Sunday 23 September 2012

गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन -



गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन

आज धनबाद के ब्लॉगर्स को माननीय देवेन्द्र गौतम जी का सानिध्य प्राप्त हुआ ।

इस गोष्ठी में  गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन की स्थापना की आवश्यकता महसूस की गयी । आपके विचार और सुझाव सादर आमंत्रित हैं । 
--------रविकर---------


बहकावे में गैर के, ना आना नादान ।
इस पर पहला हक़ रखूँ ,  बन्दा बड़ा प्रधान । 
बन्दा बड़ा प्रधान, गधा सा सधा सधाया ।
परदेशी मेहमान, ढूँढ़ के मुझको लाया ।
घर से लेकर घाट, घुटाले मन बहलावे ।
चला डिफीसिट पाट, हमें वो ही बहकावे ।।


कुत्ता दिवस!

noreply@blogger.com (Arvind Mishra) 
 क्वचिदन्यतोSपि...
नई नई है पोस्टिंग, नई नई पहचान ।
आश्विन का है मास ये, बढे ख़ास मेहमान ।
बढे ख़ास मेहमान , बड़े मारक हो जाते ।
अंग भंग नुक्सान, आजकल कम गुर्राते ।
बैसवार की बात, दिवस क्या मास मनाएं ।
दिखे गजब बारात, दर्जनों दूल्हे आये ।।


ख़बरें सेहत की

Virendra Kumar Sharma  
बचपन में लो बूस्टर, पियो एनर्जी ड्रिंक ।
फास्ट फ़ूड लो टिफिन में, भर लो काली इंक ।
भर लो काली इंक, लिखेगा काला काला ।
कई तरह के लिंक, निकाले देह-दिवाला । 
कामोत्तेजक ड्रग्स, करो उत्तेजित पचपन ।
झेले कहाँ शरीर, बुढापे तक रे *बचपन ।।
*बचपना

सत्ता के गलियारे में उगता है पैसा

devendra gautam 
 fact n figure

 पैसा पा'के  पेड़ पर, रुपया कोल खदान ।
किन्तु उधारीकरण से, चुकता करे लगान ।
चुकता करे लगान, विदेशी खाद उर्वरक ।
जब मजदूर किसान, करेगा मेहनत भरसक ।
पर मण्डी मुहताज, उन्हीं की रहे हमेशा ।
लागत नहीं वसूल, वसूलें वो तो पैसा ।।

भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-16

सर्ग-4
भाग-4 
अंग-देश में अकाल     

Shanta (Ramayana)

Shanta is a character in the Ramayana. She was the daughter of Dasharatha and Kausalya, adopted by the couple Rompad and Vershini.[1] Shanta was a wife of Rishyasringa.[1] The descendants of Shanta and Rishyasringa are Sengar Rajputs who are called the only Rishivanshi rajputs.


लगा चून, परचून, मारता डंडी रविकर -

पासन्गे से परेशां, तौले भाजी पाव ।
इक छटाक लेता चुरा, फिर भी नहीं अघाव ।

फिर भी नहीं अघाव, मिलावट करती मण्डी  ।
लगा चून, परचून, मारता रविकर डंडी

 कर के भारत बंद, भगा परदेशी नंगे ।
लेते सारे पक्ष, हटा अब तो पासन्गे ।।

देश चराने के लिए, पैसे की दरकार ।
पैसे पाने के लिए, अपनी हो सरकार ।
अपनी हो सरकार, नहीं आसान बनाना ।
सब जुगाड़ का खेल, बुला परदेशी नाना ।
नाना नया नकार, निखारे नाम पुराने ।
मनी-प्लांट लो लूट, चलो फिर देश चराने ।।

6 comments:

  1. हम भी गंगा के किनारे के हैं भाई !

    ...कुत्तों के लिए शुभकामना :-)

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  2. बहत खूब भाई साहब .

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  3. बहत खूब भाई साहब .


    रविवार, 23 सितम्बर 2012
    ब्लॉग जगत में शब्द कृपणता ठीक नहीं मेरे भैया ,


    ब्लॉग जगत में शब्द कृपणता ठीक नहीं मेरे भैया ,

    नाव भंवर में अटक गई तो ,कोई नहीं नहीं खिवैया |

    विषय बड़ा सपाट है अभिधा में ही आगे बढेगा ,लक्षणा और व्यंजना की गुंजाइश ही नहीं मेरे भैया .चिठ्ठा -कारी भले एक व्यसन बना कईओं का ,फिर भी भैया सहजीवन है यहाँ पे छैयां छैयां

    .चल छैयां छैयां छैयां छैयां .आ पकड मेरी बैयाँ बैयाँ .

