(१)
बच्चा आज्ञा मांग के, खेल-खेलने जाय |
गोधुली के पूर्व ही, वापस घर में आय ||
(२)
अनुमति ले करके गया, एक मित्र के पास |
दो घंटे की लिमिट थी, किया चार से क्रास ||
(३)
सहमति लेकर मैच की, रहा दिवस भर गोल |
थक कर लौटा तर-बतर, भूल समय का मोल ||
(४)
स्वमति मतीरा सी बढ़ी, लम्बी लम्बी बेल |
अभिमति-दुर्मति से शुरू, छोटे-मोटे खेल ||
(५)
शुरू सूचना से किया, करतब का निर्वाह |
तेरह को आ जाइए, फलां जगह है व्याह ||
(६)
आज्ञा अनुमति सूचना, शिशु किशोर तरुणेश |
सम्बन्धों में शिथिलता, दिखते भेद विशेष ||
nai peedhi ke vyvhaar ko hansi hansi me khoob bayaan kiya aapne.bahut achche dohe.
ReplyDeleteसार्थक वातावरण प्रधान काव्यात्मक प्रस्तुति .
ReplyDeleteTuesday, September 20, 2011
महारोग मोटापा तेरे रूप अनेक .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
रविकर बाबू का कमाल हर बात मे करते धमाल
ReplyDeleteवाह ....बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteआज्ञा अनुमति सूचना, शिशु किशोर तरुणेश |
ReplyDeleteसम्बन्धों में शिथिलता, दिखते भेद विशेष ||
...सच है। शिशु आज्ञा पर चलता है। किशोर अनुमती लेकर निकलता है। युवक सिर्फ सूचना देता है। वक्त, पिता-पुत्र संबंध में नित नई परिभाषा गढ़ता है। सुंदर दोहा।
रविकर जी देत.बहुत सुन्दर संदेश...
ReplyDeleteप्रिय रविकर जी ..सुन्दर सन्देश लगा कुछ समझ में आया........... लेकिन कुछ दिमाग के ऊपर से उड़ गया ...गूढ़ कहाँ तीर मारे ?
ReplyDeleteभ्रमर ५
आज्ञा मांगता है शिशु
ReplyDeleteकिशोर अनुमति लेता है
सूचना देते हैं तरुण ||
बस ऐसे ही कुछ ख़ास नहीं ||
सब कुशल मंगल है ||
अनुमति ले करके गया, एक मित्र के पास |
ReplyDeleteदो घंटे की लिमिट थी, किया चार से क्रास ||
नए विषयों पर सुंदर दोहे।