| कुण्डलिया छंद
 अरुण जी की कुंडली  
 अनगढ़ मिट्टी पा रही , शनै: - शनै:
आकार दायीं - बायीं तर्जनी , देती उसे निखार देती उसे निखार , मध्यमा संग कनिष्का अनामिका अंगुष्ठ , नाम छोड़ूँ मैं किसका मिलकर रहे सँवार , रहे ना कोई घट - बढ़ शनै: - शनै: आकार , पा रही मिट्टी अनगढ़ || 
रविकर की टिप्पणी  
भगदड़ दुनिया में दिखे, समय चाक चल तेज | कुम्भकार की हड़बड़ी, कृति अनगढ़ दे भेज | कृति अनगढ़ दे भेज, बराबर नहीं अंगुलियाँ | दिल दिमाग में भेद, मसलते नाजुक कलियाँ | ठीक करा ले चाक, हटा मिटटी की गड़बड़ | जल नभ पावक वायु, मचा ना पावें भगदड़ || | 
| "कैसी है ये आवाजाही" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)  बालू शाही है अगर, तो निकलेगा तेल | आम रेत में क्या धरा, चढ़ टिब्बे पर खेल | चढ़ टिब्बे पर खेल, खिलाती नौकर-शाही | मँहगाई की आँच, बड़ी ही दारुण दाही | लूट रहे हैं धन धान्य, होय हर जगह उगाही | आम चाटते नमक, ख़ास की बालूशाही || | 
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लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।  जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।। फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल । धमाके की खबर तो थी, कहे दिल्ली बताया कल ॥ हुआ है खून सादा जब, नहीं कोई दिखे खटमल । घुटाले रोज हो जाते, मिले कोई नहीं जिंदल ।। कहीं दोषी बचें ना छल, अगर सत्ता करे बल-बल । नहीं आश्वस्त हो जाना, नहीं होनी कहीं हलचल ॥ जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" । मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल|| | 
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न  इर्द-गिर्द  तांकिये, अपने गिरेवाँ  में झाँकिये  !  
 पी.सी.गोदियाल "परचेत"  पड़े लोथड़े माँस के, खाते पका कबाब | खाते पका कबाब, पाक की कारस्तानी | जब तक हाफिज साब, कहेंगे हिन्दुस्तानी | तब तक सहना जुल्म, मरेंगे यूं ही भोले | सत्ता तो है मस्त, घुटाले कर कर डोले ||| | 
ख्वाब
 सुमन कपूर 'मीत' 
 
 वाह वाह क्या बात है, कुछ सपने रंगीन ।
देखेंगे ये नयन भी, होकर के लवलीन ।
होकर के लवलीन, सखी पर बात बताना ।
इतना बढ़िया कथ्य, शिल्प सुन्दर कह जाना ।
आया कैसे भाव, अभी तो सु-प्रभात है ।
इन्तजार आनंद, बड़ी ही मधुर बात है । ।
| "ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-23
सुंदरी सवैया   
बलुई कलकी ललकी पिलकी जल-ओढ़ सजी लटरा मुलतानी ।  मकु शुष्क मिले कुछ गील सने तल कीचड़ पर्वत धुर पठरानी । कुल जीव बने सिर धूल चढ़े, शुभ *पीठ तजे, मनुवा मनमानी । मटियावत नीति मिटावत मीत, हुआ *मटिया नहिं पावत पानी || 
*देवस्थान / आसन                       *लाश | 
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  Virendra Kumar Sharma  
 लोग मरते तो हैं ।  
जख्म भरते तो हैं ॥  
बम फटे हैं बेशक - 
एलर्ट करते तो हों ।  
पब्लिक परेशां लगती   
कष्ट हरते तो हैं ॥  
 देते गीदड़ भभकी  
दुश्मन डरते तो हैं ।  | 
| मैं आप की पोस्ट नही पढ़ पाया ???
 Ashok Saluja     
शल्य-क्रिया हो आँख पर, चश्मा काला मोर ।  
पढ़ने से करता  मना, किन्तु जोश पुरजोर ।  
किन्तु जोश पुरजोर, दिवस दस और लगेंगे ।  
रहूँ ब्लाग से दूर, नैन कुछ और ठगेंगे ।  
रविकर भी बेचैन, ठीक यह देंह जिया हो ।  
करिए कुछ आराम, सफल यह शल्य क्रिया हो ॥   | 
| कल गुरू को मूँदा था, आज चेलों ने रूँदा है-
पिलपिलाया गूदा है ।  
छी बड़ा बेहूदा  है । ।  
मर रही पब्लिक तो क्या - 
आँख दोनों मूँदा है ॥  
जा कफ़न ले आ पुरकस  
इक फिदाइन कूदा है । | 
कल गुरू को मूँदा था  
आज चेलों ने रूँदा है ॥  
पाक में करता अनशन- 
मुल्क भेजा फालूदा है ॥  | 
 
 
बेहतरीन लिंक्स संयोजित किये हैं आपने ...
ReplyDeleteआभार
सुन्दर लिंक्स साब | बेहतरीन
ReplyDeleteअरुण जी की कुंडली
ReplyDeleteअनगढ़ मिट्टी पा रही , शनै: - शनै: आकार
दायीं - बायीं तर्जनी , देती उसे निखार
देती उसे निखार , मध्यमा संग कनिष्का
अनामिका अंगुष्ठ , नाम छोड़ूँ मैं किसका
मिलकर रहे सँवार , रहे ना कोई घट - बढ़
शनै: - शनै: आकार , पा रही मिट्टी अनगढ़ |
जितनी बढ़िया कुंडली ,उतनी ही रही अनुकुंडली .
पिलपिलाया गूदा है ।
ReplyDeleteछी बड़ा बेहूदा है । ।
मर रही पब्लिक तो क्या -
आँख दोनों मूँदा है ॥
जा कफ़न ले आ पुरकस
इक फिदाइन कूदा है । |
कल गुरू को मूँदा था
आज चेलों ने रूँदा है ॥
पाक में करता अनशन-
मुल्क भेजा फालूदा है ॥
जो कहते हैं ,करके दिखाते हैं ,
ये सूचना प्रदाता ,देखो फिर भी इठलाते हैं .
आदरणीय गुरुदेव श्री आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-02-2013) के चर्चा मंच-1165 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स
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