गीत.......मेरी अनुभूतियाँ
कैसे कंधे लाद के, बाप ढोय औलाद ।
गधा बाप बन कर रहे, एक अवधि के बाद ।।
आज के नेता...
काव्यान्जलि ...कैसे कंधे लाद के, बाप ढोय औलाद ।
गधा बाप बन कर रहे, एक अवधि के बाद ।।
आज के नेता...
नेता पक्का नेत का, नेति बना के मन्त्र ।
तनी रहे नेती सदा, रहे टना-टन तन्त्र ।।
नेत = संकल्प / निश्चय
नेति = इति न
नेती = मथानी को लपेटकर खींचने वाली रस्सी
मै नशे में
नशा नशावन थी कभीं, आज नशे में धुत्त ।
चूम नशीनी को चढ़ा, प्रेम परम उन्मुक्त ।।
अद्भुत सन्यासी गृहस्थ, सदा कर्म लव-लीन ।
इंद्रिय-सुख से विमुखता, भाग्य विधाता दीन ।।
पिगमेंटेशन की दवा, धैर्य समय व्यवहार ।
कर्म दाग पर ना मिटें, सभी वैद्य लाचार ।।
थकित चकित माता पड़ी, जर्जर काया ठूठ।
सन्ताने ताने कसें, मोबाइल गा रूठ ।।
किरकेट में किरकिरी से, लागे किरकेट चाट ।
अभी परीक्षा में लिखें, पाछे होली घाट ।।
न दैन्यं न पलायनम्
क्षण भर चेहरे देख के, करें जरूरी काम |
बड़ा मुखौटा काम का, छूटे नशे तमाम |
छूटे नशे तमाम, नशे का बनता राजा |
छोड़ जरुरी काम, बुलाये आजा आजा |
कह रविकर रख होश, मुखौटा खोटे लागै |
रखकर सर पर पैर, सयाना सरपट भागै ||
मदिरा पी ली पीली सरसों, फगुनाहट से झूमे ।
बार बार बरबस पैरों को, बेहोशी में चूमे ।
होंठो की मादक लाली को, पिचकारी में भरकर-
गली गली चौराहे पर वह, कृष्ण ढूँढ़ती घूमे ।।
न दैन्यं न पलायनम्
क्षण भर चेहरे देख के, करें जरूरी काम |
बड़ा मुखौटा काम का, छूटे नशे तमाम |
छूटे नशे तमाम, नशे का बनता राजा |
छोड़ जरुरी काम, बुलाये आजा आजा |
कह रविकर रख होश, मुखौटा खोटे लागै |
रखकर सर पर पैर, सयाना सरपट भागै ||
"आदरणीय “रविकर” जी को समर्पित-पाँच दोहे"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
जबरदस्त ये भाव हैं, निगमागम का रूप ।
तन-मन मति निर्मल करे, कुँवर अरुण की धूप ।। अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) -
निगमी निर्गम नर्मदा, अरुण शिवंकर पाय ।
सर्वोत्तम वह दिवस मम, वन्दौं शीश नवाय ।।
शिवंकर = कल्याणकारी मदिरा पी ली पीली सरसों, फगुनाहट से झूमे ।
बार बार बरबस पैरों को, बेहोशी में चूमे ।
होंठो की मादक लाली को, पिचकारी में भरकर-
गली गली चौराहे पर वह, कृष्ण ढूँढ़ती घूमे ।।
कहना हम भी कविता में ही कुछ चाहते थे,पर अपनी साधना आपके टक्कर की नहीं है।
ReplyDeleteविषय महत्वपूर्ण है ना की माध्यम ।
Deleteयहाँ भी है यह लिंक ।
आभार ।।
रोग लिखाई का बढ़ा, वैद्य हुए लाचार।
ReplyDeleteअसमंजस में हम पड़े, कैसे हो उपचार।।
vaah! bahut sundar
ReplyDeleteथकित चकित माता पड़ी, जर्जर काया ठूठ।
ReplyDeleteसन्ताने ताने कसें, मोबाइल गा रूठ ।।
हाइगा के भाव दोहे में उतरकर और भी ज्यादा भावपूर्ण हो गए हैं...आभार!
रविकर जी टिप्पणियों का ब्लॉग लिया बनाय
ReplyDeleteटिप्पणियों को जोड़कर तैयार पोस्ट होई जाय,
बहुत बढ़िया, सभी कमेंट्स लाजबाब लगे.....
MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
अछे लिंक हैं ...
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