सुनों किताबें बोलतीं, पावन करती देह ।
कानों में मिश्री घुले, करलो इनसे नेह ।
करलो इनसे नेह, निभाती रिश्ता हरदम ।
लेकर जाओ गेह, मित्र ये रहबर अनुपम ।
मानस मोती पाय, अघाए मानव बुद्धी ।
साबुन तेल बगैर, करे तन-मन की शुद्धी।
कविता : मत छापो मुझे धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ के कल्पनालोक में आपका स्वागत है -
शब्दों की तड़पन से सिहरी, चीत्कार कविता की सुन लो ।
शब्दा-डंबर शब्द-भेदता, भावों के गुण से अब चुन लो ।
पहले भी कविता मरती पर, मरने की दर आज बढ़ी है --
भीड़-कुम्भ में घुटता है दम, ताना-बाना निर्गुन बुन लो ।।
भीड़-कुम्भ में घुटता है दम, ताना-बाना निर्गुन बुन लो ।।
समानांतर चली कथाएं, इक राजा सौ रंक की ।
इतराहट इक ओर रही उत, झल्लाहट आशंक की ।
झूले कंचन झूले में इत, कंच से भंगुर सपने हैं उत-
यहाँ अन्नप्राशन पर लाखों, वहाँ कुपोषण डंक की ।।
मन में घर करते गए, रोड़ा रेत मकान ।
साथ हाथ संगत रहे, टाले सब व्यवधान ।
टाले सब व्यवधान, सजाया घर को सुन्दर ।
आत्म आत्माराम, लांघता सात समन्दर ।
छोड़ा पूर्व मकान, रहूँ अब दूजे तन में ।
पता रहा मैं जान, रखूं पर अपने मन में ।।
पले पलायन का परशु, पल-पल हो परचंड ।
अंकुश मस्तक से विलग, हस्त करे शत-खंड ।।
बेसुरम्
जाल में जवाल में, भेड़िये भी खाल में ।
जाल-साज साज के, फांस लेत जाल में ।।
स्व प्न रं जि ता
बेसुरम्
जाल में जवाल में, भेड़िये भी खाल में ।
जाल-साज साज के, फांस लेत जाल में ।।
स्व प्न रं जि ता
शिशिर जाय सिहराय के, आया कन्त बसन्त ।
मस्ती में आकूत सब, सेवक स्वामी सन्त ।
सेवक स्वामी सन्त, हुई मादक अमराई ।
बाढ़ी चाह अनंत, जड़ो-चेतन बौराई ।
फगुनाहट हट घोर, शोर चौतरफा फैला।
देते बांह मरोर, बना बुढवा भी छैला ।।
निर्वाचन पर हो गए, मतदाता निर्वाक्य ।
राहुल बाबा पर कहाँ, करते टिप्पण शाक्य ।।
करते टिप्पण शाक्य, नगर गौतम श्रावस्ती ।
नंगे दारुबाज, सजी मस्ती की बस्ती ।
फँसे गुरु निर्वचन, करे नेतागण मंचन ।
नौटंकी को लाज, अजी तिकड़म निर्वाचन ।।
चक्रव्यूह साजा करे , पल-पल वक्ताचार्य ।
अभि-मन आहत हो रहा, कृष्ण-विवेकी कार्य ।
अभि-मन आहत हो रहा, कृष्ण-विवेकी कार्य ।
कृष्ण-विवेकी कार्य, करें कौरव अट्ठाहस ।
जायज है सन्देश , धरो पांडव सत्साहस ।
यही युद्ध का धर्म, कर्म का लेकर डंडा ।
युद्ध-भूमि का मर्म, करो दुश्मन को ठंडा ।।
bahut bahut .books are our best friend .
ReplyDeleteAchche links in sab par jakar padhoongi. muze shamil karane ka shukriya.
ReplyDeleteलेकर जाओ गेह, मित्र ये रहबर अनुपम ।
ReplyDeleteजाल में जवाल में, भेड़िये भी खाल में ।
जाल-साज साज के, फांस लेत जाल में ।।
फँसे गुरु निर्वचन, करे नेतागण मंचन ।
नौटंकी को लाज, अजी तिकड़म निर्वाचन ।।सुन्दर मनोहर ......
बहुत खूब ..
ReplyDeleteक्या बात है !!
वाह!!!!!!!!दिनेश जी,गजब की टिप्पणियों की प्रस्तुति!!!क्या बात है बहुत खूब ..
ReplyDeleteये अंदाज तो सबसे अनूठा है, बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी सभी सार्थक टिप्पणियाँ पढ़ कर आनंद आया ... आभार
ReplyDeleteवाह ... काव्य मय चर्चा .... लाजवाब अंदाज़ है आपका ..
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