Thursday 4 October 2012

पुरानी रचना / आपने याद किया -रविकर फटी-चर

प्रिय पाठक गण - कतिपय कारणों से दो दिन यह पोस्ट ब्लॉग पर उपलब्ध नहीं थी : खेद व्यक्त करता हूँ -रविकर 
@केवल किसी की पोस्ट पर कविता इत्यादि कमेन्ट में लिखने से क्या होता हैं|
कविता लिखे कमेन्ट में, जानो न क्या होय |
च च च अनजान है, जाती तभी डुबोय |
जाती तभी डुबोय, खाय हिचकोले मरती |
छीने सबका चैन, और फिर जाय अकड़ती |
टिप्पण पर टिप्पणी, किसी मकसद से आई |
रविकर को ले घेर, करे खूब जोर पिटाई ||
 
कैसा नारीवाद है, पत्नी पर दे छूट ।
लेकिन आकर पोस्ट पर, क्यूँ पड़ती है टूट ।
क्यूँ पड़ती है टूट, गजब ईश्वर की रचना ।
टेढा आँगन मिले, किन्तु नचना तो नचना ।
छोटी छोटी बात, केस की धमकी देती ।
टें - टें  कर टेढ़याय, ब्लॉग का ठेका लेती ।


@ मुझे सबसे ज्यादा हंसी ब्लॉग लेखको पर आती हैं जो इन पोस्ट पर कमेन्ट करते हैं------अपने ब्लॉग पर खुद यही सब लिख ते हैं
यह मिथ्या आरोप है, है बिल्ली की खीस |
चार ब्लॉग पर देखिये, रची चार सौ बीस |
रची चार सौ बीस , बात अपनी न करना |
नहिं नारी अपमान, पढो फिर नाक रगड़ना |
रे झूठी मक्कार, तुझे न नारी मानूँ |
कर वो टिप्पण याद, रार क्या तुझसे ठानूँ || 


कभी नहीं मैंने कहा, बीबी बदल पुरान ।
शत्रु पुराना झेल लूँ , गलत सलत अनुमान ।
गलत सलत अनुमान, बिना सन्दर्भ रार कर ।
बार बार उलझाय, सताए सीधा रविकर ।
फुरसतिया पल पाय,  आय के हमें खखोरो ।
सीधा रस्ता चलूँ, किन्तु पथ सदा अगोरो ।


@अब पत्नी पर तो "इतना अधिकार " होता ही हैं
कोई पत्नी कहे तो, बात समझ में आय |
है "इतना अधिकार " तो, कैसे तुझे बुझाय |
कैसे तुझे बुझाय, चार घर जरा झाँक ले |
बिन जाने सब तथ्य, गप्प सब बड़ी हांक ले |
अब शादी के बाद, फैसले लेती बीबी |
मर्द करे बकवाद, बुलाये पुलिस करीबी ||

आज की ताज़ी टिप्पणी 
रचना said...
जील
उन्होने पुरानी पत्नी कहा था , अब पत्नी पर तो "इतना अधिकार " होता ही हैं ना की उसके खिलाफ कुछ भी लिख सको
वैसे मुझे सबसे ज्यादा हंसी ब्लॉग लेखको पर आती हैं जो इन पोस्ट पर कमेन्ट करते हैं और अपने ब्लॉग पर खुद यही सब लिख ते हैं और आपत्ति करो तो नाम को बिगाड़ कर रे- चना लिखते हैं और एक बार नहीं निरंतर कई पोस्ट पर करते ही रहते हैं


Laughing lady
जब तक ये सब खुद यही करते हैं केवल किसी की पोस्ट पर कविता इत्यादि कमेन्ट में लिखने से क्या होता हैं|


