशल्या पर पड़ती भारी ||
कौशल्या का हरण कराये | पेटी में धर नदी बहाए ||

दशरथ संग जटायू धाये | पेटी सागर तट पर पाए ||
नारायण जप नारद आये | कौशल्या संग व्याह कराये ||

अवध नगर में खुशियाँ छाये | खर-दूषण योजना बनाये |
कौशल्या का गर्भ गिराया | पल-पल रावण रचता माया ||

सुग्गासुर आया इक पापी | गिद्धराज ने गर्दन नापी ||
नव-दुर्गा में खीर जिमाये |  नन्हीं-मुन्हीं कन्या आये ||

रानी फिर से गर्भ धारती | कौला विपदा विकट टारती ||
कौशल्या का छद्म वेश धर | सात मास मैके में जाकर ||

रावण के षड्यंत्र काटती | कौशल्या को ख़ुशी बांटती ||
शांता खुशियाँ लेकर आये | कौला को भी पास बुलाये ||

उलझे अंतरजाल में, दिया दनादन छाप -


चिड़िया  
 चीं-चीं चिड़िया चंचली, चिचियाहट *चितभंग ।
सूर्य अस्तगामी हुआ, रक्त आसमाँ रंग ।
रक्त आसमाँ रंग, साँझ होने को आई |
जंग आज की बन्द, सकाले करे चढ़ाई ।
प्राकृत का है खेल, समय ने सीमा खींची |
भोर लगे अलबेल, मस्त चिड़िया की चीं चीं ।।  

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आज की सुबह

देवेन्द्र पाण्डेय 

  नारी-गौतम को छला, छले आज भी सोम ।
राह दिखाना ढोंग है, ताके पूरा व्योम ।
ताके पूरा व्योम, डरे नहिं राहु-केतु से ।

प्रणय-कक्ष में झाँक, रहा वह नित्य सेतु से ।
रविकर आओ शीघ्र, भगाओ तम-व्यभिचारी ।
यह पापी निर्लज्ज, आज भी ताके नारी ।।


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सौ सुनार की चोट हित, मतदाता तैयार ।
इक लुहार की ठोक के, चाहे सुख-भिनसार ।
चाहे सुख-भिनसार, रात कुल पांच साल की ।
दुर्गति के आसार,  मुसीबत जान-माल की ।
चोरी लूट खसोट,  डकैती बलत्कार की ।
लुटा दिया जब वोट, सहो अब सौ सुनार की ।।

हम देख न सके,,,

Dheerendra singh Bhadauriya 

हुस्न-इश्क को भूल जा, रविकर पकड़ सलाह |
सूक्ष्म-दृष्टि अतिशय विकट, अभी गजब उत्साह |
अभी गजब उत्साह, कहीं ना आह निकाले |
यह कंटकमय राह, पड़ो ना इनके पाले |
पड़ जाए गर धीर, ध्यान में रखो रिश्क को |
शुभकामना असीम, भूल जा हुश्न-इश्क को ||

भानमती की बात - साठा सो पाठा.

शर्मिन्दा पौरुष हुआ, लपलपान जो नीच ।
 पैर कब्र में लटकते, ले नातिन को खींच ।
ले नातिन को खींच, बचे ना होंगे बच्चे ।
 यह तो शोषक घोर, चबाया होगा कच्चे ।
है इसको धिक्कार, धरा पर काहे जिन्दा ।
खुद को जल्दी मार, हुआ रविकर शर्मिंदा ।।

Saturday, 29 September 2012

मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात ?



हम हर साल दो अक्टूबर को पाखंड करते हैं,फ़िर पूरे साल लंबी तान कर सो जाते हैं ।
हर दो-दस को हम करें, मिलकर धुर-पाखण्ड ।
खण्ड-खण्ड खेलें खलें, खुलकर फिर उद्दंड ।
खुलकर फिर उद्दंड , जमे सब राज-घाट पर ।
राज-पाट पर नजर, जमे पंचाट-हाट पर ।
राष्ट्र-पिता तो दफ़न, माय मम झोली भर दो ।
संकट में सरकार, सकल चिंताएं हर दो ।।

 मनोरमा
मुद्दों ने ऐसा भटकाया,  हुआ शहर वीरान ।
मुर्दे कब्ज़ा करें घरों पर, भरे घड़े श्मशान ।

एक व्यवस्था चले सही से, लाशों पर है टैक्स -

अपना बोरिया बिस्तर लेकर, भाग गए भगवान् ।।

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शीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय |
गुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय |
लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते |
चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते |
सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता |
मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता ||

 मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात ?
तुकबन्दी क्या सीख ली, भूला अपनी जात ।

