लक्ष्मण रेखा लाँघती, खतरे से अनजान |
बीस निगाहें घूरती, रावण साधु समान |
रावण साधु समान, नहीं खर-तृण से डरता |
नहीं मृत्यु का खौफ, हबस बस पूरी करता |
सीता रहो सचेत, ताक में रावण प्रतिक्षण |
खींचो खुद से रेख, रेख क्यूँ खींचे लक्ष्मण ||
बीस निगाहें घूरती, रावण साधु समान |
रावण साधु समान, नहीं खर-तृण से डरता |
नहीं मृत्यु का खौफ, हबस बस पूरी करता |
सीता रहो सचेत, ताक में रावण प्रतिक्षण |
खींचो खुद से रेख, रेख क्यूँ खींचे लक्ष्मण ||
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ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
टिप्पणी में भी रचनाकारी!
वाह: बहुत सुन्दर टिप्पणी रच डाली..बधाई..
ReplyDeleteसही टिइपणीकारी है....
ReplyDeleteआपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार!!
ReplyDeleteसटीक टिप्पणी के लिए आभार ... सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteदोहावली में टिपियाये रविकर जी ,सतसैया शर्माए दिनकर जी !
ReplyDeleteराजनीति में प्रदूषण पर्व है ये पर्युषण पर्व नहीं .
कबीरा खडा़ बाज़ार में
bilkul steek ji
ReplyDeletekripya mere blog par bhi aayen..
aabhar.
http://umeashgera.blogspot.com/
ये टिपण्णी भी कमाल रही ...
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