ताजी पोस्ट 


Cut off Surpanakha`s nose and ears





खरा काबुली रे-चना, हमने डाली हींग ।
 फिर क्यूँ झेलूँ रेच यह, वायु मारती सींग ।

वायु मारती सींग, रेचना रात रात भर ।
अजवाइन ली फांक,  भूल हो जाती अक्सर ।

मटर रे-चना व्यर्थ, कभी न पचता सारा  ।
मुझे रेचना याद, नहीं मैंने मुंह मारा ।।




बदले गीत-अगीत सब, बदल जाय संगीत ।
इक रचना बदले नहीं, भाव शून्य कुल रीत ।
भाव शून्य कुल रीत, खखोरे रचना रविकर ।
बदतमीज है चीज, सकल दुनिया से हटकर ।
हो बढ़िया श्रृंगार, बना दे वह वीभत्सी ।
सीढ़ी खुद को कहे, लोकप्रियता ले सस्ती  ।। 



सीधी साधी बालिका, थी किताब की कीट |
बढ़िया पोजीसन मिली, है नागरिक एलीट |
है नागरिक एलीट, पुरुष की जानी दुश्मन |
ढूँढ़ ढूँढ़ दे पीट, चीट हो जाता सज्जन |
नहीं लचीली सोच, हठीली गजब बनाई |
रविकर निश्चर पोच, बचाना ब्लॉगर भाई ||





पुरानी  पोस्ट 
एक ठो रचना लटी  पर ।
कह  गये  रविकर फटी-चर ।
दो कमी'जो की कमी'ने -
दी पटक रविकर जमीं पर । 
काव्य कैसा कल रचा था -
खुश हुई कलियाँ, हटी पर ।
 कल ग़लतफ़हमी घटी थी 
आज भौंरे हैं घटी पर ।
खून रविकर पी चुके खुद 
कह रहे मच्छर,  तमीचर ।
नटराज भी आकर सिखाये 
नहीं माने वह नटी पर 
दिख रही साबूत लेकिन
कई टुकड़ों में बटी पर 
मुंह की अपने खा चुकी वो -
फिर से आके  है डटी पर |
 
 चबवाये नाकों चने, लहराए हथियार ।
 चनाखार था पास में, देता रविकर डार ।। 

ऐ 'चना, बाजे घना,  
होकर पड़ा, थोथा यहाँ |
व्यर्थ है, उत्पत्ति तेरी- 

पेट-नीच की, क्षुधा मिटा |

उर्वरा धरती से बनता झाड़  
 किन्तु, रविकर न चढ़े 
ज्वार से जलता रहे तू,   
बाजरे, बाजार में -

चल पड़ा है आज क्रोधित, 

फोड़ने उस भाड़ को
औकात में ही रह, अनोखे,  

भाड़ कितने भूज खाया |

आग ठंडी हो चुकी है, 
मानता हूँ आज रविकर-
ऐ 'चना अब बाज आ जा,  
दांत का आर्डर गया है |
 
है पता लोहा नहीं तू, 

फिर भी चबाये हैं बहुत से |
थोथे चने पर 
चने
मुंह में नहीं अब लार आती  ||
अभिव्यक्ति का  गला घोटती  मारी  रचना ।
जाति धर्म पर, यौन कर्म पर हारी  रचना ।

देवदासियां रही हकीकत, दुनिया जाने -
कब से भारी जुल्म सह रही नारी रचना ।

यौन-कर्म सी समलैंगिकता यहाँ हकीकत-
खुद ईश्वर पर भारी  है  अय्यारी  रचना ।

हिन्दू मुश्लिम सिक्ख इसाई जैन पारसी 
बौद्धों पर भी आज पड़  रही भारी रचना ।

शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे-
 हथियारों की धमकी देती हारी रचना ।

आंसू नहीं पोंछने वाले इस दुनियां में-
बड़ी बड़ी  तब देने लगती गारी रचना ।

श्रैन्गारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न 
हास्य व्यंग उपहास कला पर सारी  रचना ।।

रक्षाबंधन आने वाला  है  सावन  में-
 कृष्ण कन्हैया की भी आये बारी रचना ।।

कुंडली 

सुशील जी जोशी की टिप्पणी  पर 

कभी झाड़ पर न चढूं, चना होय या ताड़ |
बड़ा कबाड़ी हूँ सखे, पूरा जमा कबाड़ |


पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी |
जरा जंग की मार, तनिक उसमे अधमायी |


