Monday, 7 November 2016

रविकर के दोहे



दिया दूसरों ने जनम, नाम, काम, सद्ज्ञान।
ले जायें शमशान भी, तू क्यों करे गुमान ।।

दनदनाय दौड़े मदन, चढ़े बदन पर जाय।

खजुराहो को देखकर, काशी भी पगलाय।।



कैसे कोई अन्न जल, कर सकता बरबाद।

संसाधन साझे सकल, रखना रविकर याद।।



शशि में सुंदरता दिखे, दिखे सूर्य में शक्ति।

सुंदरतम कृति ईश की, दर्पण में जो व्यक्ति।।



ठोस कदम ऐसा उठा, पुल में पड़ी दरार।

फूंक फूंक रविकर कदम, रखे राज्य सरकार।।



ढेर ज्ञान संग्रह किया, लेकिन रविकर व्यर्थ।

करे वरण कुछ आचरण, होगा तभी समर्थ।।



नहीं मिलें इक वक्त पर, कभी रुदन-मुस्कान |

जिस क्षण ये दोनों मिलें, वह क्षण प्रभु वरदान ||


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