Monday, 27 February 2012

मानस मोती पाय, अघाए मानव बुद्धी -


सुनों किताबें बोलतीं, पावन करती देह ।
कानों में मिश्री घुले, करलो इनसे नेह ।

करलो इनसे नेह, निभाती रिश्ता हरदम ।
लेकर जाओ गेह, मित्र ये रहबर अनुपम ।

मानस मोती पाय, अघाए मानव बुद्धी ।
  साबुन तेल बगैर, करे तन-मन की शुद्धी।

 
कविता : मत छापो मुझे 
  धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ के कल्पनालोक में आपका स्वागत है

शब्दों की तड़पन से सिहरी,  चीत्कार कविता की सुन लो ।
शब्दा-डंबर शब्द-भेदता, भावों के गुण से अब चुन लो ।

पहले भी कविता मरती पर, मरने की दर आज बढ़ी है --
भीड़-कुम्भ में घुटता है दम, ताना-बाना निर्गुन बुन लो ।।

 समानांतर चली कथाएं, इक राजा सौ रंक की ।
इतराहट इक ओर रही उत, झल्लाहट आशंक की ।


झूले कंचन झूले में इत, कंच से भंगुर सपने हैं उत-
  यहाँ अन्नप्राशन पर लाखों, वहाँ कुपोषण डंक की ।।



मन में घर करते गए,  रोड़ा रेत मकान ।
साथ हाथ संगत रहे, टाले सब व्यवधान ।

 टाले सब व्यवधान, सजाया घर को सुन्दर ।
आत्म आत्माराम, लांघता सात समन्दर ।

छोड़ा पूर्व मकान, रहूँ अब दूजे तन में ।
पता रहा मैं जान, रखूं पर अपने मन में ।। 


पले पलायन का परशु, पल-पल हो परचंड ।
अंकुश मस्तक से विलग, हस्त करे शत-खंड ।।


  बेसुरम्‌ 

जाल में जवाल में, भेड़िये भी खाल में ।
जाल-साज साज के, फांस लेत जाल में ।।


  स्व प्न रं जि ता 

शिशिर जाय सिहराय के, आया कन्त बसन्त ।
मस्ती में आकूत सब, सेवक स्वामी सन्त ।

सेवक स्वामी सन्त, हुई मादक अमराई ।
बाढ़ी चाह अनंत, जड़ो-चेतन बौराई  ।

फगुनाहट हट घोर, शोर चौतरफा फैला।
देते बांह मरोर, बना बुढवा भी छैला ।।

निर्वाचन पर हो गए, मतदाता निर्वाक्य ।
राहुल बाबा पर कहाँ, करते टिप्पण शाक्य ।। 
करते टिप्पण शाक्य, नगर गौतम श्रावस्ती ।
नंगे दारुबाज, सजी मस्ती की  बस्ती ।
फँसे गुरु निर्वचन, करे नेतागण मंचन ।
नौटंकी को लाज, अजी तिकड़म निर्वाचन ।।



चक्रव्यूह साजा करे , पल-पल वक्ताचार्य ।
अभि-मन आहत हो रहा, कृष्ण-विवेकी कार्य ।
कृष्ण-विवेकी कार्य, करें कौरव अट्ठाहस ।
जायज है सन्देश , धरो पांडव सत्साहस ।
 यही युद्ध का धर्म, कर्म का लेकर डंडा ।
युद्ध-भूमि का मर्म, करो दुश्मन को ठंडा ।।

8 comments:

  1. bahut bahut .books are our best friend .

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  2. Achche links in sab par jakar padhoongi. muze shamil karane ka shukriya.

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  3. लेकर जाओ गेह, मित्र ये रहबर अनुपम ।
    जाल में जवाल में, भेड़िये भी खाल में ।
    जाल-साज साज के, फांस लेत जाल में ।।
    फँसे गुरु निर्वचन, करे नेतागण मंचन ।
    नौटंकी को लाज, अजी तिकड़म निर्वाचन ।।सुन्दर मनोहर ......

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  4. बहुत खूब ..
    क्‍या बात है !!

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  5. वाह!!!!!!!!दिनेश जी,गजब की टिप्पणियों की प्रस्तुति!!!क्या बात है बहुत खूब ..

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  6. ये अंदाज तो सबसे अनूठा है, बहुत खूब

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  7. आपकी सभी सार्थक टिप्पणियाँ पढ़ कर आनंद आया ... आभार

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  8. वाह ... काव्य मय चर्चा .... लाजवाब अंदाज़ है आपका ..

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