घमंडी की मंडी
जाओ जाना है जहाँ, लाओ फंदा नाप ।
जाओ जाना है जहाँ, लाओ फंदा नाप ।
मातु विराजे दाहिने, बैठा ऊपर बाप ।
बैठा ऊपर बाप, चित्त का अपने राजा ।
मर्जी मेरी टॉप, बजाऊं स्वामी बाजा ।
उच्च-उच्चतम दौड़, दौड़ कर टाँग बझाओ ।
खूब "घुटा-लो" शीर्ष, खुदा तक चाहे जाओ ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजनपदीय आंचलिक शब्दों को अच्छा स्तेमाल करते हैं रविकर दा! अच्छा व्यंग्य ,परम व्यंग्य .
ReplyDeleteछा गए रविकर जी .राहुल गांधी और काले झंडे .
ReplyDeleteराहुल गांधी और काले झंडे .
श्रीमान ! राहुल गांधी को काले झंडे दिखलाने का क्या अर्थ है इसे बूझने के लिए उनके सदगुरु दिग्विजय सिंह को कोई शब्द कोष देखने की ज़रुरत नहीं है .काले झंडे काले धन का प्रतीक हैं .जनता चाहती है काला धन निकालो जो स्विस बैंक में राहुल गांधी के नाम फूल कर कुप्पा हो रहा है .जनता राहुल को भगाना नहीं चाहती चुनाव सभा से,सुनना चाहती है .भगाना ही चाहती तो लाल कपड़ा दिखाती (मंद मति ,अश्थिर ,अन -स्टेबिल प्राणी ,भैंसे आदि को भगाने के लिए लाल कपड़ा हिलाया जाता है )काला झंडा तो बस एक प्रतीक है ,जन अभिव्यक्ति है .दिग्विजय भी यही चाहते हैं काला धन बाहर आये .यदि नहीं तो वह भी कोंग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ काला झंडा दिखाने वालों को कूटने के लिए आगे क्यों नहीं आते .उनके चेहरे को देख कर लगता है उफान आ रहा है भरे पड़े हैं कुछ कहना चाहतें हैं कह नहीं पा रहें हैं .
रविकर ने कहा…
अंध-गुरू की मती-मंद, दंद-फंद सह जंग |
शब्द-कोष में ढूढ़ते, कृष्ण रंग से दंग |
कृष्ण रंग से दंग, नंग जनता कर देगी |
गुरु-गुरुर को भंग, तंग कर झंडा लेगी |
दण्ड करे शत-खंड, और प्रतिबन्ध शुरू की |
जन-जन चंडी-चंड , सुताई अंध-गुरु की ||
7 फरवरी 2012 2:56 पूर्वाह्न
अंध-गुरू की मती-मंद, दंद-फंद सह जंग |
ReplyDeleteशब्द-कोष में ढूढ़ते, कृष्ण रंग से दंग |
कृष्ण रंग से दंग, नंग जनता कर देगी |
गुरु-गुरुर को भंग, तंग कर झंडा लेगी |
दण्ड करे शत-खंड, और प्रतिबन्ध शुरू की |
जन-जन चंडी-चंड , सुताई अंध-गुरु की ||
प्रस्तुत पंक्तियाँ रविकर जी की टिपण्णी है राहुल -दिग्विजय मतिभ्रम पर .
आज का नीतिपरक दोहा /उक्ति :
ReplyDeleteआज रविदास जी की जयंती है उसी पर विशेष :
'मन चंगा ,तो कठौती में गंगा '
कहतें हैं संत रविदास के शिष्य उन्हें गंगा स्नान पर ले जाना चाहते थे लेकिन अपने कर्म को समर्पित रविदास जी गंगा स्नान को नहीं गए ,कठौती का वह गंदा जल जिसमे वह राती लगाकर जूता बनाते थे वही उनके लिए गंगा जल था क्योंकि उन्होंने वायदा किया था उस रोज़ जूता बनाके देने का .रवि दास जी ने कहा-मैं उसे जूते बनाके न दे सका तो वचन भंग होगा .वचन का पालन ही उनका सबसे बड़ा धर्म था .और इसीलिए अपने इसी धर्म को समर्पित रविदास जी गंगा स्नान नहीं गए .
आज के नेता वचन भंग करने में माहिर हैं .
उनका लिखा एक और पद है -
प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी ,गुरु दिग्विजय इसका नया संस्करण प्रस्तुत करते होंगे मन ही मन -
राहुलजी तुम चन्दन हम पानी ,
राहुलजी तुम दीपक हम बाती,
स्तुति गान करू दिन राती ,
राहुलजी तुम दीपक हम बाती ....
राम राम भाई !