इस युग में
सज्जनों को हो रहा है नुक्सान परिचय से,
घनिष्ट परिचय से---
दोस्तों कि दुश्मनी घातक रही खुब ,
लम्बे अरसे से----
दुर्जनों ने आज भी सौदे किये, खुब लाभ पाया
सज्जनों के हाथ बस नुक्सान आया
सफलता से आज बस परचित जलें,पग-पग छलें
जो अपरचित, वे बेचारे, क्यूँकर खलें ??
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ReplyDeleteसफलता से आज बस परचित जलें,पग-पग छलें
जो अपरचित, वे बेचारे, क्यूँकर खलें ??...
So true !
I have witnessed and experienced this.
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फुल्ली = बहुत ही छोटी गलती, ढेंढर = ढेर सारा दोष
ReplyDeleteऔरन की फुल्ली लखैं , आपन ढेंढर नाय
ऐसे मानुष ढेर हैं, चलिए सदा बराय
चलिए सदा बराय, काम न अइहैं भइया
करिहैं न सहयोग, जरुरत परिहै जेहिया
कह 'रविकर' समझाय, ठोकिये फ़ौरन गुल्ली
करिहैं न बकवाद, देख औरन की फुल्ली