Sunday 3 March 2013

निगलो भारत देश, मौज में रानी दीमक-



दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय-

 दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय । 
पाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय । 
 (यमक अलंकार)
पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला । 
भानुमती ने पुन:, पिटारा कुनबा खोला । 
(श्लेष अलंकार )
पालागन सरकार, बनाओ रविकर अहमक । 
निगलो भारत देश,  मौज में रानी दीमक ।।
पाला पड़ना= मुहावरा
पाला= पालना / जल की बूंदे जो सर्दियों में (आम ) फसल बर्बाद कर देती है /
पालागन = प्रणाम 

तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय

तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय । 

धनहर-ईंधन धन हरे, धनहारी मुसकाय । 


धनहारी मुसकाय, आय व्यय का तखमीना । 

आग लगे धनधाम, चैन जनता का छीना । 


इ'स्कैम और इ' स्कीम, भाव इसमें हैं गहरे । 

धन्य धन्य सरकार, तीन, तीन तेरह करे ॥ 

धनहर=धन चुराने वाला 
धनहारी = दूसरे के धन का उत्तराधिकारी 
धनधाम=रूपया पैसा और घरबार 
सदा 
 SADA
दो बूंदे जिंदगी की, पल पल रही पिलाय |
लेकिन लकवा ग्रस्त मन, अंग विकल लंगड़ाय |
अंग विकल लंगड़ाय, काम ना करता माथा |
पद मद में मगरूर, नकारे स्नेहिल गाथा |
नीति नियम शुभ रीति, देखकर आँखें मूंदे |
इष्ट मित्र परिवार, बहा लें दो दो बूंदे-

प्यारे प्यारे घर

Chaitanyaa Sharma  

सूरज चन्दा से रहें, जीव जंतु चैतन्य । 
कलरव गौरैया करे, गौ गोरु सह अन्य । 
गौ गोरु सह अन्य, चमकते उपवन कुटिया। 
खिलते फूल विभिन्न, फलों से भरती हटिया । 
सीधे पथ पर चले,  हमेशा सच्चा बन्दा । 
रहे जगत में कीर्ति, गगन पर सूरज चन्दा ॥  

"दोहे-व्यर्थ न समय गवाँइए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

बहुत सही है समय यह, बहुत सही उपदेश |
समय पालना नियम से, काटे सारे क्लेश ||



तमांचे की गूंज

Saleem akhter Siddiqui  
 माचा मचिया मंच है, बोरा धरती धूल |
महाजनों के लिए ही, बच्चे बगिया फूल |


बच्चे बगिया फूल, मूल में स्वार्थ छुपाये  |
रहा सकल हित साध, किन्तु परमार्थ कहाए |  


नन्हें मुन्हें बाल, प्यार से कहते चाचा |
इक छोटी सी भूल, लगाता चचा तमाचा ||


दंड बिना उद्दंड मनु, मकु मनु-मन एहसास |
रची गई मनुस्मृति फिर, फिरे धर्म का दास |
फिरे धर्म का दास, चले सीधा अंकुश से |
किन्तु श्रेष्ठ  विद्वान, धर्म से होते गुस्से |
टोका-टाकी नीति, नहीं उनके है भाये |
भोगवाद की  प्रीत, धर्म को व्यर्थ बताये -

जब कभी रस्ता चले । फब्तियां कसता चले-

जब कभी रस्ता चले ।
फब्तियां कसता चले ।।

जान जोखिम में मगर-
मस्त-मन हँसता  चले ।।

अब बजट में आदमी -
हो गया सस्ता चले ।।

मौत मंहगी हो गई -
हाल कुछ खस्ता चले ।।

तेज रविकर का बढ़ा -
चाँद पर बसता चले  ॥

सुगढ़ सलोनी कई, कई में सौ विकृतियाँ-

पहला पहला यंत्र है,  इस दुनिया का चाक । 
बना प्रवर्तक यंत्र का, कुम्भकार की धाक । 
कुम्भकार की धाक, पूर्वज मुनि अगस्त्य है । 
मिटटी पावक पाक, मृत्यु पर अटल सत्य हैं । 
देता कृति आकार, रचयिता सहला सहला । 
कुम्भकार भगवान्, प्रवर्तक सबसे पहला ॥

9 comments:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियाँ ......... चैतन्य को दिए स्नेहाशीष के लिए आभार

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  2. Wow. Very fine, meaningful presentation.

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  3. आभार आपका इस प्रस्‍तुति के लिये
    सादर

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  4. सुन्दरतम प्रस्तुतिकरण,आभार आदरणीय.

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  5. आपकी टिप्पणियों से रोज नया ऊर्जा मिलती है रविकर जी!
    आभार!

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  6. मनमोहक प्रस्तुति !!

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  7. बहुत सुंदर......सार्थक प्रस्तुति
    एक से बढ़कर एक लिनक्स

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  8. गुरूजी बहुत बढ़िया | आभार


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  9. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|

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