भूला अपनी जात, फटाफट छान जलेबी ।
कहाँ कुंडली मार, डराता बाबा-बेबी ।

ब्लॉग-वर्ल्ड अभि-जात,  हकाले ऊल-जुलूली ।
उटपटांग कुल कथ्य, शिल्प बेहद मामूली ।। 



http://snshukla.blogspot.in/2012/09/169.html मेरी कवितायेँ  
फितरत चालों की रही, सालों का है ऐब ।
शोहरत की खातिर खुली, षड्यंत्रों की लैब ।
षड्यंत्रों की लैब , करे नीलामी भारी ।
खाय दलाली ढेर, उजाड़े प्राकृत सारी ।
शुद्ध हवा फल फूल, धूप की बाकी हसरत ।
हरकत ऊल-जुलूल, बदल ले अपनी फितरत ।।


ताकें आहत औरतें, होती व्यथित निराश ।
छुपा रहे मुंह मर्द सब, दर्द गर्द एहसास ।
दर्द गर्द एहसास,  कुहांसे से घबराए ।
पिता पड़ा बीमार, खरहरा पूत थमाये ।
 मातु-दुलारा पूत, भेज दी बिटिया नाके ।
बहन बहारे *बगर, बहारें भैया ताके ।।
*बड़े घर के सामने का स्थान 

रस्सी पीटने वाले 'वो'.....

 अच्छी है रस्सा-कसी, हंसी-रुदन है साथ ।
रस्सी अपने हाथ में, नागिन उनके हाथ ।
नागिन उनके हाथ, लिया गिन गिन के बदलें ।
बदले न हालात, मोरचे चलते अगले ।
मारक विष तैयार, बड़ी भारी नर-भक्षी ।
जो भी जाए हार, हार डाले वो अच्छी ।।


 मन्त्र मारती मन्थरा, मारे मर्म महीप ।
स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप । 
समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी ।
कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी ।
कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा ।
रावण-बध परिणाम, मारती मन्त्र मन्थरा ।।
*व्यग्र 
*आपातकाल

Friday, 28 September 2012

पाता जीवन श्रेष्ठ, लगा सुत पाठ-पढ़ाने-





पौधा रोपा परम-प्रेम का, पल-पल पौ पसरे पाताली |
पौ बारह काया की होती, लगी झूमने डाली डाली |

जब  पादप की बढ़ी उंचाई, पर्वत ईर्ष्या से कुढ़ जाता -
टांग अड़ाने लगा रोज ही, काली जिभ्या बकती गाली |


सर्ग-4
भाग-6  
 शांता-सृंगी विवाह 

पहले फेरे के वचन,  पालन-पोषण खाद्य |
संगच्छध्वम बोलते, बाजे मंगल वाद्य ||

स्वस्थ और सामृद्ध हो, त्रि-आयामी स्वास्थ |
भौतिक तन अध्यात्म मन, मिले मानसिक आथ ||

धन-दौलत या शक्ति हो, ख़ुशी मिले या दर्द |
भोगे मिलकर संग में, दोनों औरत-मर्द ||

Untitled

Vaanbhatt 
 वापस आने के लिए, नहीं निकलते बुद्ध ।
मात-पिता फिर भी करें, कोशिश परम विशुद्ध ।
कोशिश परम विशुद्ध, सकल सुविधा दिलवाते ।
 करें भागीरथ यत्न, ज्ञान की गंगा लाते ।
पाता जीवन श्रेष्ठ, लगा सुत पाठ-पढ़ाने ।
परदेशी व्यवहार, नहीं अब वापस आने ।

बच्चों की खिलती मुस्कान

  (प्रवीण पाण्डेय) 
 न दैन्यं न पलायनम्
अपनी किस्मत से दुनिया में, कई अधूरे चित्र मिलें हैं ।
ऊपर वाले की रहमत से, कुछ कलियाँ कुछ तनिक खिले हैं।
अपनी मेधा अपनी इच्छा, चाहे जो व्यवहार करूँ -
किन्तु पूर्णता देनी होगी,  मनभावन शुभ रंग भरूँ ।।

 
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शीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय |
गुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय |
लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते |
चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते |
सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता |
मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता ||

 मनोरमा
मुद्दों ने ऐसा भटकाया,  हुआ शहर वीरान ।
मुर्दे कब्ज़ा करें घरों पर, भरे घड़े श्मशान ।
एक व्यवस्था चले सही से, लाशों पर है टैक्स -
अपना बोरिया बिस्तर लेकर, भाग गए भगवान् ।।

 उन्नयन (UNNAYANA) 

