Monday 6 November 2017

यद्यपि सहारे बिन जिया वह लाश के ही भेष में-


जिंदा मिला तो मारते, हम सर्प चूहा देश में।

लेकिन उसी को पूजते, पत्थर शिला के वेश में।
कंधा दिया जब लाश को तो प्राप्त करते पुण्य हम
यद्यपि सहारे बिन जिया वह लाश के ही भेष में।।



खिचड़ी

हुआ गीला अगर आटा, गरीबी खूब खलती है।
करो मत बन्धुवर गलती, नहीं जब दाल गलती है।
लफंगे देश दुनिया के सदा खिचड़ी पकाते हैं।
स्वयं का पेट भरते किन्तु, जनता हाथ मलती है।।

जुताई में बुवाई में सिंचाई में निराई में।
लगे दो माह पकने में, कटाई में पिटाई में।
कड़ी मेहनत समर्पण से मिले फिर अन्न के दाने।
कटोरा भर मगर जूठन रहे झट फेंक बेगाने।।


तुम रंग गिरगिट सा बदलना छोड़ दो।
परिपक्व फल सा रंग बदलो अब जरा।
जैसे नरम स्वादिष्ट मीठा फल हुआ।
वैसे मधुरता नम्रता विश्वास ला ।।


परिंदा यह बड़ा जिद्दी, बहुत सी ख्वाहिशें ढोये।
रहा नित खोजता मरहम, मगर गम लीलकर सोये।
सदा उम्मीद पर जिंदा, परिंदा किन्तु शर्मिन्दा
कतरती पंख उम्मीदें, प्रियतमा कैंचियाँ धोये।।


पहेली

पढ़ाये पाठ पहले गुरु, परीक्षा बाद में लेता।
सफलता प्राप्त कर चेला, प्रकट आभार कर देता।
महागुरु है मगर वह तो, परीक्षा ले रहा पहले,
सिखाता पाठ फिर पीछे, मनुज-मन मार से दहले।।

2 comments:

  1. वो महागुरु है रहेगा हमेशा सत्य है पहला
    गुरु गुड़ रहेगा मगर शक्कर बनेगा चेला ।

    बहुत खूब।

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-11-2017) को चढ़े बदन पर जब मदन, बुद्धि भ्रष्ट हो जाय ; चर्चामंच 2782 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'


    ReplyDelete