Monday 5 November 2012

है नरेंद्र उपवास पर, दाउद खाये जाय- रविकर



सागर,,,

dheerendra bhadauriya  

सागर से क्या बात करें, उनके नयनों सी गहराई ।
डूब डूब उतराते हरदिन, नाप नहीं पाता भाई ।।

सागर के क्या पास चलें,  आंसू से भी खारा ज्यादा।
छूछे वापस लेकर लौटा, प्रेम-गगरिया नहीं डुबाई ।।

 मच्छर नहिं कमजोर जो, मार सके अखबार ।
मार सकोगे तभी जब, हो दोतरफा वार ।
हो दोतरफा वार , प्यार है अघ-कसाब से ।
 डेंगू जैसा वार, मारता बेहिसाब ये ।
आई-क्यु की कर बात, गडकरी जैसे लगते ।
बढ़िया मौका पाय,  दनादन मुंह से हगते । 

ये मेरे बुजर्गो का खजाना

DINESH PAREEK

  जाना है तो एक दिन, दनदनाय दिन बीत |
समय सतत गतिमान है, यही जगत की रीत |
यही जगत की रीत, तकाजा जिम्मा बंधन |
अनुभव बढ़ता जाय, सीखता जाता जीवन |
पर आ जाता काल, व्यर्थ हो गया मनाना |
बचुवा इसे संभाल, छोड़ कर चला खजाना ||

कुछ गुनाह ...!!!

 SADA

सच से हरदम भागते, भारी विकट गुनाह |
कहीं बदल कर रखी तो, आह आह ही आह |
आह आह ही आह, राह बाधित हो जाए |
खैरख्वाह शैतान, नहीं फिर पास बुलाये |
खुराफात में लीन, अगर यह नहीं रहेगा |
इस दुनिया से जाय, भला क्या वहाँ कहेगा ||

इसीलिए करता रहे, बन्दा यहाँ कुकर्म |
छोड़ छाड़ के शर्म को, छेड़-छाड़ का धर्म ||


पानी रे पानी

Saleem akhter Siddiqui 

उसका एफ़ डी आय है, बना आय का स्रोत्र  ।
सुखा दिया जल-स्रोत्र को, रुपियों का हो होत्र ।।
रुपियों का हो होत्र, गोत्र से शॉप विदेशी ।
पैदल बनता ऊँट , चले टेढा वह वेशी ।
नदी नहर नल कूप, मिटाता मानव मुस्का ।
  कुदरत कहीं वजूद, मिटा नहिं देवे उसका ।। 



महेन्द्र श्रीवास्तव
 भाजी पी-नट  की सड़ी,  गंध-करी  में आय ।
है नरेंद्र उपवास पर,  दाउद खाये जाय ।
दाउद खाये जाय, गधे के माफिक आई-क्यू ।
करे बरोबर बात, वाह रे कुक्कुर का व्यू ।
वह भी तो ना खाय, कहो क्या कहते काजी ।
हाँ जी हाँ जी सत्य, सड़ी निकली यह भाजी ।।   

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छूछ आग से 'के-जरी', जे 'गुट-करी' जनाब |
'सोनी-या' रोनी शकल, करती काम खराब |
करती काम खराब, बड़ा डेंगू है फैला |
सुबह कपाली काँख, फाँक ले सूखा मैला |
मत घबराना किन्तु, वोट तो मिलें भाग से |
नाती पुत्र दमाद, डरें नहीं छूछ आग से ||

मौन रतनपुर

Rahul Singh 
 आरे के उपयोग को, वर्जित कर इतिहास |
वन रक्षा में दे रहा, योगदान है ख़ास ||

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.....और मैं हतप्रभ सा देखता रह गया!

  (Arvind Mishra) 
 क्वचिदन्यतोSपि... 

चार दिनों से झेलता, झारखण्ड बरसात |
नीलम का यह असर है, चलता झंझावात |
चलता झंझावात, उपग्रह है प्राकृतिक |
दर्पण सा अवलोक, गगन से घटना हर इक |
हुवे घाघ अति श्रेष्ठ, पढ़ें संकेत अनोखे |
करे आकलन शुद्ध, मिलें फल हरदम चोखे || 

 (1)

रविकर की धज्जियाँ उडाती आ. अरुण निगम की पोस्ट 

(2)

आदरणीय रविकर जी की कुण्डलिया को समर्पित दो कुण्डलिया....(विचार आमंत्रित)...