झाड़-पोंछ कर पेंट, रखा है उसे टांड़ पर |
खा बीबी की झाड़, चढूं  न कभी झाड़ पर ||
 


करें चामचोरी रखे, 'रविकर' मन में खोट -

घाम चाम पर याम दो, हर दिन पड़े जरुर ।
मिले विटामिन डी सखे, काया को भरपूर ।।
अवमूल्यन मुद्रा विकट, मिले चाम के दाम ।
डालर सोने का हुआ, मंदी हो बदनाम ।।
जाए चाहे चामड़ी, दमड़ी होय न खर्च ।
गिरे अठन्नी बीच में, मीलों करता सर्च ।।
जहाँ  दबंगों ने दिया, चला चाम के दाम ।
जर-जमीन-जोरू दखल, त्राहिमाम हर याम ।।
निकृष्टतम अपराध है, बहुत जरुरी रोक ।
करें चामचोरी रखे, 'रविकर' मन में खोट ।।
रंगभेद है विश्व में, चाम-चमक आधार ।
 नस्लभेद से त्रस्त-जन, लिंग-भेद भरमार ।।

13 comments:

  1. बहुत ही बढिया।

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  2. sundr,..... " kh Rvikr bauray, dhra drni pr,khao pio mst rho tum rabdi pr,bhedo ke tum bhed kholte,kah auro ki apni pr,de subuddhi bhagvan enhe dristi rhe grihni pr,jhad poch kr chehra apna,rob jamave grihni pr................"

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  3. वाह रविकर सर क्या बात है बेहतरीन

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    सभी को ऊर्जा मिलती है आपकी टिप्पणियों से!

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  5. ये बीमारी ब्लॉग की,पूरी स्यापा टीम,
    रह-रह खुजली मच उठे,मिलता नहीं हकीम ।

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    1. गया खटीमा में रहा, पूरी दिल्ली घूम |
      और गाजियाबाद भी, चलते फिरते चूम |
      चलते फिरते चूम, हकीमी सीखी सारी|
      औषधि करती असर, खाज की गर बीमारी |
      बुरके थोडा लवण, लगा के नीम करेला |
      चम्मच से दे रगड़, खाज का ख़तम झमेला ||

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  6. रे चना ,

    थोथे चना ,

    बाजे क्यों इतना घना .

    वैसे पाठकों की सुविधा के लिए बतला दिया जाए -रेचक या विरेचक दस्तावर चीज़ को कहतें हैं .

    purgatives को कहतें हैं .



    Laxative - Wikipedia, the free encyclopedia
    en.wikipedia.org/wiki/LaxativeShare
    Laxatives (purgatives, aperients) are foods, compounds, or drugs taken to loosen the stool, most often taken to treat constipation. Certain stimulant, lubricant ...

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  7. रे चना ,

    थोथे चना ,

    बाजे क्यों इतना घना .

    वैसे पाठकों की सुविधा के लिए बतला दिया जाए -रेचक या विरेचक दस्तावर चीज़ को कहतें हैं .

    purgatives को कहतें हैं .



    Laxative - Wikipedia, the free encyclopedia
    en.wikipedia.org/wiki/LaxativeShare
    Laxatives (purgatives, aperients) are foods, compounds, or drugs taken to loosen the stool, most often taken to treat constipation. Certain stimulant, lubricant ...

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  8. श्रैन्गारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न ............श्रृंगारिकता


    हास्य व्यंग उपहास कला पर सारी रचना ।।..................व्यंग्य




    श्रृंगारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न ,

    हास्य व्यंग्य उपहास कला पर सारी रचना .

    ब्लॉग -बही बलिहारी रचना .

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  9. इक समग्र रचना ! :-)

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  10. बहुत ही बढिया।

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  11. बहुत ही बढिया।

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  12. बलिहारी जाऊं चने पर, जो मरोड़ देत उठाय
    रचना,रेचना और चना विकार से निजात दिलाय
    :)

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