    क्यों शब्द कृपण दिखता है रे ! कन्हैयाँ?

    धन कंजूस चल जाता है .भई किसी का कुछ ले नहीं रहा ,अपना फायदा कर रहा है .सीधा सा गणित है कंजूसी का :मनी नोट स्पेंट इज मनी सेव्ड .लेकिन यहाँ मेरे राजन यह फार्मूला लगाया तो सारे समर्थक ,अभी तलक टिपियाए लोग आपके दायरे से बाहर आ जायेंगें .शब्द कृपणता आपको आखिर में निस्संग कर देगी .आप भले "निरंतर ",लिखें "सुमन" सा खिलें ,

    साथ में चिठ्ठा -वीर और बिना बघनखे धारे चिठ्ठा -धीर दिखें .आखिर में कुछ होना हवाना नहीं है सिवाय इसके -

    चल अकेला चल अकेला ,चल अकेला ,तेरा "चिठ्ठा "कच्चा फूटा राही चल अकेला .

    यहाँ कुछ लोग आत्म मुग्ध दिखतें हैं .आत्म संतुष्ट भी .महान होने का भी भ्रम रखतें हैं/रखती हैं .आरती करो इनकी करो इनकी "वंदना "हो सकता है हों भी महान .शिज़ोफ्रेनिक भी तो हो सकते है .मेनियाक फेज़ में भी हो सकतें हैं बाई -पोलर इलनेस की ,मेजर -डिप्रेसिव -डिस -ऑर्डर की ..

    ये चिठ्ठा है मेरे भाई ,अखबार की तरह एक दिनी अवधि है इसकी. बाद इसके कूड़े का ढेर .

    इतनी अकड काहे की ?

    निरभिमान बन ,मत बन शब्द कृपण .आपके दो शब्द दूसरे को सारे दिन खुश रख सकतें हैं .

    शब्दों से ही चलती है ज़िन्दगी प्यारे .

    कुछ शब्द हम अपने गिर्द पाल लेतें हैं .

    "अपनी किस्मत में यही लिखा था भैया ,अपनी तो किस्मत ही फूटी हुई है ,कोई हाल पूछे तो कहतें हैं बीमार हूँ भैया "-बस तथास्तु ही हो जाता है .

    बस इतना ध्यान रख तुझे लेके कोई ये न कहे मेरे प्रियवर तू मेरी टिपण्णी को तरसे .सारे दिन तेरा जिया धडके ...

    और तू गाये :जिया बे -करार है ,छाई बहार है आजा मेरे टिपिया तेरा इंतज़ार है .

    यहाँ प्यारे! आने- जाने का अनुपात सम है .स्त्री -पुरुष की तरह विषम नहीं .तेरा चिठ्ठा भी प्यारे कन्या भ्रूण की तरह किसी दिन कूढ़े के ढेर पे मिल सकता है .तू मेरे घर आ! मैं आऊँ तेरे. .जितनी मर्जी बार आ ,खाली हाथ न आ .भले मानस दो चार शब्द ला .

    पटक जा मेरे दुआरे !

    गुड़ न दे, गुड़ सी बात तो कह .

    एक टिपण्णी का ही तो सवाल है जो दे उसका भला ,जो न दे उसका भी बेड़ा रामजी पार करें .

    राम राम भाई !

    सुन !इधर आ !

    मत शरमा !

    जिसने की शरम उसके फूटे करम

    शर्माज आर दा मोस्ट बे -शर्माज . .

    "मौन सिंह" मत बन .

    इटली का कुप्पा सूजा मत दिख .

    निर्भाव न दिख ,भाव भले ख़ा ,भावपूर्ण दिख .

    प्यार कर ले नहीं तो पीछे पछतायेगा .

    साईबोर्ग मत बन ,होमो -सेपियन बन ,
    आर्डर दिया था आपको इस गद्य को कविता /कुंडली /दोहों /सोरठा किसी में भी ढालने का पहली मर्तबा आपकी सप्लाई लेट है .व्यस्त रहे समारोह में
    गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन

    आज धनबाद के ब्लॉगर्स को माननीय देवेन्द्र गौतम जी का सानिध्य प्राप्त हुआ ।हमें भी अच्छा लगा .आपको पुन :स्मरण करवाया जाता है पुराने ग्राहक हैं आपको छोड़ कहीं और जा भी नहीं सकते .

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  4. वाह ... बेहतरीन

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