स्वाभिमान अभिमान अब, दया दृष्टि में खोट |
अपने ही पहुंचा रहे, भारत माँ को चोट ||


My Image
जिसकी कालर व्हाइट व्हाइट, चीं चीं चीं चीं कालर ट्यून ।
जिसको संदेसा देता हो, उगता सूरज, डूबा मून  ।
कदम कदम जो चले संभल कर, नेचर से है नेचर प्रेमी 
भेज रहे क्यूँ एस एम् एस हो, गुड नाइट को करते रयून ।।

चलो उधर अब चल दो ।
रस्ता जरा  बदल दो ।।

 दुनिया के मसलों का 
हिन्दुस्तानी हल दो ।।

 होली होने को हो ली 
रंग तो फिर भी मल दो ।

Thursday, 27 September 2012

मानव जीता जगत, किन्तु गूगल से हारा -




बेबस पेड़

सुशील 

सदाबहारों में गिने, जाते हैं जो पेड़ |
पतझड़ वाले क्यूँ रहे, उन पेड़ों को छेड़ |
उन पेड़ों को छेड़, नहीं उनका कुछ बिगड़े |
खाद नमी भरपूर, खाय के होते तगड़े |
उल्लू क्यों गमगीन, बहुत शाखाएं हाजिर |
हर शाखा पर एक, किन्तु बैठा है शातिर ||



काव्यमयी प्रस्तावना, मन गलगल गुगलाय ।
शब्दों का यह तारतम्य, रहा गजब है ढाय ।
रहा गजब है ढाय, बोलते हैप्पी बड्डे ।
घर घर बनते जाँय, अति मनोरंजक अड्डे ।
मानव जीता जगत,  किन्तु गूगल से हारा ।
गूगल जयजयकार, तुम्ही इक मात्र सहारा ।


ख्वाब तुम पलो पलो

expression 
 बढ़ता नन्हा कदम है, मातु-पिता जब संग ।
लेकिन तन्हा कदम पर, तुम बिन लगती जंग ।
तुम बिन लगती जंग, तंग करती है दूरी  ।
जीतूँ जीवन-जंग, उपस्थिति बड़ी जरुरी ।
थामे कृष्णा हाथ, प्यार का ज्वर चढ़ जाए ।
छलिये चलिए साथ, कभी आ बिना बुलाये ।।


‘रेणु’ से ‘दलित’ तक

  अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)

सियानी गोठ

 
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित
अरुण निगम के पिताजी, श्रेष्ठ दलित कविराज |
उनकी कविता कुंडली, पढता रहा समाज |
पढता रहा समाज, आज भी हैं प्रासंगिक |
देशभक्ति के मन्त्र, गाँव पर लिख सर्वाधिक ||
छत्तिसगढ़ का प्रांत, आज छू रहा ऊंचाई |
जय जय जय कवि दलित, बड़ी आभार बधाई ||

बेहतर

आशा जोगळेकर  

 गुण-अवगुण की खान तन, मन संवेदनशील ।
इसीलिए इंसान हूँ , दीदी मस्त दलील ।।

साधना शब्‍दों की ... !!!

सदा  
SADA  

गुरुजन के आशीष से, जानो शब्द रहस्य |
शब्द अनंत असीम हैं, क्रमश: मिलें अवश्य |
क्रमश: मिलें अवश्य, किन्तु आलस्य नहीं कर |
कर इनका सम्मान, भरो झोली पा अवसर |
फिर करना कल्याण, लोक हित सर्व समर्पन |
रे साधक ले साध, दिखाएँ रस्ता गुरुजन ||


बिना घोटाले के भी देश की बैंड बजायी जा सकती है!


शीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय |
गुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय |
लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते |
चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते |
सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता |
मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता ||

रचना जब विध्वंसक हो !

विध्वंसक-निर्माण का, नया चलेगा दौर ।
 नव रचनाओं से सजे, धरती चंदा सौर ।

धरती चंदा सौर, नए जोड़े बन जाएँ ।
नदियाँ चढ़ें पहाड़, कोयला कोयल खाएं ।

होने दो विध्वंस, खुदा का करम दिखाते  ।
धरिये मन संतोष,  नई सी रचना लाते ।।

Wednesday, 26 September 2012

गैरों का दुष्कर्म, करे खुद को भी लांछित-



छोड़ा है मुझको तन्हा बेकार बनाके

"अनंत" अरुन शर्मा 
चले कार-सरकार की, होय प्रेम-व्यापार |
औजारों से खोलते, पेंच जंग के चार |
पेंच जंग के चार, चूड़ियाँ लाल हुई हैं |
यह ताजा अखबार, सफेदी छुई-मुई है |
चश्मा मोटा चढ़ा, रास्ता टूटा फूटा |
पत्थर बड़ा अड़ा, यहीं पर गाड़ू खूटा ||

