दर्द बढ़ता जा रहा है |
जिंदगी को खा रहा है |
पर भ्रमर भी क्या करे--
गा रहा, बस गा रहा है ||
गेहूं जामे गजल सा,
सरसों जैसे छंद |
जामे में सोहे भला,
सूट ये कालर बंद ||
सरसों जैसे छंद |
जामे में सोहे भला,
सूट ये कालर बंद ||
"आदरणीय “रविकर” जी को समर्पित-पाँच दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
रविकर जी को भा रहा, अब भी मेरा रूप।
वृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसी धूप।१।
गेहूँ उगता ग़ज़ल सा, सरसों करे किलोल।
बन्द गले के सूट में, ढकी ढोल की पोल।२।
मौसम आकर्षित करे, हमको अपनी ओर।
कनकइया डग-मग करे, होकर भावविभोर।३।
कड़क नहीं माँझा रहा, नाज़ुक सी है डोर।
पतंग उड़ाने को चला, बिन बाँधे ही छोर।४।
पत्रक जब पीला हुआ, हरियाली नहीं पाय।
ना जाने कब डाल से, पका पान झड़ जाय।५।
रविकर जी को भा रहा, अब भी मेरा रूप।
वृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसी धूप।१।
गेहूँ उगता ग़ज़ल सा, सरसों करे किलोल।
बन्द गले के सूट में, ढकी ढोल की पोल।२।
मौसम आकर्षित करे, हमको अपनी ओर।
कनकइया डग-मग करे, होकर भावविभोर।३।
कड़क नहीं माँझा रहा, नाज़ुक सी है डोर।
पतंग उड़ाने को चला, बिन बाँधे ही छोर।४।
पत्रक जब पीला हुआ, हरियाली नहीं पाय।
ना जाने कब डाल से, पका पान झड़ जाय।५।
मीठी बोली सहजता, आशामय विश्वास।
शांत चित्त के ज्ञान से, सहज सरल हर सांस ।।
दिल के कोने में सजा, रहा अकेला नाम।
सजा सदा देता रहे, करे नहीं आराम ।।
ई चकाचक कS बसंत हौS। बेचैन -आत्मा
वैसे तो साल भर बेचैन रहे आत्मा ।
कवि सचमुच का पगलाई ता बसंत हौ ।।वो सूरज से बगावत कर रहा है ...
स्वप्न मेरे पर
चुके होंगे तरकश के तीर
अपनी उकताहट हर रहा है ||
अपनी उकताहट हर रहा है ||
vidya writes again..
नंगे सभी हमाम में, लगे मुखौटे प्याज |
एक-एक कर छीलिए, छीले जी ले लाज ||
सस्ती मौत ....
विचार-प्रवाह पर
'मिलीटरी' का ट्रक रहा, 'मिली' 'टरी' न मौत ।
सदा गरीबी बन रही, इस जीवन में सौत ।
सदियों से बेगानों के घर रहा हूँ मैं |
अब भी पुराना हिसाब भर रहा हूँ मैं |
अब भी पुराना हिसाब भर रहा हूँ मैं |
ढूंढता रह गया खुशियों को बेहिसाब--
जिंदगी मिल न जाए डर रहा हूँ मैं ||
ब्लॉगस की खूबसूरत समीक्षा
ReplyDelete"आदरणीय “रविकर” जी को समर्पित-पाँच दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
ReplyDeleteरविकर जी को भा रहा, अब भी मेरा रूप।
वृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसी धूप।१।
गेहूँ उगता ग़ज़ल सा, सरसों करे किलोल।
बन्द गले के सूट में, ढकी ढोल की पोल।२।
मौसम आकर्षित करे, हमको अपनी ओर।
कनकइया डग-मग करे, होकर भावविभोर।३।
कड़क नहीं माँझा रहा, नाज़ुक सी है डोर।
पतंग उड़ाने को चला, बिन बाँधे ही छोर।४।
पत्रक जब पीला हुआ, हरियाली नहीं पाय।
ना जाने कब डाल से, पका पान झड़ जाय।५।
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आदरणीय रविकर जी ने
मेरे चित्र पर दो टिप्पणियाँ की थी!
रविकर Feb 21, 2012 04:16 AM
गेहूं जामे गजल सा,
सरसों जैसे छंद |
जामे में सोहे भला,
सूट ये कालर बंद ||
प्रत्युत्तर दें
“उत्तर”
रविकर Feb 21, 2012 04:19 AM
सुटवा कालर बंद ||
उसी के उत्तर में पाँच दोहे
आदरणीय “रविकर” जी को
समर्पित कर रहा हूँ!
http://uchcharan.blogspot.in/2012/02/blog-post_5076.html
माता होय कुरूप अति, होंय पिता भी अंध |
Deleteवन्दनीय ये सर्वदा, अतिशय पावन बंध ||
बंध = शरीर
उच्चारण अतिशय भला, रहे सदा आवाज |
शब्द छीजते हैं नहीं, पञ्च-तत्व कर लाज ||
देव आज देते चले, फिर से पैतिस साल |
स्वस्थ रहेंगे सर्वदा, नौनिहाल सौ पाल ||
सभी ब्लांगर्स की समीक्षाएं लाजवाब हैं...
ReplyDeleteसदियों से बेगानों के घर रहा हूँ मैं |
ReplyDeleteअब भी पुराना हिसाब भर रहा हूँ मैं |
ढूंढता रह गया खुशियों को बेहिसाब--
जिंदगी मिल न जाए डर रहा हूँ मैं ||
वाह क्या बात है ?लाज़वाब कर दिया आपने .अपने ही घर में किसी और के हम हैं .
achcha sankalan
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ...कुछ अलग सी..
ReplyDeleteहमारी रचना को स्थान देने का शुक्रिया.
सादर.
पहली बार जानकारी मिली और आना हुआ .. सुन्दर लिंक्स का समायोजन मिला ..और साथ में अपनी रचना पर भी लाजवाब समीक्षा ..आपका तहे-दिल शुक्रिया
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteआपने तो ब्लॉग पर भी लगा दी हमारी टिप्पणी!
आभार आपका!
pahli baar aana huaa .... bahut khoobsurti se samiksha ki prastuti ki hai.... isme meri post ko shamil karne ke liye bahut bahut dhanybad....aabhar
ReplyDeleteगेहूँ उगता ग़ज़ल सा, सरसों करे किलोल।
ReplyDeleteबन्द गले के सूट में, ढकी ढोल की पोल।
वाह लगता है जैसे ये दोहा हमारे लिए ही कहा गया है...अद्भुत :-)
नीरज
लिंक की बाद में देखी जायेगी पहले टीप में आये छंदों का आनंद लिया जाये।..सुंदर।
ReplyDeleteप्रिय रविकर जी अभिवादन --बहुत सुन्दर शुरुआत ..खूबसूरत कोशिश और अच्छे लिंक ...
ReplyDeleteरविकर जी दिनकर बने
जग रोशन करते फिरें
हम तो चाहें चाँद सा चमकें
रात में भी ना कबहूँ छिपें
(आज कल नेट की समस्या से ग्रस्त हाजिरी कम लग पा रही है कृपया निभाते रहिएगा )
जय श्री राधे
भ्रमर५
ये भी कमाल की शुरुआत है ... लाजवाब शेर है आपका भी ...
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