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आदरणीय रविकर जी की कुण्डलिया को समर्पित दो कुण्डलिया....(विचार आमंत्रित)...
परिहास
– रविकर..........
जली कटी देती सुना, महीने में दो चार । तुम तो भूखी एक दिन, सैंयाँ बारम्बार । सैंयाँ बारम्बार , तुम्हारे व्रत की माया । सौ प्रतिशत अति शुद्ध, प्रेम-विश्वास समाया । रविकर फांके खीज, गालियाँ भूख-लटी दे । कैसे मांगे दम्भ, रोटियां जली कटी दे ।। ********************************
आदरणीय रविकर जी की कुण्डलिया
को समर्पित
दो कुण्डलिया..........................
1.
सइयाँ इंगलिश बार में, मजे लूटकर आयँ छोटी-छोटी बात पर ,सजनी से लड़ जायँ सजनी से लड़ जायँ ,कहे हैं जली रोटियाँ आलू का बस झोल, कहाँ हैं तली बोटियाँ जब सजनी गुर्राय,लपक कर पड़ते पइयाँ मजे लूटकर आयँ, इंगलिश बार से सइयाँ ||
2.
हँसके काटो चार दिन,मत दिखलाओ तैश
बाकी के छब्बीस दिन , होगी प्यारे
ऐश
होगी प्यारे ऐश , दुखों का प्रतिशत कम है
सात जनम का साथ ,रास्ता बड़ा विषम है
पाओगे सुख-धाम ,उन्हीं जुल्फों में फँस के
मत दिखलाओ तैश,चार दिन काटो हँसके ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.) |
रविकर
दीदी-बहना पञ्च ये
, मसला लाया
खींच |
हाथ जोड़ रविकर खड़ा, नीची नजरें मींच | नीची नजरें मींच , मगर बुदबुदा रहा है | उनकी साड़ी फींच, सका पर नहीं नहा है | दीदी की क्या बात, ब्याह कर अपने रस्ते | कहती नहीं उपाय, कि रविकर छूटे सस्ते || उनकी भी सुनिए - क्यूँ मांगू पति की उमर, मैं तो रही कमाय । उनकी क्या मुहताज हूँ , काहे रहूँ भुखाय । काहे रहूँ भुखाय , बनाते बढ़िया खाना । टिफिन बना दें मस्त, बना ऑफिस दीवाना । कब से करवा चौथ , नहीं रखते पति मेरे । मारें गर अवकाश , यहाँ होटल बहुतेरे ।। |
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भली बहस का अंत कर, रविकर कह कर जोर |
खुद में करूँ सुधार अब, छमहुं गलतियाँ मोर | छमहुं गलतियाँ मोर, खीर पूरी है खाना | पत्नी रही बुलाय, प्रेम से रविकर जाना | रही जलेबी छान, काम सब उसके बस का | रब की मेहर रहे, अंत अब भली बहस का ||
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वाह ... क्या बात है बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteक्या कहूं अब कमाल है! जी, बस कमाल है!
ReplyDeleteकविता-कविता में यहां मचा हुआ धमाल है।
जो जी में आए कवि को दिल से कहना चाहिए।
कविता-कविता का यह खेल ज़ारी रहना चाहिए!!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteare bap re ba'.........sach me yahan to kawaali wali maja hai.......bass, thora koi bhaiya ke palre ko bhi bhari karen..
ReplyDeleteaap sab ko pranam.
:):)
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteयह तरीका भी अच्छा है लेखन को बढ़ावा देने में |
ReplyDeleteराह तो कठिन है पर क्यूँ हो परहेज अनुप्रयोग करने में |
आशा
:):):)....
ReplyDeleteहम भी कवि बनने की सोच रहे थे इस प्रसंग से मजा आ गया
ReplyDeletenice
ReplyDeleteये तो अजब गजब इंफेक्शन फैल रहा है
ReplyDeleteजिसे देखो रविकर जैसा बोल रहा है !