 लो क सं घ र्ष !
उद्योगों के दर्द की, जायज चिंता मित्र |
नहीं किन्तु हमदर्द ये, इनकी सोच विचित्र |
इनकी सोच विचित्र, मार सूखे की पड़ती |
है किसान हलकान, पड़ी पड़ती भू गड़ती |
सूखे में भी चाह, चलो टी वी फ्रिज भोगो |
सत्ता इनके संग, कमीशन दो उद्योगों ||

मौसम ने ली अंगड़ाई

देवेन्द्र पाण्डेय  

सीधी रेखाएं खिंची, बढ़िया मेड़ मुड़ेर ।
पोली पोली माँ दिखे, मिले उर्वरक ढेर ।
मिले उर्वरक ढेर, देर क्या करना सावन ।
किलकारी ले गूंज, लगे जग को मनभावन ।
होय प्रफुल्लित गात, गजब हरियाली देखा ।
अब तो मानव जात, पकड़ ले सीधी रेखा ।

आंसू..

रश्मि 

आंसू आंशुक-जल सरिस, हरे व्यथा तन व्याधि ।
समय समय पर निकलते,  आधा करते *आधि ।
*मानसिक व्याधि


घर में पिटाई क्यों सहती हैं बाहर बोल्ड रहने वाली महिलायें ?

DR. ANWER JAMAL 
 Blog News  

कहना चाहूँ कान में, मेहरबान धर कान |
दिखता है जो सामने, मत दे उस पर ध्यान |
मत दे उस पर ध्यान, मजा ले आजादी का |
मर्द सदा व्यवधान, विकट बंधन शादी का |
पिटते कितने मर्द, मगर मर्दाना छवि है |
होते नित-प्रति हवन, यही तो असली हवि है |||



...और वो अकेली ही रह गई


बड़ी मार्मिक कथा यह, प्रिया करे ना माफ़ |
परिजन को करनी पड़े, अपनी स्थिति साफ़ |
अपनी स्थिति साफ़, किया बर्ताव अवांछित |
गैरों का दुष्कर्म, करे खुद को भी लांछित |
मात-पिता तकरार, हुई बेटी मरियल सी |
ढोई जीवन बोझ, नहीं इक पल को हुलसी ||


Politics To Fashion
आयेगा उत्कृष्ट अब, रहो सदा तैयार ।
काँटा चम्मच हाथ में, मजेदार उपहार ।
मजेदार उपहार, वाह युवती की इच्छा ।
मृत्यु सुनिश्चित देख, किन्तु देती है शिक्षा ।
होना नहीं निराश, जगत तुमको भायेगा ।
जैसा भी हो आज, श्रेष्ठ तो कल आएगा ।।

मेरी कविता

आशा बिष्ट 

टूटा दर्पण कर गया, अर्पण अपना स्नेह ।
बोझिल मन आँखे सजल, देखा कम्पित देह ।
देखा कम्पित देह, देखता रहता नियमित ।
होता हर दिन एक, दर्द नव जिस पर अंकित ।
कर पाता बर्दाश्त, नहीं वह काजल छूटा।
रूठा मन का चैन, और यह दर्पण टूटा ।।

बस तुम ....

Anupama Tripathi 

कान्हा कब का कहा ना, कितना तू चालाक ।
गीता का उपदेश या , जमा रहा तू धाक ।
जमा रहा तू धाक,  वहाँ तू युद्ध कराये ।
किन्तु  कालिमा श्याम, कौन मन शुद्ध कराये ।
तू ही तू सब ओर, धूप में छाया बनकर ।
तू ही है दिन-रात, ताकता हरदम रविकर ।।

हो रहा भारत निर्माण ( व्यंग्य कविता )

 

क्या भारत निर्माण है, जियो मित्र लिक्खाड़ ।
खाय दलाली कोयला, रहे कमीशन ताड़ ।
रहे कमीशन ताड़ , देश को गर बेचोगे ।
फिफ्टी फिफ्टी होय, फिरी झंझट से होगे ।
चलो घुटाले बाल, घुटाले को दफनाना ।
आयेगा फिर राज,  नए गांधी का नाना ।।


रचना जब विध्वंसक हो !

विध्वंसक-निर्माण का, नया चलेगा दौर ।
 नव रचनाओं से सजे, धरती चंदा सौर ।

धरती चंदा सौर, नए जोड़े बन जाएँ ।
नदियाँ चढ़ें पहाड़, कोयला कोयल खाएं ।

होने दो विध्वंस, खुदा का करम दिखाते  ।
धरिये मन संतोष,  नई सी रचना लाते ।।

सियानी गोठ

अरुण कुमार निगम  
राख राख ले ठीक से, रखियाना हर पात्र |
सर्वाधिक शुद्धता लिए, मिलती राखी मात्र ||