भली बहस का अंत कर, रविकर कह कर जोर |
खुद में करूँ सुधार अब, छमहुं गलतियाँ मोर |
छमहुं गलतियाँ मोर, खीर पूरी है खाना |
पत्नी रही बुलाय, प्रेम से रविकर जाना |
रही जलेबी छान, काम सब उसके बस का |
रब की मेहर रहे, अंत अब भली बहस का ||


मैंने क्यूँ गाये हैं नारे

  (पूरण खंडेलवाल)  

गाँधी के बंदरों पर, नारे ये उत्कृष्ट ।
असर डाल पाते नहीं, दुष्ट कलेजे कृष्ण ।
दुष्ट कलेजे कृष्ण , कर्म रत रहिये हरदम ।
भूलो निज अधिकार, चलो चित्कारो भरदम ।
जूँ नहिं रेंगे कान, चले नारों की आँधी ।
आँख कान मुँह बंद, जमे अलबेले गाँधी ।।

मेरा बेटा
नादिर ख़ान 
http://www.openbooksonline.com/
 होली में झटपट मले, चेहरे पे मुस्कान |
लाल हरे के भेद से, बच्चा है अनजान |
बच्चा है अनजान, दिवाली दीप बटोरे |
क्रिसमस ईद मनाय, खिलौने से भर झोले |
रहता खुद में मस्त, सजाता रहे रंगोली |
बच्चा बच्चा रहे, मनाये यूँ ही होली ||

गांधी जी की प्रतिज्ञा

मनोज कुमार 

भीष्म कुँवारे की शपथ, सरिस वचन यह श्रेष्ठ ।
परतंत्री कलिकाल में,  यही लग रही ज्येष्ठ ।
यही लग रही ज्येष्ठ, आप इन्द्रिय सुख छोड़ा ।
धन्य धन्य हे वैद्य, सुधरता रोगी थोडा ।
त्याग तपस्या कर्म, अहिंसा सदगुण सारे ।
गाँधी दिखते श्रेष्ठ, पिछड़ते भीष्म कुंवारे ।।

(विवेकानंद-दाउद जैसा मत समझ लेना  विद्वानों )

  हर  लेख  को  सुन्दर कहा,  श्रम  को  सराहा हृदय से, 
अब  तर्क-संगत  टिप्पणी  की  पाठशाला  ले  चलो ||
 
खूबसूरत  शब्द  चुन  लो,  भावना  को  कूट-कर के
माखन-मलाई में मिलाकर, मधु-मसाला  ले  चलो  ||
 

विज्ञात-विज्ञ  विदोष-विदुषी  के विशिख-विक्षेप मे |
इस वारणीय विजल्प पर, इक विजय-माला ले चलो |
वारणीय=निषेध करने योग्य     विजल्प=व्यर्थ बात      विशिख=वाण  

            विदोष-विदुषी=  निर्दोष विदुषी                 विज्ञात-विज्ञ= प्रसिध्द विद्वान   
    
क्यूँ   दूर  से  निरपेक्ष  होकर,  हाथ  करते  हो  खड़े -
ना आस्तीनों  में  छुपाओ,  तीर - भाला  ले  चलो ||
 
टिप्पणी के गुण सिखाये, आपका अनुभव सखे,
चार-छ: लिख कर के  चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
 
लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
हल्की सफेदी तुम चढ़ाकर,  हृदय-काला  ले  चलो |
 
टिप्पणी जय-जय करे,  इक लेख पर दो बार हरदम-
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |

मेरा भारत

lokendra singh 

मोहन केशव सा लगे, बड़ा सुदर्शन चित्र |
टोपी मामा ने पिन्हा, दिया छिड़क के इत्र |
दिया छिड़क के इत्र, मित्र यह प्यार मुबारक |
बना देश का यही, समझिये सच्चा तारक |
विजयादशमी मने, जलेंगे दुष्टों के शव |
लगा रखो उम्मीद, करेंगे मोहन केशव ||

उम्मीदों के चिराग़....!!!

यादें....ashok saluja . 
 यादें...  
उम्मीदों का जल रहा, देखो सतत चिराग |
घृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग |
बनी रहे लौ-आग, दिवाली चलो मना ले |
अपना अपना दीप, स्वयं अंतस में बालें |
भाई चारा बढे, भरोसा प्रेम सभी दो |
सुख शान्ति-सौहार्द, बढ़ो हरदम उम्मीदों ||

2 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स संयोजित किये हैं आपने ...
    सादर

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  2. बहुत सुंदर लिंक्स
    मुझे शामिल करने के लिए शुक्रिया

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